कोरोना महामारी के चलते क़र्ज़ की किस्तों को स्थगित किए जाने के दौरान लोन पर ब्याज लेने के मुद्दे पर अपना रुख़ साफ नहीं करने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि समस्या आपके लॉकडाउन द्वारा पैदा की गई है. ऐसा प्रतीत होता है कि भारत सरकार स्वतंत्र फैसला नहीं ले रही है और आरबीआई पर निर्भर है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कोविड-19 महामारी के कारण कर्ज की किस्तों को स्थगित किए जाने के दौरान लोन या ईएमआई पर ब्याज और ब्याज पर लिए जाने वाले ब्याज को माफ करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की निष्क्रियता को संज्ञान में लिया और निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर इस बारे में अपना रुख साफ करे.
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं, लेकिन वह ‘आरबीआई के पीछे छिप रही है.’
पीठ में जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह भी शामिल हैं.
द हिंदू की के अनुसार, पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘समस्या आपके लॉकडाउन द्वारा पैदा की गई है. ऐसा प्रतीत होता है कि भारत सरकार स्वतंत्र फैसला नहीं ले रही है और आरबीआई पर निर्भर है. यह केवल व्यवसाय की देखभाल करने का समय नहीं है, राहत प्रदान करने पर विचार करें.’
इस पर मेहता ने कहा कि सरकार केंद्रीय बैंक के साथ मिलकर काम कर रही है और यह कहना अनुचित होगा कि उसका कोई स्वतंत्र दृष्टिकोण नहीं है. मेहता ने तर्क दिया कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता.
इसके बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया.
पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और यह बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि कर्ज की स्थगित किस्तों की अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी और उन्होंने इसके विस्तार की मांग की.
सिब्बल ने कहा, ‘मैं केवल यह कह रहा हूं कि जब तक इन दलीलों पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक विस्तार खत्म नहीं होना चाहिए.’ मामले की अगली सुनवाई एक सितंबर को होगी.
पीठ ने आगरा निवासी गजेंद्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गई है पर कर्जदारों को इसमें कोई ठोस लाभ नहीं दिया गया है.
याचिकाकर्ता ने अधिसूचना के उस हिस्से को निकालने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया है, जिसमें स्थगन अवधि के दौरान कर्ज राशि पर ब्याज वसूले जाने की बात कही गई है. याचिकाकर्ता, जो कि एक कर्जदार भी हैं, का कहना है कि इससे उनके समक्ष कठिनाई पैदा होती है. इससे उनको भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए ‘जीवन के अधिकार’ की गारंटी मामले में रुकावट आड़े आती है.
शीर्ष न्यायालय ने इससे पहले कहा था, ‘जब एक बार स्थगन तय कर दिया गया है तब उसे उसके उद्देश्य को पूरा करना चाहिए. ऐसे में हमें ब्याज के ऊपर ब्याज वसूले जाने की कोई तुक नजर नहीं आता है.’
शीर्ष अदालत ने कहा है कि इस मामले में दो पहलुओं पर विचार किया जाना है. एक यह कि कर्ज की किस्त अदायगी से छूट के दौरान उस पर ब्याज वसूला जाएगा या नहीं और बैंकों द्वारा ब्याज के ऊपर ब्याज लिया जाएगा या नहीं.
न्यायालय ने कहा था कि यह चुनौतीपूर्ण समय है ऐसे में यह गंभीर मुद्दा है कि एक तरफ कर्ज किस्त भुगतान को स्थगित किया जा रहा है, जबकि दूसरी तरफ उस पर ब्याज लिया जा रहा है.
बता दें कि शीर्ष अदालत ने 30 अप्रैल को रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि उसके सर्कुलर में कर्ज भुगतान के संबंध में एक मार्च से 31 मई की अवधि के दौरान तीन महीने की ढील की व्यवस्था पर पूरी ईमानदारी से अमल किया जाए. इसके बाद 26 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा था.
बता दें कि सरकार ने पहली बार ऋण अदागयी में तीन महीने की छूट दी थी जो 31 मई तक थी. इसके बाद कोविड-19 की वजह से कर्ज भरने में मिली मोहलत को अब 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया था.