कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन की मांग के लिए पार्टी के 23 नेताओं ने पत्र लिखा, जिसके बाद कार्य समिति की बैठक में अगले छह महीने में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करने की बात कही गई. जानकारों का कहना है कि पार्टी ने घिसा-पिटा रवैया अपनाया. उनके पास बदलाव लाने का एक बेहतरीन मौक़ा था, जिसे उन्होंने फिर गंवा दिया.
बीते सोमवार को हुई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक से ठीक पहले 23 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं द्वारा पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे गए पत्र के कारण सीडब्ल्यूसी की बैठक में काफी हंगामा हुआ.
हालांकि, सुबह पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने वाली सोनिया गांधी को शाम होने तक पद पर बने रहने के लिए मना लिया गया.
दरअसल, पूर्णकालिक एवं जमीनी स्तर पर सक्रिय अध्यक्ष बनाने और संगठन में ऊपर से लेकर नीचे तक बदलाव की मांग को लेकर सोनिया गांधी को 23 वरिष्ठ नेताओं की ओर से पत्र लिखे जाने की जानकारी सामने आई.
पिछले छह सालों में लोकसभा एवं विभिन्न विधानसभा चुनावों में लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में मजबूत बदलाव लाने, जवाबदेही तय करने, नियुक्ति प्रक्रिया को मजबूत बनाने और हार का उचित आकलन करने की मांग की थी.
पत्र में कहा गया था कि पार्टी का प्रदर्शन सुधारने के लिए ऊपर से लेकर नीचे तक के नेतृत्व में व्यापक परिवर्तन लाने और फैसले लेने के लिए एक मजबूत तंत्र की स्थापना की जरूरत है.
सोमवार को कई घंटे तक चली सीडब्ल्यूसी ती मैराथन मीटिंग के बाद यह फैसला लिया गया कि सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी और अगले छह महीने में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा.
इसके बाद पत्र लिखने वाले 23 कांग्रेस नेताओं के तेवर फिलहाल नरम हो गए हैं और वे फिलहाल मीडिया में अपनी बात रखने से परहेज कर रहे हैं.
द वायर ने जब 23 में से कुछ नेताओं से बात करनी चाही, तब विवेक तन्खा, जितिन प्रसाद ने फिलहाल इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से स्पष्ट तौर पर इनकार कर दिया.
वहीं, आनंद शर्मा ने कहा कि सोमवार की बैठक के बाद अब यह मुद्दा खत्म हो चुका है इसलिए वह कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. उन्होंने आगे की रणनीति पर भी कोई बात करने से इनकार कर दिया.
हालांकि, इससे पहले इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा था, ‘सीडब्ल्यूसी में स्वतंत्र और स्पष्ट चर्चा हुई. लेकिन कुछ गलत व्याख्याओं के कारण हमारे खिलाफ कुछ टिप्पणियां की गईं.’
उन्होंने सोनिया गांधी को लिखे गए पत्र को सभी को मुहैया कराए जाने का भी अनुरोध भी किया था.
बता दें कि सोमवार को सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद 23 नेताओं में से कुछ ने अलग से बैठक की थी, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि अभी मामला शांत नहीं हुआ है.
कांग्रेस में मची इस खींचतान पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, ‘एक ऐसे समय में जब देश में कोविड-19, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, चीनी अतिक्रमण जैसे मुद्दे हैं, जिन्हें खुद राहुल गांधी ने खुद उठाया है. साथ ही आपके सामने मोदी जैसी शख्सियत हैं और एक कैडर आधारित पार्टी है जिसके पास संसाधनों की कमी नहीं है, जो सत्ता में है, जिसकी संस्थाओं पर पकड़ है.’
वे आगे कहती हैं, ‘दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पार्टी के पास पूर्णकालिक अध्यक्ष ही नहीं है और जब यह सवाल उठाया या तो लोग उनके ऊपर ही चढ़ गए कि वे भाजपा के साथ मिले हुए हैं. यह बात भले ही राहुल गांधी ने न कही हो लेकिन और लोगों ने यह बात कही है. महाराष्ट्र के एक सीडब्ल्यूसी सदस्य ने तो कहा कि राज्य के जिन तीन नेताओं ने पत्र पर हस्ताक्षर किया है देखते हैं कि वे कैसे खुलेआम घूमते हैं मतलब धमकी दी गई है.’
ज्ञात हो कि चिट्ठी लिखने वाले 23 कांग्रेस नेताओं में तीन कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण, मिलिंद देवड़ा और मुकुल वासनिक महाराष्ट्र से हैं.
महाराष्ट्र सरकार में दुग्ध विकास मंत्री सुनील केदार ने यह पत्र लिखने के लिए तीनों से बिना शर्त की माफी की मांग करते हुए कहा कि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो वे खुलेआम नहीं घूम पाएंगे.
