38 भाषाओं को संवैधानिक दर्जा देने की मांग पर निश्चित मानदंड तैयार नहीं हुआ

लोकसभा में किरण रिजिजू ने बताया कि भाषा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकासों द्वारा प्रभावित होता है, भाषा संबंधी कोई मानदंड निश्चित करना कठिन है.

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New Delhi: Parliament during the first day of budget session in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI2_23_2016_000104A)

लोकसभा में किरण रिजिजू ने बताया कि भाषा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकासों द्वारा प्रभावित होता है, भाषा संबंधी कोई मानदंड निश्चित करना कठिन है.

New Delhi: Parliament during the first day of budget session in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI2_23_2016_000104A)
फोटो: पीटीआई

नई दिल्ली: सरकार के समक्ष संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए 38 भाषाओं का मुद्दा लंबे समय से विचाराधीन है लेकिन इन्हें आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में निश्चित मानदंड तैयार करने के प्रयासों का अब तक कोई फायदा नहीं हुआ है.

लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि अभी 38 भाषाओं का मुद्दा मंत्रालय के विचाराधीन है जिनके संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है. इनमें अंगिका, बंजारा, बज्जिका, भोजपुरी, भोटी, भोटिया, बुंदेलखंडी, गढ़वाली, गोंडी, गुज्जर, खासी, कुमाउंनी, लेप्चा, मिजो, मगही, नागपुरी, पाली, राजस्थानी आदि शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि चूंकि बोली और भाषा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकासों द्वारा प्रभावित होकर गतिशील तरीके से होता है, अत: उन्हें बोली से अलग बताने अथवा भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में भाषा संबंधी कोई मानदंड निश्चित करना कठिन है.

इस प्रकार ऐसा निश्चित मानदंड तैयार करने के संबंध में 1996 में पाहवा समिति, 2003 में सीताकांत महापात्र समिति के माध्यम से किए गए दोनों प्रयासों का कोई फायदा नहीं हुआ है.

भोजपुरी, राजस्थानी, बज्जिका, भोटी जैसी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बारे में केंद्र एवं राज्य सरकारों के आश्वासनों के अब तक पूरा नहीं होने के मद्देनजर कई बार विभिन्न स्तरों पर विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं.

भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल ने बातचीत में कहा कि भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की लंबे समय से मांग की जा रही है. इस मांग को लेकर भोजपुरी भाषी लोग काफी समय से प्रयासरत हैं. अनेक अवसरों पर सरकार से इसके लिए आश्वासन प्राप्त हुए हैं. हमें उम्मीद है कि इस मांग को जल्द ही पूरा किया जाएगा.

विभिन्न वर्गों का कहना है कि देशज बोलियों और भाषाओं को संरक्षण और प्रोत्साहन देने के लिए लंबे समय से भोजपुरी, राजस्थानी, भोंटी, बज्जिका समेत कई भाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है जो काफी समय से विचाराधीन हैं.

ऐसे समय में जब देशकाल और माहौल में काफी बदलाव आ रहा है, देशज बोलियों और भाषाओं के संरक्षण और प्रोत्साहन की काफी जरूरत है. भोजपुरी, राजस्थानी, बज्जिका, भोंटी समेत कई भाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए.

भाजपा सांसद अजय निषाद ने कहा कि बज्जिका की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है और बज्जि संघ समेत लिच्चछवी गणराज्य में पहले गणतंत्र से लेकर आजतक बज्जिका अपनी सांस्कृतिक एवं भाषायी सुगंध को बनाए हुए है. ऐसे में बज्जिका को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए.

भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दूबे ने कहा कि भोजपुरी, राजस्थानी, भोंटी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की सभी अर्हता पूरी करती हैं. ऐसे में इन भाषाओं को जल्द मान्यता प्रदान किए जाने की जरूरत है. पूर्वाचल के लोगों के लिए भोजपुरी काफी महत्वपूर्ण विषय है.

दुबे ने कहा कि उन्हें 16वीं लोकसभा के अनेक सदस्यों से भरपूर आश्वासन मिल रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनारस से सांसद बनने के बाद 20 करोड़ भोजपुरी भाषी लोगों की उम्मीदें बढ़ गई हैं.

दुबे कहते हैं कि देश के अलावा विदेशों में बोली जाने वाली भोजपुरी के साथ-साथ राजस्थानी और भोंटी भाषा को भी 22 भाषाओं की तरह संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिलने का भरोसा बढ़ा है. भोजपुरी को तो मारिशस ने जून 2011 में ही मान्यता दे दी है. बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश-विदेश के करीब 20 करोड़ लोगों की मातृभाषा भोजपुरी के साथ शुरू से हो रहे अन्याय का अंत होने की उम्मीद बढ़ गई है.