चारा घोटाले में दोषी पाए गए लालू के साथ गठबंधन बनाते समय नीतीश का भ्रष्टाचार विरोधी छवि का ख्याल कहां चला गया था. 2015 के बाद बिहार में घटी हर छोटी-बड़ी घटना को लेकर लालू-नीतीश की इस सियासी दोस्ती पर सवाल उठे, लेकिन नीतीश ने चुप्पी साध रखी थी.
बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन में खलबली मची हुई है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई के एफआईआर दर्ज करने के बाद से दोनों सहयोगी दल खुलकर आमने-सामने आ गए हैं.
गौरतलब है कि सीबीआई ने बतौर रेल मंत्री लालू यादव के कार्यकाल में टेंडरों में हुई हेराफेरी के मामले में तेजस्वी यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है. पिछले दिनों इस मामले में तेजस्वी से भी करीब छह घंटे सवाल भी किए गए थे.
इस घटनाक्रम के बाद से जदयू और उसके नेता नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के मसले पर जीरो टॉलरेंस की बात कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि नीतीश की कुल जमा राजनीतिक पूंजी है उनकी साफ सुथरी छवि और वो इसके लिए किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं.
जदयू विधायकों के बैठकों का दौर जारी है. तेजस्वी यादव को सफाई का मौका देने के लिए बार-बार डेडलाइन दी जा रही है. तो वहीं राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने अपने बेटे तेजस्वी के इस्तीफे से साफ इनकार कर दिया है. हालांकि उन्होंने कहा था कि गठबंधन बना रहेगा. पार्टी और तेजस्वी भ्रष्टाचार को लेकर की गई सीबीआई की कार्रवाई को ‘राजनीति से प्रेरित’ बता रहे हैं.
जदयू और उसके मुखिया नीतीश कुमार इस सफाई से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं. सियासत की कखग से बखूबी वाकिफ नीतीश कुमार इस सफाई से क्यों संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं. इस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. आखिर क्यों नीतीश को ‘अतिशुद्धता’ दांव का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.
वो भी एक ऐसे दौर में जब इस्तीफे की बात पर भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का वादा करने वाली केंद्र सरकार के मंत्री राजनाथ सिंह का कहना था कि ये एनडीए की सरकार है यूपीए की नहीं और यहां इस्तीफे नहीं होते. ये अलग बात है कि तेजस्वी के इस्तीफे की मांग भाजपा की तरफ से सबसे ज्यादा की जा रही है.
वैसे भी यह कोई पहला मौका नहीं है. अगर महागठबंधन के इतिहास को देखें तो ऐसे कई मौके आए जब नीतीश कुमार की सुशासन छवि और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर गंभीर सवाल खड़े हुए, लेकिन तब नीतीश इसे बखूबी पचा गए.
उससे भी पहले चारा घोटाले में दोषी पाए गए लालू प्रसाद के साथ गठबंधन बनाते समय नीतीश का भ्रष्टाचार विरोधी छवि का ख़्याल कहां चला गया था. 2015 के बाद बिहार में घटी हर छोटी-बड़ी घटना को लेकर लालू-नीतीश की इस सियासी दोस्ती पर सवाल उठे, लेकिन नीतीश ने चुप्पी साध रखी थी.
तो वहीं दूसरी ओर नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, जीएसटी और फिर राष्ट्रपति चुनाव के वक्त अपने अलग स्टैंड से नीतीश ने भी महागठबंधन के सहयोगी दलों को चौंकाया और राजद प्रमुख समेत कांग्रेस ने इस पर चुप्पी साधे रखी.
जानकारों का कहना है कि बिहार में महागठबधंन की सरकार पर लालू परिवार का वर्चस्व बढ़ गया था. लालू की छवि भ्रष्टाचार वाली थी लेकिन नीतीश के नेतृत्व में उनके बेटों खासकर तेजस्वी की बेहतर छवि बनकर सामने आ रही थी, यह नीतीश को बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए नीतीश ने यह दांव चला है.
वैसे भी इससे नीतीश को दोहरा फायदा मिलने की उम्मीद है. पहला उनकी भ्रष्टाचार विरोधी छवि मजबूत होगी और दूसरी वो तेजस्वी का इस्तीफा लेकर सरकार पर पड़ने वाले राजद के दबाव से छुटकारा पा जाएंगें. अभी महागठबंधन से बाहर जाने का उनका कोई इरादा नहीं है.
कुछ जानकार नीतीश के इस कदम के पीछे भाजपा का हाथ भी बता रहे हैं. उनका मानना है कि नीतीश के दोनों हाथ में लड्डू है. अगर वह महागठबंधन छोड़ते हैं तो भाजपा उन्हें हाथोहाथ लेने के लिए तैयार है.
पटना में रहने वाले पत्रकार सुनील कुमार झा कहते हैं,’ बदलाव जदयू के स्टैंड में आया है. इसके नेता यह दावा कर रहे हैं कि पार्टी अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करेगी जबकि राजद प्रमुख पर तो पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हो चुके थे. अभी राजद का स्टैंड पूरी तरह से साफ है कि तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे. दूसरी ओर जदयू के इस स्टैंड के पीछे भाजपा का हाथ है या नहीं ये कन्फर्म नहीं है लेकिन इसका जनता के बीच जो मैसेज गया है वो बिल्कुल साफ है कि भाजपा और जदयू की मिलीभगत से लालू के परिवार पर छापे पड़ रहे हैं.’
हालांकि द वायर के साथ बातचीत में जदयू प्रवक्ता केसी त्यागी का कहना है कि जब तक राम मंदिर, यूनिफॉर्म सिविल कोड और अनुछेद 370 भाजपा के एजेंडे में शामिल है तब तक उसके साथ गठबंधन करने का सवाल ही नहीं पैदा होता है.
वहीं, एक दूसरे इंटरव्यू में उन्होंने महागठबधंन के साथ जदयू की असहजता की बात को भी स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि भाजपा के साथ गठबंधन में हम लोग ज्यादा सहज थे.
पटना के ही पत्रकार सूरज कुमार कहते हैं, ‘नीतीश ने हमेशा सिद्धांतों के बजाय सत्ता की राजनीति की है. केंद्र और लालू की लड़ाई में सबसे ज्यादा फायदे में वही हैं. एक कठिन दौर में वह सहयोगी लालू केे बजाय भाजपा के करीब खड़े दिखाई दे रहे हैं. ऐसे ही भाजपा को जब उनके सहयोग की जरूरत थी तब वह उससे दूर हो गए. लेकिन वह सत्ता के हमेशा करीब नजर आते हैं.’
फिलहाल बिहार में सत्ताधारी गठबंधन को लेकर तमाम विश्लेषण जारी हैं लेकिन ये बात कंफर्म है कि भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस वाली बात महागठबंधन के इस संकट की मूल वजह नहीं है.