मामला उत्तर प्रदेश के आगरा ज़िले का है. पांच वर्षीय बच्ची के पिता के टीबी से पीड़ित हैं. परिवार के पास पिछले एक महीने से कोई काम नहीं था और हाल के दिनों में उनके पास भोजन भी खत्म हो गया था.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने आगरा में पांच साल की एक बच्ची की कथित तौर पर भूख और बीमारी से हुई मौत मामले में मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए रविवार को उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया.
आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजे नोटिस में चार हफ्ते में प्रशासन द्वारा पीड़ित परिवार के पुनर्वास और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के मामले में रिपोर्ट देने को कहा.
एनएचआरसी ने कहा कि मुख्य सचिव से उम्मीद की जाती है कि वह सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी करेंगे, ताकि भविष्य में इस तरह की क्रूर और लापरवाही की घटना दोबारा नहीं हो.
गौरतलब है कि मीडिया में खबर आई थी कि पांच वर्षीय बच्ची सोनिया के पिता के तपेदिक के शिकार होने की वजह से बच्ची को भोजन एवं इलाज नहीं मिल पाया और तीन दिन तक बुखार से ग्रस्त होने के बाद शुक्रवार को उसकी मौत हो गई.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, एनएचआरसी ने पाया कि ‘पांच साल की मासूम बच्ची की भूख और बीमारी से मौत हो गई है, जबकि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित कई सामाजिक कल्याण योजनाएं मौजूद हैं.’
आयोग ने कहा, ‘लॉकडाउन की अवधि के दौरान, सरकारी एजेंसियों ने विशेष रूप से गरीब, प्रवासी मजदूरों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं.’
एनएचआरसी ने कहा, ‘राज्य सरकार ने कई बयान दिए हैं कि वे गरीब लोगों के लिए भोजन, आश्रय और आजीविका सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और मजदूरों और श्रम कानूनों से संबंधित मुद्दों पर काम कर रहे हैं, लेकिन यह दिल दहला देने वाली घटना एक अलग तस्वीर दिखाती है.’
आयोग ने कहा, ‘एक गरीब लड़की ने अपनी जान गंवा दी है जबकि परिवार की आजीविका चलाने वाले ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) से पीड़ित है और बिस्तर पर पड़ा हुआ है. परिवार न केवल आर्थिक रूप से गरीब है, बल्कि अनुसूचित जाति का है, जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विशेष योजनाओं की घोषणा की गई है.’
इसे स्थानीय प्रशासन द्वारा घोर लापरवाही के कारण मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक गंभीर मुद्दा बताते हुए एनएचआरसी ने कहा कि यह स्थानीय लोक सेवकों की जिम्मेदारी है कि वे योजनाओं को ईमानदारी से लागू करें, ताकि गरीब और जरूरतमंदों को लाभ मिल सके लेकिन निश्चित तौर पर इस मामले में ऐसा नहीं किया गया था.
एनएचआरसी ने कहा, ‘अगर अधिकारी ईमानदार और सतर्क होते, तो एक बहुमूल्य मानव जीवन का बचाया जा सकता था.’
आयोग ने कहा, ‘स्थानीय अधिकारियों ने कथित तौर पर लॉकडाउन के कारण पैदा हुए संकट में भोजन हासिल करने में परिवार की मदद करने के लिए कुछ नहीं किया. जिला प्रशासन ने कहा है कि वह पता लगाएगा कि चीजें कहां गलत हुईं और उन्होंने मामले का संज्ञान लिया और बच्चे की मौत के मामले में जांच का आदेश दिया गया है.’
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बच्ची आगरा के बरोली अहिर ब्लॉक के नागला विधीचंद गांव में अपने माता-पिता और बहन के साथ रहती थी.
बच्ची के 45 वर्षीय पिता पप्पू सिंह दिहाड़ी मजदूर हैं और 40 वर्षीय मां शीला देवी पति को काम न मिलने के बाद खुद नौकरी की तलाश में थीं.
परिवार के पास पिछले एक महीने से कोई काम नहीं था और हाल के दिनों में उनके पास भोजन भी खत्म हो गया था.
बच्ची कमजोर हो गई थी और उसे पिछले तीन दिनों से बुखार था. वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकी और 21 अगस्त की रात भूख और बीमारी से उसकी मौत हो गई.
इससे पहले साल 2016 में नोटबंदी के ठीक बाद पैसे की कमी के कारण पप्पू और शीला के बेटे रोहित की भी मौत हो गई थी.
रिपोर्ट के अनुसार, 400 वर्ग फुट के घर की छत टपकती रहती है और बिजली का बिल न भर पाने के कारण पिछले साल उनका बिजली का कनेक्शन भी काट दिया गया था. उनके पास मोबाइल फोन भी नहीं है.
सोनिया की 16 वर्षीय बहन ने कहा, ‘हम लोगों से खाना मांगकर काम चला रहे थे लेकिन पिछले 10 दिनों से हमें वह भी नसीब नहीं पा रहा था. हमारे पास राशन कार्ड नहीं है और लॉकडाउन के दौरान किसी तरह की मदद नहीं मिली.’
ग्राम प्रधान राजेंद्र सिंह ने कहा, ‘गांव में 274 दलित परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं हैं. मैंने आवेदन दिया था, लेकिन सबडिविजन कार्यालय ने कोई कार्यवाही नहीं की. मैं कोशिश कर व्यक्तिगत क्षमता के आधार पर मदद करूंगा.’
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, जिला प्रशासन ने रविवार को परिवार को न सिर्फ राशन कार्ड, बैंक खाता और उज्ज्वला गैस कनेक्शन उपलब्ध करवाया बल्कि बच्ची के टीबी पीड़िता पिता के मुफ्त इलाज का भी आश्वाशन दिया और दोनों बहनों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करने की भी बात की.
उत्तर प्रदेश सरकार परिवार को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर उपलब्ध करवाने पर भी काम कर रही है. वहीं, ग्राम प्रधान ने उनके लिए शौचालय बनवाने का वादा किया है.
तत्काल राहत के तौर पर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने परिवार को 50 किलो गेहूं, 40 किलो चावल और पांच लीटर खाने का तेल दिया. इसके साथ ही स्थानीय लोगों ने सब्जी, फल और अन्य रोजमर्रा की सामग्री मुहैया कराया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)