केदार के इस बयान पर प्रदेश कांग्रेस या केंद्रीय कांग्रेस ने कोई टिप्पणी नहीं की.
चौधरी आगे कहती हैं कि सोमवार की बैठक की एक उपलब्धि यह हुई है कि कुछ समय में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष होगा.
वे कहती हैं, ‘23 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने जो सवाल उठाए हैं वे बहुत महत्वपूर्ण सवाल हैं जो पहले ही उठाए जाने चाहिए थे. छह साल पहले उठने चाहिए थे जब पार्टी हारी, एक साल पहले उठने चाहिए थे जब पार्टी एक बार फिर हारी. पिछले साल जब कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं था तब बहुत से लोगों के दिमाग में यह प्रश्न आया था.’
वह कहती हैं, ‘अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की तबीयत ठीक नहीं है, राहुल गांधी मिलते नहीं हैं, सरकारें गिर रही हैं, मनोबल कम है. 23 लोगों ने बहुत ही हिम्मत करके बहुत ही अहम सवाल उठाए लेकिन दुर्भाग्य से कल जो हुआ वह बहुत ही घिसा-पिटा रवैया पार्टी ने अपनाया. सोनिया गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की लेकिन लोगों ने कहा कि नहीं वह जारी रखेंगी, छह महीने बाद एआईसीसी मिलेगी और नए अध्यक्ष की प्रक्रिया शुरू होगी. सोमवार की बैठक की एक उपलब्धि हुई है कि कुछ समय में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष होगा.’
हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे का मानना है कि 23 नेताओं द्वारा लिखा गया पत्र और सोमवार की बैठक में उस पर चर्चा बेमानी हो गई.
वह कहते हैं, ‘कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखे गए पत्र का कोई मतलब नहीं रह गया क्योंकि उसी शाम को कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने साफ कर दिया कि अगले छह महीने में राहुल गांधी को ही अगला पार्टी अध्यक्ष बनाया जाएगा.’
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पास एक बेहतरीन मौका था बदलाव लाने का जिसे उन्होंने एक बार फिर गंवा दिया.’
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई पत्र लिखने वाले नेताओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि बागियों में तीन धड़े शामिल हैं.’
उन्होंने इस पहलू को समझाते हुए कहा, ‘बागियों में तीन तरह के लोग हैं. पहले तो वे जो कांग्रेस पार्टी के वफादार हैं जो उसे संकट से निकालना चाहते हैं. दूसरे, जिन्हें डर है कि उन्हें दरकिनार किया जा सकता है जबकि तीसरे तरह के लोग पार्टी को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं. उनका मानना है कि ऐसे लोग आगे चलकर पार्टी को कानूनी शिकंजे में फंसाने की कोशिश कर सकते हैं.’
बागियों के अलग पार्टी बनाने या पार्टी छोड़कर जाने के सवाल पर किदवई कहते हैं, ‘बागियों के पास हर तरह विकल्प खुले होते हैं. जब विश्वनाथ, राजीव गांधी के खिलाफ खड़े हुए तो उन्होंने धीरे-धीरे करके अपनी जगह बनाई थी. इसके साथ ही शरद पवार, ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी भी अपनी अलग पार्टी खड़ी करने में सक्षम हुए. ये भी ऐसा कर सकते हैं.’
हालांकि, ऐसी किसी भी संभावना से इनकार करते हुए दुबे कहते हैं, ‘23 कांग्रेस नेताओं में से कोई भी जनाधार वाला नेता नहीं है इसलिए उनके पार्टी छोड़ने या नई पार्टी बनाने का कोई सवाल पैदा नहीं होता है. इससे पहले जितने भी नेता पार्टी छोड़कर गए हैं चाहे ममता बनर्जी हों, शरद पवार हों या जगन मोहन रेड्डी, वे सब जनाधार वाले नेता थे.’
गैर-गांधी के अध्यक्ष बनाए जाने के सवाल पर चौधरी कहती हैं, ‘सोनिया गांधी चाहती हैं कि राहुल यह जिम्मेदारी निभाएं. ऐसा नहीं होता तो पिछले साल ही कोई और बन गया होता क्योंकि सोनिया गांधी बहुत ही बेमन से तैयार हुई थीं. अभी भी छह महीने का जो समय दिया गया है वह राहुल को मनाने के लिए दिया गया है. हालांकि, राहुल और प्रियंका मना कर चुके हैं लेकिन सोनिया गांधी यह चाहती हैं.’
वे कहती हैं, ‘पार्टी के बहुत से लोग चाहते हैं कि राहुल सामने आएं क्योंकि उनका मानना है कि गांधी परिवार के बिना पार्टी नहीं चल सकती है जबकि पार्टी में ऐसे लोगों भी हैं जो मानते हैं कि राहुल के नेतृत्व के साथ पार्टी वह नहीं कर पाएगी जो उसे करना चाहिए. उनका मानना है कि गांधी परिवार खुद को पीछे रखकर ब्रांड कांग्रेस को आगे आने देना चाहिए.’
