बीते रविवार को अभिनेत्री कंगना रनौत ने ट्विटर पर भारत में जाति-व्यवस्था, आरक्षण और भेदभाव को लेकर टिप्पणियां की थीं.
डियर कंगना रनौत,
आशा करती हूं कि आप एकदम अच्छी होंगी. कल मेरे सामने आपका एक ट्वीट आया, जिसे पढ़कर बहुत दुख हुआ.
मैं शुरुआत में आपको बेहद पसंद करती थी और आपकी लगभग सभी फिल्में देखती थी. आपका चुलबुलापन, एक्टिंग, फिल्मों का विषय कई बार मुझे पसंद आया, लेकिन शायद असल जिंदगी में आप इससे बिल्कुल अलग हैं.
द प्रिंट के संस्थापक शेखर गुप्ता ने रविवार को एक ट्वीट किया था, जहां उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल का एक लेख शेयर किया था. लेख में ओपरा विनफ्रे द्वारा अमेरिका के सौ सीईओ को जाति पर किताब भेजे जाने और भारत के परिप्रेक्ष्य में बात की गई थी.
Cast system has been rejected by modern Indians, in small towns every one knows it’s not acceptable anymore by law and order its nothing more than a sadistic pleasure for few, only our constitution is holding on to it in terms of reservations, Let Go Of It, Lets Talk About It 🙏
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) August 23, 2020
आपने इस पर जवाब देते हुए तीन बातों को लिखा– पहला, आधुनिक भारतीयों (मॉडर्न इंडियंस) ने जातिगत व्यवस्था (कास्ट सिस्टम) को नकार दिया है.
दूसरा, गांव-कस्बों में भी सख्त कानून के तहत कास्ट सिस्टम अस्वीकार्य है… और तीसरा और सबसे जरूरी बिंदु- आपने कहा कि हमारे संविधान ने आरक्षण को पकड़े हुआ है.
मैं आपसे इन्हीं बिंदुओं के इर्द-गिर्द बात करूंगी. कंगना जी, मैं भी दलित समाज से आती हूं. अपने परिवार ही नहीं बल्कि खानदान की पहली लड़की हूं, जिसने एम.फिल तक पढ़ाई की.
मेरे घर में पढ़ाई का माहौल ही नहीं था. मेरे पापा-मम्मी मजदूर थे. मम्मी तो आज भी मजदूरी करती हैं, चिलचिलाती धूप में सिर पर मिट्टी-पत्थर के तसले उठाती हैं.
दोनों ही पढ़े-लिखे नहीं थे. लेकिन हमेशा से अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा देखना चाहते थे. वे चाहते थे कि जो काम उन्होंने किया है, वो काम उनके बच्चों को न करना पड़े.
लेकिन बावजूद इसके उन्होंने कभी पढ़ाई के लिए फोर्स नहीं किया. कभी डंडा लेकर हमारे पीछे नहीं दौड़े. उनका कहना था कि पढ़ाई के लिए खुद में लगन होनी चाहिए.
हम पांच-बहन भाई हैं. धीरे-धीरे सबने पढ़ाई छोड़ दी लेकिन मैंने पढ़ाई का साथ नहीं छोड़ा. बचपन में अपने आप से एक वादा किया था कि जब तक पढ़ाई की सीढ़ी खत्म नहीं होग, तब तक पढ़ती जाऊंगी, चाहे बिल्कुल पासिंग मार्क्स ही क्यों न आए.
लेकिन उस समय अपने खुद से वादा करते समय भूल गई थी कि कितना भी पढ़ लूं, आगे चलकर इन सीढ़ियों में दलित होने के कारण कांटें बिछे हुए मिलेंगे.
आपको पता होना चाहिए कि आज जो शिक्षा मैं हासिल कर पाई हूं, वो सब सिर्फ आरक्षण की वजह से ही संभव हो पाया है.
मैं दिल्ली जैसे शहर में पली-बढ़ी हूं, इसलिए आरक्षण के महत्व को समझ पाई, इसीलिए अपना अधिकार भी ले पाई.
लेकिन आज भी लाखों-करोड़ों लोग हैं जो दलित/पिछड़ी जाति के कारण पढ़ना तो दूर अपनी बात भी कथित सवर्णों के आगे नहीं रख पाते हैं. उन्हें नहीं पता आरक्षण और शिक्षा उनका मूलभूत अधिकार है.
