जिन लोगों को समन जारी किया गया है उनमें निहाल सिंह राठौड़, विप्लव तेलतुम्बड़े और एक अन्य वकील शामिल हैं. राठौड़ इस मामले में कई आरोपियों के केस लड़ रहे हैं, वहीं विप्लव तेलतुम्बड़े जाने-माने दलित अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के संबंधी हैं.
नई दिल्ली: विभिन्न अकादमिक जगत के लोगों एवं कार्यकर्ताओं से पूछताछ तथा गिरफ्तारी के बाद अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एल्गार परिषद मामले में तीन वकीलों को समन भेजा है.
एनआईए ने निहाल सिंह राठौड़, विप्लव तेलतुम्बड़े और नागपुर के एक वकील, जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते हैं, को समन जारी किया है और उन्हें 28 अगस्त को मुंबई ऑफिस में मौजूद रहने को कहा है.
33 वर्षीय राठौड़ इस मामले में कई गिरफ्तार आरोपियों के वकील हैं और साल 2018 तक सुरेंद्र गाडलिंग के साथ बतौर जूनियर वकील के रूप में काम कर थे. गाडलिंग आतंकवाद विरोधी कानूनों के विशेषज्ञ और नागपुर में एक प्रमुख वकील के रूप में जाने जाते हैं.
एल्गार परिषद मामले में गाडलिंग को 6 जून 2018 को गिरफ्तार किए जाने के बाद राठौड़ ने उनके और अन्य गिरफ्तार आरोपियों का प्रतिनिधित्व किया.
राठौड़ ने द वायर को बताया कि उन्होंने एनआईए के सामने पेश होने के लिए समय मांगा है, क्योंकि उनके एक रिश्तेदार गंभीर रूप से बीमार हैं और उन्हें उनके साथ मौजूद रहने की आवश्यकता है. हालांकि एनआईए ने राठौड़ को शुक्रवार (28 अगस्त) को मुंबई ऑफिस में 11 बजे तक मौजूद होने को कहा है.
वकील निहाल सिंह राठौड़ को उनके मानवाधिकार कार्यों के लिए जाना जाता है. वे खुद को ‘अंबेडकरवादी कार्यकर्ता’ बताते हैं और विमुक्त जनजाति से आते हैं.
उनका काम काफी हद तक महाराष्ट्र में नोमैडिक (घुमंतू) और विमुक्त जनजातियों के मुद्दों पर केंद्रित है. कई नागरिक अधिकार संगठनों के साथ जुड़े होने के साथ राठौड़ ने ‘संघर्ष वाहिनी भटके विमुक्त संगठन परिषद’ की सह-स्थापना भी की है, जो कि घुमंतू और विमुक्त जनजातियों के सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था है.
यह पहला मौका नहीं है जब जांच एजेंसी ने इस मामले में राठौड़ को निशाना बनाया है. एनआईए से पहले इस मामले की जांच कर रही पुणे पुलिस ने दावा किया था कि उसने एक अन्य आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज द्वारा कथित रूप से उनके सहयोगियों को लिखे गए एक पत्र को प्राप्त किया है, जिसमें राठौड़ का भी नाम शामिल था.
पुलिस ने आरोप लगाया था कि ‘कॉमरेड सुधा’ ने ‘कॉमरेड प्रकाश’ को ये पत्र लिखा था जिसमें वो कथित रूप से कहती हैं कि नक्सलवाद के आरोप में फंसाए गए लोगों के मामलों को लड़ने के लिए कई वकीलों को ‘जिम्मेदारी एवं रिस्क’ के साथ तैयार रहना होगा.
इस पत्र में विप्लव तेलतुम्बड़े का भी नाम शामिल था, जिसे एनआईए ने समन भेजा है.
हालांकि मामले में बचाव पक्ष के वकीलों ने पुलिस के आरोपों का खंडन किया था और वास्तव में पत्र में कई विसंगतियों की पहचान की थी. कथित रूप से भारद्वाज और एक अन्य आरोपी जेल में बंद नागरिक अधिकारी कार्यकर्ता रोना विल्सन से प्राप्त इन पत्रों में कई शब्द मराठी में थे. न तो भारद्वाज और न ही विल्सन मराठी बोलती या लिखती हैं.
