यूपी प्रशासन की महिला हेल्पलाइन 181 की 351 कर्मचारी 17 अगस्त से लखनऊ के इको पार्क में अनिश्चितकालीन धरने पर हैं. उनका कहना है कि उन्हें जुलाई 2019 से वेतन नहीं मिला है.
लखनऊः उत्तर प्रदेश की महिला हेल्पलाइन 181 की 351 कर्मचारी अनिश्चितकालीन धरने पर हैं.
द क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इन कर्मचारियों को जुलाई 2019 से वेतन नहीं मिला है, जिसके विरोध में वह लखनऊ के इको पार्क में 17 अगस्त से धरने पर हैं.
हेल्पलाइन की कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने सामूहिक रूप से जरूरतमंद पांच लाख से अधिक महिलाओं की मदद की है, जिसके तहत उन्हें काउंसिलिंग देने से लेकर, घरेलू हिंसा से बचाना और जरूरत पड़ने पर कानूनी सहायता के लिए गाइड करना भी शामिल है.
राज्य सरकार ने 23 जुलाई को एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि हेल्पलाइन की सभी कर्मचारियों के लंबित वेतन को एक सप्ताह के भीतर जारी कर दिया जाएगा, लेकिन एक महीना बीतने के बाद भी अभी तक कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है.
एक कर्मचारी दीपशिखा का कहना है कि योगी आदित्यनाथ सरकार उनकी बातें अनसुनी कर रही है.
वह कहती हैं, ‘हम बीते एक साल से अपनी बचत से ये हेल्पलाइन चला रही हैं. हमने ऑफिस का किराया चुकाने से लेकर रेस्क्यू वैन में डीजल भरवाने तक के लिए हमारी बचत के पैसों का इस्तेमाल किया है. महिलाएं लगातार हेल्पलाइन पर कॉल कर रही हैं तो ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? हम उन्हें छोड़ नहीं सकते लेकिन अब हमारे पास इस हेल्पलाइन को चलाने के लिए संसाधन नहीं हैं.’
बता दें कि हेल्पलाइन में एक टीम लीडर का वेतन 25,000 रुपये मासिक है जबकि एक टेली काउंसलर को 18,000 रुपये और एक फील्ड काउंसलर को 20,000 रुपये महीने मिलता है.
हेल्पलाइन की एक कर्मचारी पूजा पांडेय का कहना है कि वह कई महीनों की अपॉइंटमेंट के बाद अपनी दो सहकर्मियों के साथ 17 जुलाई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके ऑफिस में मिली थीं और उनके समक्ष अपनी परेशानियों को रखा था.
कर्मचारियों ने वेतन का भुगतान न करने पर 20 जुलाई को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की चेतावनी दी थी.
23 जुलाई को राज्य कैबिनेट की बैठक में 181 महिला हेल्पलाइन को 112 पुलिस हेल्पलाइन के साथ एकीकृत करने का फैसला किया गया था, जिससे सभी 351 महिलाएं बेरोजगार हो जाएंगी.
रिपोर्ट के अनुसार, हेल्पलाइन की कई महिलाओं ने लॉकडाउन के दौरान भी सेवाएं प्रदान करना जारी रखा था.
रायबरेली की रहने वाली तहसीन अपने बुजुर्ग माता-पिता को आर्थिक तौर पर सपोर्ट कर रही हैं. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान भी मार्च से जून तक 10,000 महिलाओं की काउंसिलिंग की है.
तहसीन कहती हैं, ‘अधिकतर महिलाएं फोन कर घरेलू हिंसा से उन्हें बचाने को कहती हैं. अब जब हेल्पलाइन बंद कर दी गई है तो अब ये महिलाएं किससी मदद मांगेंगी?’
तहसीन ने वेतन न मिलने पर घर चलाने के लिए उधार भी लिया है और उनका कहना है कि वह कर्जे में डूबी हुई हैं.
एक गैर लाभकारी संगठन जीवीके-ईएमआरआई इस हेल्पलाइन का कामकाज देखता है. दीपशिखा ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार पहले उनका वेतन जीवीके को देती है, जिसके बाद यह धनराशि उनके जरिये कर्मचारियों के बैंक खातों में आती हैं.
वह कहती हैं, ‘हम उत्तर प्रदेश सरकार और जीवीके के आंतरिक मतभेदों का खामियाजा भुगत रहे हैं. इससे हम यह समझ रहे हैं कि इन दोनों के बीच कमीशन को लेकर विवाद है और इस विवाद में हम सब कुछ हार गए हैं.’
द क्विंट द्वारा जीवीके से संपर्क किया गया था, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला.
मालूम हो कि प्रदेश में मुश्किल में फंसी महिलाओं को मदद सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 2016 में अखिलेश यादव सरकार द्वारा इस महिला हेल्पलाइन 181 की शुरुआत की गई थी.