आपने ये भी कहा कि आधुनिक भारतीय जाति व्यवस्था को नकार रहे हैं. जैसा मैंने बताया कि मैं दिल्ली में पली-बढ़ी हूं और आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि मैंने एक इंटरनेशनल संस्थान में नौकरी की, जहां मुझे जातिवादी प्रोग्रेसिव-लिबरल और आपके अनुसार मॉडर्न इंडियंस मिले, जिनकी वजह से मैं अपनी नौकरी खो चुकी हूं क्योंकि मैं एक दलित हूं.
वे नहीं चाहते थे कि मैं उनके बराबर में बैठकर काम करूं इसलिए उन्होंने मुझे निकालना सही समझा.
ये सिर्फ उस संस्थान की बात है बल्कि हर जगह, हर क्षेत्र में देखा जा सकता है. कहीं भी आपको दलित-ओबीसी-आदिवासी समाज के लोग उच्च पदों पर नहीं दिखेंगे.
हां, अगर कुछ जगह दिखेंगे तो वो सरकारी आंकड़ा होगा, जहां आज भी आरक्षण है और उनकी मजबूरी है हमारे समाज के लोगों को रखना क्योंकि उनके लिए सीट रिज़र्व होती है. वहां भी कई बार चालाकी कर दी जाती है, पर उस पर अभी बात नहीं.
अगर आपको लगता है कि आरक्षण का गलत फायदा उठाया जाता है या संविधान की वजह से आरक्षण के अंतर्गत आने वाले समाज ने इसे जबरदस्ती पकड़ कर रखा हुआ है, तो मैं आपसे जानना चाहती हूं कि क्या कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के 31 जजों में में आज भी दलित समाज से केवल एक जज है, ओबीसी के दो और एसटी का तो एक भी नहीं है.
क्या कारण है कि मेनस्ट्रीम मीडिया में एक भी संपादक दलित समाज से नहीं है.
आपने कहा कि आरक्षण की वजह से मेरिटधारी डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट आदि को काफी नुकसान होता है, लेकिन क्या इन आंकड़ों पर आपको गुस्सा नहीं आता!
अगर हम सिनेमा की ही बात करें, तो मुझे सिनेमा में भी कोई बड़ा नाम याद नहीं आता जो इस समाज से हो. अब आप और आप जैसे जाति पर गर्व करने वाले यहां कहेंगे कि क्या सिनेमा में भी आरक्षण लागू करवा दें!
तो मैं यहां कहना चाहूंगी कि मैं भी चाहती हूं कि आरक्षण खत्म होना चाहिए लेकिन उससे पहले आप और आप जैसे सवर्ण अपनी जाति पर गर्व करना तो छोड़ें.
वे लोग, जो अपनी जाति पर गर्व करते हैं और दूसरों की जाति को गाली बना देते हैं. आपको याद है न सलमान खान, शिल्पा शेट्टी, सोनाक्षी सिन्हा और युवराज सिंह जैसे मॉडर्न इंडियंस ‘भंगी’ जैसा दिखना नहीं चाहते.
उनके लिए भंगी समाज के लोग आज भी गाली बनाने के काम आते हैं. मुझे लगता है जितने नाम मैंने गिनाए हैं वे आपके अनुसार मॉडर्न इंडियंस तो होंगे ही..!
इसी जाति के कारण संस्थागत हत्याएं हो जाती हैं, जो सबकी नजरों में आत्महत्या होती हैं, लेकिन असल में तो वो सवर्णों द्वारा मर्डर किया जाता है, जैसे रोहित वेमुला, पायल तड़वी… इनमें एक नाम मेरा भी होने जा रहा था.
यही ‘मॉडर्न इंडियंस’ उस समाज को परेशान करने में कोई मौका नहीं छोड़ते, जो दलित और पिछड़े हैं.
आपने कहा कि अब जाति व्यवस्था स्वीकार्य नहीं है लेकिन इसे भी आप तब समझ पाती जब अपने राजपूत जाति का होने पर गर्व करना बंद कर देतीं. क्योंकि आज भेदभाव का तरीका बदल गया है.
यही गर्वित रहने वाला समाज इस समाज के साथ उठता-बैठता है, खाता-पीता है लेकिन उसके साथ और उसके नीचे काम नहीं करना चाहता.
अगर गलती से कोई वहां तक पहुंच भी जाता है तो उसे निकालने की पूरी राजनीति खेलनी शुरू कर दी जाती है.
कंगना जी, क्या आपने कभी पता करने की कोशिश की है कि सीवर साफ करने वालों की जाति क्या होती है?
