ट्रेड यूनियनों ने प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों को लेकर अमित शाह को लिखा पत्र

बीते नौ अगस्त को ट्रेड यूनियनों ने श्रम नीति, विनिवेश और निजीकरण के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया गया था. प्रदर्शन के दौरान कोविड-19 नियमों को उल्लंघन करने के आरोप में कुछ जगहों पर प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है.

अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

बीते नौ अगस्त को ट्रेड यूनियनों ने श्रम नीति, विनिवेश और निजीकरण के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया गया था. प्रदर्शन के दौरान कोविड-19 नियमों को उल्लंघन करने के आरोप में कुछ जगहों पर प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: श्रम नीति के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाने को लेकर 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने निराशा जताई है और इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है.

ये प्रदर्शनकारी श्रम नीति, विनिवेश और निजीकरण के खिलाफ नौ अगस्त को विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इन संगठनों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ नौ अगस्त को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था.

पत्र के मुताबिक, ‘केंद्रीय श्रमिक संगठनों के संयुक्त मंच के तौर पर हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराए जाने पर अपनी पीड़ा और दुख व्यक्त करते हैं. यह प्रदर्शनकारी श्रम नीति, विनिवेश और सरकारी कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे.’

आगे कहा गया है, ‘यह प्रदर्शन आशा, आंगनबाड़ी, मध्याह्न भोजन योजना के कर्मचारियों, कोरोना वायरस से निपटने में लगे डॉक्टरों, नर्सों, तकनीकी कर्मचारी और सफाई कमर्चारियों से जुडे़ मुद्दे उठाने के लिए भी किया गया था.’

पत्र में कहा गया है कि सरकार की लगातार अनदेखी के बीच इन कामकाजी लोगों को कोविड-19 महामारी के दौरान विरोध प्रदर्शन के लिए बाहर आना पड़ा.

संगठनों ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के दौरान मास्क पहनने और दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखने के नियम का कड़ाई से पालन किया गया. इसके बावजूद उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए इसे आधार बनाया गया.

उन्होंने कहा, ‘यह मजदूरों, संपत्ति सृजकों और सेवा प्रदाताओं की शिकायतों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों के लोकतांत्रिक अधिकार का हनन करने की कोशिश है. यह अस्वीकार्य है.’

संगठनों ने गृहमंत्री से देशभर में श्रमिक नेताओं के खिलाफ दर्ज की गई इस तरह की प्राथमिकी को वापस लेने की मांग की.

इन 10 संगठनों में इंटक, एटक, हिंदुस्तान मजदूर संघ, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी हैं. देश में कुल 12 केंद्रीय श्रमिक संगठन हैं जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय मजदूर संघ भी शामिल है.

बता दें कि कोरोना महामारी के मद्देनजर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात समेत कई राज्यों ने श्रम कानूनों में परिवर्तन किया है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्योगों को श्रम कानूनों से तीन साल की छूट देने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी थी.

बीते मई महीने में संसद की श्रम मामलों की स्थायी समिति ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात समेत नौ राज्यों से श्रम कानूनों को ‘कमजोर’ किए जाने को लेकर जवाब मांगा था.

बीते नौ अगस्त को आशा कार्यकर्ताओं ने कोरोना वायरस को लेकर स्वास्थ्य उपकरण मुहैया कराने, नियमित वेतन देने और कोरोना वॉरियर्स के तौर पर बीमा राशि जैसी मांगों के साथ दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था, जिसके बाद इनके ख़िलाफ़ लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोप में केस दर्ज किया गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)