चौधरी आगे कहती हैं, ‘23 नेताओं की मांग है कि नेतृत्व सक्रिय हो और दिखाई दे. पिछले साल में राहुल गांधी फैसले लेते रहे हैं कि लेकिन नेतृत्व उनका नहीं रहा है. दूसरी मांग है कि पार्टी के सभी पदों और संगठनों में चुनाव हों जिससे नई ऊर्जा आएगी. तीसरा सामूहिक नेतृत्व की बात की गई है.’
वहीं, दुबे कहते हैं, ‘एक साल पहले जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ा था तब उन्होंने कहा था कि उन्हें पूरी छूट नहीं दी जा रही है. यह क्या दर्शाता है? इसका मतलब है कि पार्टी में उनसे भी ताकतवर लोग हैं और अगर ऐसा है तो उन्हें ऐसे लोगों को पार्टी से निकाल बाहर करना चाहिए.’
वे कहते हैं कि राहुल गांधी के बाद पार्टी में उनके बराबर या अधिक ताकतवर दो ही लोग हैं और वे उनकी बहन और मां हैं.
दुबे की बातों से सहमति जताते हुए चौधरी कहती हैं, ‘पिछले साल राहुल गांधी ने फैसले लेने की स्वतंत्रता की मांग की थी. अगर कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार का सदस्य हो उससे अधिक ताकतवर कौन हो सकता है? और अगर वह कहे कि आप ए, बी, सी, डी को नहीं निकालोगे या कामराज प्लान नहीं लाओगे तो मैं पद पर नहीं रहूंगा.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘इंदिरा गांधी ने पूरी सिंडिकेड को छांट दिया था और अपनी पार्टी बना ली थी. कमान संभालकर ही सिंडिकेट से जूझा था और फिर पार्टी को एक दिशा में ले गई थीं. या तो आप यह करिए या नया नेतृत्व तैयार करिए.’
गैर गांधी के अध्यक्ष बनने के सवाल पर किदवई कहते हैं, ‘हाल में जिस किताब की चर्चा हुई और कहा गया कि राहुल और प्रियंका गैर गांधी को अध्यक्ष बनाने पर सहमति जता चुके हैं वह एक तरह का प्रोपगेंडा है क्योंकि यह जुलाई 2019 का इंटरव्यू है और उस दौरान राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया था और उनके विचार ऐसे ही थे. हालांकि, 9 अगस्त को सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद ये बातें बेमानी हो गईं.’
चौधरी आगे कहती हैं, ‘अगर कांग्रेस पार्टी के बड़े भरोसेमंद लोग आवाज उठा रहे हैं तो उसे बहुत ध्यान से सुनना चाहिए. वे किस तनाव और पीड़ा के बाद आवाज उठा रहे हैं. कांग्रेस में लोग आसानी से आवाज नहीं उठाते हैं. अगर वे आवाज उठा रहे हैं तो इसका मतलब है कि वे देख रहे हैं कि कांग्रेस मरेगी, हम मरेंगे और अगर झकझोरेंगे नहीं तो कुछ नहीं होना वाला.’
वे कहती हैं, ‘राहुल गांधी ने पत्र लिखे जाने के समय पर सवाल उठाया है. आपने छह साल पहले सवाल नहीं उठाया, एक साल पहले सवाल नहीं उठाया तो कब उठाएंगे आप. राजस्थान और मध्य प्रदेश होता ही नहीं, अगर आप इन कदमों को उठा लेते.’
चौधरी कहती हैं, ‘फिलहाल एक कमेटी की बात हुई है जो बदलाव लाने के लिए सोनिया गांधी की सहायता करेगी और बड़ा सवाल यह होगा कि क्या इन 23 में से कोई उसमें शामिल होगा या फिर से एक एके एंटनी कमेटी बनेगी. एके एंटनी की तीन-चार कमेटी बन चुकी है लेकिन उन्हें कभी जारी नहीं किया गया.’
सीडब्ल्यूसी की बैठक में उठापटक के बाद बुधवार को सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए प्रमुख अध्यादेशों पर चर्चा करने और उन पर पार्टी के विचार रखने के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसका संयोजक जयराम रमेश करेंगे.
इस समिति में पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, डॉ. अमर सिंह और गौरव गोगोई को शामिल किया गया है.
गौर करने वाली बात यह है कि समिति में सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले किसी नेता को जगह नहीं दी गई है जबकि मनीष तिवारी और आनंद शर्मा जैसे नेता अमूमन कांग्रेस की अधिकतर समितियों का हिस्सा रहते हैं.