वैसे तो पता करने की आपको यहां जरूरत नहीं क्योंकि वे सब एक ही समाज के हैं, लेकिन क्या आपके मन में कभी ये सवाल नहीं आया कि वे सब एक ही समाज के क्यों हैं, किसी दूसरे समाज या किसी सवर्ण समाज के क्यों नहीं?
क्यों उनकी मौत पर भी इस मॉडर्न इंडिया और मॉडर्न इंडियंस के बीच चुप्पी रहती है?
अगर यहां भी आपको कुछ नज़र नहीं आता तो, आपको एक बार उत्तर प्रदेश और बिहार घूमकर आना चाहिए. शायद आपने डोम समाज का नाम सुना हो.
आज भी डोम समाज के लोग गांव से बाहर रखे जाते हैं. वे गांव के अंदर तक नहीं आ सकते, फिर किसी से मिलना, बैठना, खाना-पीना तो दूर की बात है.
क्या वो आज के मॉडर्न इंडिया में फिट नहीं बैठते? उनका खाना-पानी सब अलग होता है.
अगर आपने थोड़ा सा पढ़ा हो और इस समाज को जानने की रुचि रही होगी, तो आपने देवदासी प्रथा के बारे में जरूर सुना होगा. आप मुलाकरम (ब्रेस्ट टैक्स) के बारे में जानती होंगी.
इनमें पिछड़ी जाति की महिलाओं को मंदिर में भेज दिया जाता था और वहां उनका यौन शोषण किया जाता है. इसी तरह मुलाकरम में पिछड़ी जाति की महिलाओं को अपनी छाती ढकने की अनुमति नहीं थी.
अगर कोई महिला इसे ढकती, तो उसे टैक्स देना होता था. गौर कीजिए, ये सब इसी समाज से आने वाली महिलाओं के साथ ही होता था.
हाल ही में मैंने बाबा साहेब आंबेडकर की ‘वेटिंग फॉर अ वीजा’ किताब की कहानियां पढ़ी, जहां उन्होंने बताया है कि किस तरह उनकी जाति के वजह से उनकी डिग्रियों, तजुर्बे, काबिलियत और शिक्षा, सबको ताक पर रख दिया गया.
लोगों को याद रही, तो केवल उनकी जाति, जिसकी वजह से उन्हें एक नहीं बल्कि कई बार प्रताड़ित किया गया. क्या आपको उनकी काबिलियत पर भी शक है?
उन्होंने यह सब बहुत करीब से देखा, तभी वे संविधान में आरक्षण का प्रावधान करके गए, नहीं तो आज जहां-तहां जो उनके समाज के लोग शिक्षा और आरक्षण की वजह से दिख भी जाते हैं, वे कभी ना दिख पाते.
आपने कहा कि गांव-कस्बों में सख्त कानून के तहत जाति व्यवस्था स्वीकार्य नहीं है.
वैसे तो काफी कुछ इस बारे में ऊपर बता ही दिया है लेकिन अगर आपको अब भी विश्वास न हो कि जाति की खाई इस देश में कितनी गहरी है तो ये जानने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी है.
आपको बस रोज़ाना कोई भी एक अख़बार उठाकर पढ़ना है. आपको रोज़ कोई एक ख़बर तो मिल ही जाएगी कि जाति की वजह से कहीं किसी को मार दिया, तो कहीं किसी का रेप कर दिया, कहीं मॉब लिंचिंग कर दी, तो कहीं मरने पर मजबूर कर दिया गया.
मैंने ऐसी कई रिपोर्ट भी की हैं, अगर आप कहेंगी तो उनके लिंक आपको भेज दूंगी कि आप देखें कि जाति की वजह से किसी को क्या-क्या खोना पड़ता है.
जिस समाज से मैं आती हूं, वहां रहकर तो यही लगता है कि हमें ऊंचे सपने देखने का कोई हक़ नहीं.
मैं भी पढ़-लिखकर अच्छी जगह नौकरी करना चाहती थी. कुछ करना चाहती थी, लेकिन मुझे अपनी जाति की वजह से नौकरी गंवानी पड़ी.
सबके सामने सच बोलने की हिम्मत की, तो कहीं भी नौकरी नहीं मिल रही. फिर भी मैंने आज भी सच का साथ नहीं छोड़ा है.
बावजूद इन सबके मैं बाबा साहेब के संविधान पर यकीन रखती हूं कि आज नहीं तो कल जरूर अच्छा होगा. आशा करती हूं कि ये सब जानने के बाद आप अपना नज़रिया बदलेंगी.
बातें तो बहुत हैं, जो आपको बताना चाहती हूं लेकिन आज बस इतना ही. धन्यवाद और आभार.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)