क़ानून मंत्रालय द्वारा कराए एक अध्ययन में कहा गया है कि पीड़िता का ही बयान आने में औसतन आठ महीने का वक्त लग जाता है.
क़ानून मंत्रालय द्वारा 15 महीने लंबे एक अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत बलात्कार से जुड़े मामलों की सुनवाई चार्जशीट दाखिल होने के दो महीने में पूरी करने की समयसीमा अवास्तविक है.
टाइम्स आॅफ इंडिया के मुताबिक अध्ययन में यह भी कहा गया है कि धारा 309 के इतर पीड़िता का भी पूरा बयान दो महीने में पूरा नहीं किया जा सकता है. अध्ययन के अनुसार पीड़िता का पूरा बयान आने में औसतन 8 महीने का समय लगता है और कई मामलों में यह 15 महीने से ज्यादा का वक्त होता है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देरी के कई कारण हैं. इसमें फॉरेंसिक रिपोर्ट के आने में वक्त लगना, न्यायालयों पर बहुत सारे मुक़द्दमों का भार होना प्रमुख है.
इस अध्ययन में जांच में योगदान देने वाली सभी एजेंसियों के कामकाज में सुधारों पर जोर दिया गया है. इसके बावजूद रिपोर्ट में कहा गया है कि सुनवाई और जांच दो महीने में संभव नहीं है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआरपीसी में किए गए संशोधन, बलात्कार के कानूनों को मजबूत करने और परीक्षणों के लिए किए गए समय को कम करना लगभग नामुमकिन है.