नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता से पाबंदी हटने के बाद पार्टी ने हाईकोर्ट से रिहाई की याचिका वापस ली

जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बाद हिरासत में लिए गए नेशनल कॉन्फ्रेंस के 16 सदस्यों को रिहा करने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके जवाब में प्रशासन ने कहा था कि उनकी पार्टी का कोई नेता हिरासत में नहीं है.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बाद हिरासत में लिए गए नेशनल कॉन्फ्रेंस के 16 सदस्यों को रिहा करने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके जवाब में प्रशासन ने कहा था कि उनकी पार्टी का कोई नेता हिरासत में नहीं है.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने बीते सोमवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) द्वारा 16 पार्टी नेताओं को नजरबंदी से रिहा करने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के वकील शारिक रेयाज ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘चूंकि हिरासत में लिए गए सदस्यों को रिहा कर दिया गया था और पिछले सप्ताह बुलाई गई बैठक सफलतापूर्वक आयोजित की गई, जिसमें हिरासत में लिए गए नेता शामिल हो पाए थे, इस तरह हमारे उद्देश्य की पूर्ति हो चुकी थी. हमारे द्वारा कहे जाने पर कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया.’

पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला द्वारा 13 जुलाई को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी, जिसमें उनके नेताओं की हिरासत को ‘असंवैधानिक और अवैध’ करार दिया गया था. हिरासत में लिए गए पार्टी के एक पदाधिकारी की मृत्यु भी हो चुकी है.

जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 11 अगस्त को अदालत को बताया कि पिछले साल पांच अगस्त से पार्टी के किसी भी नेता को हिरासत में नहीं लिया गया था.

फारूक ने बाद में याचिका में नामित नेशनल कॉन्फ्रेंस के सहयोगियों की एक बैठक बुलाई और वे पिछले सप्ताह उनके आवास पर उनसे मिलने में सक्षम हो पाए थे. इसलिए सोमवार को याचिका खारिज कर दी गई.

इस बैठक में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर और पूर्व मंत्री मोहम्मद शफी उरी, अब्दुल रहीम राथर और नासिर सोगामी गुपकर रोड स्थित अब्दुल्ला के आवास पर बैठक के लिए पहुंचे थे.

उत्तरी कश्मीर से लोकसभा सदस्य मोहम्मद अकबर लोन भी अब्दुल्ला के आवास में जाते देखे गए थे.

नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस सहित जम्मू कश्मीर की मुख्यधारा की सभी राजनीतिक पार्टियों ने बीते 22 अगस्त को बैठक के बाद एक बयान जारी कर संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली के लिए प्रयास करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा थी कि उनकी सभी अन्य राजनीतिक गतिविधियां उसी के अधीन होंगी.

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय को स्थानीय प्रशासन द्वारा यह सूचित किए जाने के बाद कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के 16 नेताओं में से कोई भी हिरासत में नहीं है, पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाने का फैसला किया था.

पार्टी ने अदालत में दावा किया था कि उसके 16 नेताओं को गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाया गया है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बीते 12 अगस्त को जारी बयान में कहा था कि पार्टी के विभिन्न नेताओं को गैर-कानूनी नजरबंदी से मुक्त कराने के लिए पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसने सरकार के रुख पर संज्ञान लिया है.

बयान में कहा था, ‘मामले में दाखिल जवाब के अध्ययन के दौरान पार्टी ने गौर किया कि सरकार ने उच्च न्यायालय में कहा कि कोई नेता हिरासत में नहीं है और जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ कहीं भी आने-जाने को स्वतंत्र है.’

पार्टी के अनुसार, ‘उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत सरकार के रुख पर भरोसा करते हुए कि पार्टी के सदस्य कहीं भी आने जाने के लिए मुक्त हैं, एनसी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने अली मोहम्मद सागर, अब्दुल रहीम राथर, मोहम्मद सफी उरी और नासिर असलम वाणी सहित पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों को 20 अगस्त 2020 को शाम पांच बजे अपने आवास पर आमंत्रित किया है.’

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा था कि उसे उम्मीद है कि हिरासत में रखे गए पार्टी सदस्य वास्तव में आजाद हैं और निर्धारित दिन सफलापूर्वक बैठक होगी.

गौरतलब है कि फारूक और उमर अब्दुल्ला ने 13 जुलाई को अपनी पार्टी के 16 नेताओं और कार्यकर्ताओं को नजरबंदी से रिहा करने की मांग करते हुए जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में 16 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दाखिल की थीं. याचिका में दलील दी गई है कि उन्हें संविधान में प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार का खुला उल्लंघन करते हुए हिरासत में रखा जा रहा है.

याचिका में यह भी कहा गया था कहा गया था कि ये लोग एक साल से अधिक समय से हिरासत में हैं. इनमें से एक सैयद मोहम्मद शफी की मौत याचिका दायर करने के बाद हो गई.

इसके जवाब में पिछले महीने अतिरिक्त महाधिवक्ता बशीर अहमद डार ने कहा कि याचिका का मकसद न केवल आश्चर्यचकित करने वाला बल्कि स्तब्ध करने वाला भी है क्योंकि न तो कोई कानूनी कार्यवाही चल रही है न ही अपेक्षित है. इसी तरह का जवाब कश्मीर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक ने भी अदालत में दाखिल किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)