इतना ही नहीं पिछले साल ये खुलासा हुआ था कि 100 से अधिक पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर निगरानी के लिए इजरायल के स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया गया था और राठौड़ इसमें से एक थे.
स्पाइवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जो आपके कंप्यूटर और मोबाइल से गोपनीय और व्यक्तिगत जानकारी चुरा लेता है.
वहीं विप्लव तेलतुम्बड़े ने कहा कि उनके पारिवारिक नाम के कारण उन पर बार-बार निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘पहले मेरे चाचा मिलिंद तेलतुम्बड़े की वजह से ऐसा होता था और अब मेरे एक दूसरे चाचा प्रो. आनंद तेलतुम्बड़े के कारण ऐसा हो रहा है.’
माना जाता है कि मिलिंद तेलतुम्बड़े प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन के एक शीर्ष नेता हैं और 1996 से कथित तौर पर कई अंडरग्राउंड आंदोलनों में शामिल रहे हैं. आनंद तेलतुंबड़े एक वरिष्ठ अकादमिक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता हैं, जिन्हें हाल ही में एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था.
विप्लव ने कहा, ‘आखिरी बार 1996 में मिलिंद काका से संपर्क हुआ था. उसी साल वे सब कुछ छोड़कर परिवार से दूर चले गए. तब से उनसे कोई संपर्क नहीं है.’ वे मिलिंद और आनंद तेलतुम्बड़े की मां के साथ में रहते हैं.
साल 2006 से लॉ प्रैक्टिस करने वाले वकील विप्लव को साल 2004 में गिरफ्तार किया गया था, जब वे पूर्वोत्तर महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में अंतिम वर्ष के छात्र थे. विप्लव पर ‘नक्सल आंदोलन’ में शामिल होने का आरोप लगाया गया था और पांच अलग-अलग मामलों में दर्ज किए गए थे. सभी मामलों में अपना नाम खारिज करवाने में उन्हें तीन साल लग गए.
साल 2007 के बाद से उनके खिलाफ कोई नया मामला दर्ज नहीं किया गया है, लेकिन विप्लव ने दावा किया कि राज्य पुलिस द्वारा उत्पीड़न बंद नहीं हुआ है.
उन्होंने आरोप लगाया, ‘पिछले दो वर्षों में विशेष रूप से एल्गार परिषद मामले की जांच शुरू होने के बाद पुलिस ने मेरे क्लाइंट को टार्गेट किया है और उन्हें मेरे बारे में जानकारी देने के लिए मजबूर किया है. उनमें से कुछ को टॉर्चर भी किया गया है.’
मालूम हो कि पिछले कुछ सालों में कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, अकादमिक जगत के लोगों, वकीलों, पत्रकारों आदि के घरों पर पुलिस द्वारा अचानक छापा मारा गया है और उन्हें ‘अर्बन नक्सल’ करार देकर गिरफ्तार किया गया है.
साल 2018 से पुलिस ने कम से कम 11 ऐसे कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था और उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने से लेकर माओवादियों के साथ संबंध रखने जैसे आरोप लगाए गए हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार होने वाले 12वें शख्स हैं.
शुरू में इन मामलों की जांच महाराष्ट्र की पुणे पुलिस कर रही थी, लेकिन पिछले साल दिसंबर में राज्य में जैसे ही कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना की सरकार आई, इस मामले को आनन-फानन में एनआईए को दे दिया गया. इसे लेकर विपक्षी दलों ने आलोचना भी की थी.
गौरतलब है कि पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में 31 दिसंबर 2017 को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ से पहले एल्गार परिषद का सम्मेलन आयोजित किया गया था.
पुलिस के मुताबिक, इस कार्यक्रम के दौरान दिए गए भाषणों की वजह से जिले के भीमा-कोरेगांव गांव के आसपास एक जनवरी 2018 को जातीय हिंसा भड़की थी.
एनआईए ने एफआईआर में 23 में से 11 आरोपियों को नामजद किया है, जिनमें कार्यकर्ता सुधीर धावले, शोमा सेन, महेश राउत, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्विस, आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा शामिल हैं.
तेलतुम्बड़े और नवलखा को छोड़कर अन्य को पुणे पुलिस ने हिंसा के संबंध में जून और अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया था.
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