सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर मामले में गठित जांच समिति के सदस्यों के राजनीतिक और पुलिस प्रशासन में पारिवारिक संबंध हैं, इसलिए समिति का पुनर्गठन किया जाना चाहिए क्योंकि यहां पर हितों के टकराव की स्थिति है और जांच प्रभावित किए जाने की संभावना है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें मांग की गई थी कि गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर मामले की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिटायर्ड जज जस्टिस बीएस चौहान की अगुवाई में गठित की गई समिति का पुनर्गठन किया जाए.
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. सुब्रमनियन की पीठ ने कहा, ‘हमने कुछ सुरक्षा प्रदान की है कि जांच किस तरह से की जानी चाहिए. इस याचिका में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है.’
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया था कि इस जांच समिति के सदस्यों के राजनीतिक और पुलिस प्रशासन में पारिवारिक संबंध हैं, इसलिए समिति का पुनर्गठन किया जाना चाहिए, क्योंकि यहां पर हितों के टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और जांच प्रभावित किए जाने की संभावना है.
द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि विकास दुबे एनकाउंटर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति के अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान के भाई भाजपा विधायक हैं और समधी भाजपा सांसद हैं.
वहीं समिति के अन्य सदस्य पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता कानपुर जोन के आईजी के संबंधी हैं. ऐसी स्थिति में हितों के टकराव की संभावना के कयास लगाए जा रहे हैं.
इसी रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता वकील घनश्याम उपाध्याय ने 30 जुलाई को पुलिस मुठभेड़ में गैंगस्टर विकास दुबे की मौत की जांच के लिए गठित जांच आयोग के अध्यक्ष शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह चौहान और दोनों अन्य सदस्यों के स्थान पर आयोग का पुनर्गठन करने के लिए एक नई अर्जी दायर की थी.
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए याचिकाकर्ता से सवाल किया था कि अगर किसी न्यायाधीश का रिश्तेदार राजनीतिक दल में है तो क्या इसे गैरकानूनी कृत्य माना जाएगा.
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे अनेक न्यायाधीश हैं, जिनके रिश्तेदार सांसद हैं.
पीठ ने उपाध्याय को फटकार लगाते हुए कहा था कि न्यायिक आयोग की अध्यक्षता करने वाले उसके किसी भी पूर्व जज पर मीडिया की खबरों के आधार पर आक्षेप नहीं लगाया जा सकता है.
पीठ ने कहा था, ‘ऐसे न्यायाधीश हैं जिनके पिता या भाई या रिश्तेदार सांसद हैं. क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ये सभी न्यायाधीश दुराग्रह रखते हैं? यदि कोई रिश्तेदार किसी राजनीतिक दल में है तो क्या यह गैरकानूनी कृत्य है?’
इससे पहले 28 जुलाई को भी जांच आयोग के एक सदस्य पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता को बदलने के लिए दायर आवेदन को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा था कि वह आयोग पर किसी तरह के आक्षेप लगाने की इजाजत याचिकाकर्ता को नहीं देगा.
याचिकाकर्ताओं घनश्याम उपाध्याय और अनूप प्रकाश अवस्थी ने आरोप लगाया था कि विकास दुबे एनकाउंटर को लेकर केएल गुप्ता ने पुलिस की दलीलों को सही माना था कि कहा था कि पुलिस की बातों पर यकीन किया जाना चाहिए.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पक्षपात के आरोप वाले इन तर्कों को स्वीकार नहीं किया और कहा कि गुप्ता की ईमानदारी पर उनके बयान के एक हिस्से को देखकर सवाल नहीं किया जा सकता है.
मालूम हो कि शीर्ष अदालत ने 22 जुलाई को अपने आदेश में कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और इसके बाद मुठभेड़ में विकास दुबे और उसके पांच सहयोगियों के मारे जाने की घटनाओं की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था.
न्यायालय ने कहा था कि जांच आयोग एक सप्ताह के भीतर अपना काम शुरू करके इसे दो महीने में पूरा करेगा.
जांच आयोग को 10 जुलाई को विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत की घटना और इससे पहले अलग-अलग मुठभेड़ में दुबे के पांच साथियों के मारे जाने की घटना की भी जांच करनी है.