गोवा के राज्यपाल मलिक का एक साल में दूसरी बार तबादला, विपक्षी दलों ने भाजपा पर साधा निशाना

पिछले साल अक्टूबर में जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक को गोवा का राज्यपाल बनाया गया था. अब उन्हें मेघालय का राज्यपाल बनाया गया है. पिछले कुछ समय में कोरोना वायरस और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर गोवा के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता प्रमोद सावंत से उनके मतभेद खुलकर सामने आए थे.

Srinagar: Jammu and Kashmir Governor Satya Pal Malik during an Interview with PTI, in Srinagar, on Tuesday, October 16, 2018. ( PTI Photo/S Irfan)(Story No. DEL 66)(PTI10_16_2018_000159B)
सत्यपाल मलिक. (फाइल फोटो: पीटीआई)

पिछले साल अक्टूबर में जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक को गोवा का राज्यपाल बनाया गया था. अब उन्हें मेघालय का राज्यपाल बनाया गया है. पिछले कुछ समय में कोरोना वायरस और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर गोवा के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता प्रमोद सावंत से उनके मतभेद खुलकर सामने आए थे.

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक. (फोटो: पीटीआई)
जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/पणजी: गोवा के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का बीते मंगलवार को मेघालय तबादला कर दिया गया है.

साल भर में यह दूसरी बार है जब उनका तबादला कर दिया गया है. बीते साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेश- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांटने के फैसले के तकरीबन ढाई महीने बाद अक्टूबर 2019 में उनका तबादला कर गोवा का राज्यपाल बनाया गया था.

सत्यपाल मलिक मेघालय में तथागत रॉय की जगह लेंगे, जिनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया है.

राष्ट्रपति भवन ने एक बयान में कहा कि गोवा के राज्यपाल मलिक का तबादला कर उन्हें मेघालय का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है.

बयान के अनुसार, महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को गोवा का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस को लेकर गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की आलोचना करने के हफ्तों बाद राज्यपाल सत्यपाल मलिक का तबादला किया गया है.

एक बयान में मलिक ने कहा है, ‘गोवा में मेरे 10 महीने के कार्यकाल का अनुभव कुछ नहीं, बल्कि एक सुखद अनुभव था.’

रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता दिगंबर कामत ने तबादले की समय को लेकर आलोचना करते हुए कहा है कि सरकार मलिक के अनुभव और मार्गदर्शन से लाभांवित हो सकती थी.

सत्यपाल मलिक और प्रमोद सावंत के बीच टकराव पहली बार 16 जुलाई को सार्वजनिक हुआ था, जब राज्य में कोरोना वायरस के मामले 1,272 थे और राज्यपाल ने सरकार की गलतियों और कमियों की ओर इशारा किया था.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने और इसे रोकने के संबंध में उठाए गए कदमों को लेकर सरकार ने उन्हें अंधेरे में रखा था.

इसके अगले जब राज्य में कोरोना से मरने वालों की संख्या 19 हुई तो मलिक ने चिकित्सा व्यवस्था पर अप्रसन्नता जाहिर की थी. उन्होंने कहा था, ‘मौत के मामले बढ़ रहे हैं और इसका कारण वे (सरकार) मरीज में दो पुरानी बीमारियों की मौजूदगी को नहीं बता सकते.’

रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से बातचीत में कह दिया था कि राज्यपाल महामारी के मीडिया कवरेज से नाराज हैं. इस पर मलिक ने सावंत को उन्हें मिसकोट करने के लिए सार्वजनिक तौर पर फटकार लगाई थी.

इसके अलावा पीडब्ल्यूडी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्तमान राजभवन के पुर्तगाली ढांचे का रखरखाव नहीं किया जा सकता था. इस रिपोर्ट के हवाले से दो हफ्ते सावंत ने नए राजभवन के निर्माण का खुलासा किया था.

रिपोर्ट के अनुसार, इस पर राज्यपाल मलिक ने मुख्यमंत्री सावंत को एक पत्र लिखकर राज्य द्वारा कोरोना वायरस से लड़ाई के समय इस तरह के प्रस्ताव को अतार्किक बताया था.

बहरहाल राज्यपाल सत्यपाल मलिक को मेघालय का राज्यपाल नियुक्त करने की खबर के बाद रॉय ने ट्वीट किया, ‘राष्ट्रपति भवन से खबर मिलने के बाद नए राज्यपाल सत्यपाल मलिक से बात की और उनका शिलॉन्ग में स्वागत किया. उन्हें यहां आने में अभी थोड़ा समय लग सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे 20 मई को यह पद छोड़ना था.’

तथागत रॉय ने अपने पांच साल के कार्यकाल में तीन साल त्रिपुरा के राज्यपाल के तौर पर और बाकी दो साल मेघालय के राज्यपाल के तौर पर सेवाएं दी.

राज्यपाल का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता लेकिन पारंपरिक रूप से इसे पांच साल माना जाता है. ऐसे कई उदाहरण भी हैं, जब राज्यपाल लंबे समय तक पद पर काबिज रहे. ई़सीएल नरसिंहन छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और फिर तेलंगाना के लगातार 12 साल तक राज्यपाल रहे थे.

सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के बाद कश्मीरी सामान पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करने वाले सेवानिवृत्त सेना अधिकारी के ट्वीट का समर्थन करने के बाद रॉय पिछले साल चर्चा में आ गए थे. इस हमले में 40 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.

रॉय को अगस्त 2018 में मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और अब तक इस पद पर काबिज हैं. केवल दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच वह छुट्टी पर थे.

वहीं मलिक (73) पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर के आखिरी राज्यपाल थे.

विपक्षी दलों ने राज्यपाल के तबादले को लेकर भाजपा पर साधा निशाना

गोवा के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के तबादले को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधते हुए मंगलवार को विपक्षी दलों ने कहा कि ‘सच’ बोलने और कोविड-19, पर्यावरण तथा महादयी नदी जल विवाद जैसे मूल मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाने के कारण उनका तबादला किया गया है.

कांग्रेस नेता दिगंबर कामत ने कहा कि मलिक का तबादला सच बोलने की वजह से किया गया.

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता कामत ने एक बयान में कहा, ‘कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने और प्रबंधन के अलावा, कर्नाटक द्वारा महादयी नदी के जल को मोड़ने, अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने, मितव्ययिता उपाय जैसे प्रमुख मुद्दों पर राज्यपाल सच और हर गोवावासी की भावनाओं के साथ खड़े हुए.’

उन्होंने कहा, ‘सच और भाजपा एक साथ नहीं रह सकते.’

कामत ने कहा कि दुख की बात है कि मलिक जैसे ईमानदार व्यक्ति का ऐसे समय में तबादला कर दिया गया, जब गोवा को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी.

उन्होंने कहा कि मलिक ने आम आदमी, पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा करने के एकमात्र उद्देश्य से ही हर कदम उठाया.

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘मलिक हमेशा राज्य की खराब अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित रहे और लगातार सरकार को मितव्ययिता उपाय अपनाने और फिजूल खर्च रोकने की सलाह देते थे.’

उन्होंने कहा कि उनके तबादले से गोवा के लोगों को यकीनन दुख हो रहा होगा.

गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) के प्रमुख विजय सरदेसाई ने बताया कि मलिक ने तटीय राज्य में कोविड-19 की स्थिति पर सच बोला था.

सरदेसाई ने एक बयान में कहा, ‘उन्होंने महादयी मुद्दे और नए राज भवन के विरोध सहित अन्य मितव्ययिता उपाय को लेकर कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने अशिष्ट होने को लेकर गोवा के मुख्यमंत्री पर भी सवाल उठाए.’

जीएफपी प्रमुख ने महाराष्ट्र के राज्यपाल को अतिरिक्त कार्यभार सौंपे जाने को लेकर भी सवाल उठाए.

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल को अतिरिक्त प्रभार देने को कैसे सही ठहराया जा सकता है, जबकि महाराष्ट्र में कोविड-19 के सबसे अधिक मामले हैं और उससे सबसे अधिक लोगों की जान भी वहीं गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)