जीएसटी काउंसिल की बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि वित्त वर्ष 2020-21 में जीएसटी संग्रह में 2.35 लाख करोड़ रुपये की कमी आई है. उन्होंने इसकी भरपाई के लिए राज्यों को दो विकल्प सुझाए हैं.
नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 41वें जीएसटी काउंसिल की बैठक की अध्यक्षता करते हुए दावा किया कि इस वित्त वर्ष में ‘एक्ट ऑफ गॉड’ (भगवान का किया हुआ) के कारण अर्थव्यवस्था में संकुचन हो सकता है. सीतारमण ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में जीएसटी संग्रह में 2.35 लाख करोड़ रुपये की कमी आई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जीएसटी परिषद की पांच घंटे की बैठक के बाद सीतारमण ने कहा कि राज्यों के मुआवजे का भुगतान करने के लिए दो विकल्पों पर चर्चा की गई.
सीतारमण ने कहा, ‘इस साल मुआवजे का अंतर (2.35 लाख करोड़ अनुमानित) बढ़ गया है. यह कमी कोविड-19 के कारण भी हुई है. जीएसटी के कार्यान्वयन के कारण मुआवजे में कमी का अनुमान 97,000 करोड़ रुपये है.’
जीएसटी परिषद में पहला विकल्प यह रखा गया कि आरबीआई की सलाह से राज्यों के लिए विशेष व्यवस्था की जाए और उन्हें उचित ब्याज दर पर 97,000 करोड़ रुपये बांटे जाएं.
वित्त सचिव अजय भूषण पांडे ने कहा, ‘यह पैसा उपकर के संग्रह से 5 साल बाद चुकाया जा सकता है.’
वहीं दूसरा विकल्प यह रखा गया कि आरबीआई की सलाह से इस साल राज्यों द्वारा 235,000 करोड़ रुपये के कुल जीएसटी मुआवजे के अंतर की भरपाई की जाए.
सीतारमण ने कहा कि राज्यों ने विचार करने के लिए सात दिन का समय मांगा है और उसके बाद वित्त मंत्रालय के पास वापस आने का अनुरोध किया है.
उन्होंने कहा, ‘ये विकल्प केवल इस साल तक के लिए खुले हैं. अगले साल अप्रैल में परिस्थितियों की समीक्षा की जाएगी और जो देश के लिए अच्छा होगा उसका फैसला लिया जाएगा.’
बता दें कि राज्यों को राजस्व में कमी की भरपाई के लिए कर्ज लेने के केंद्र के सुझाव का गैर-राजग दलों के शासन वाले प्रदेश विरोध कर रहे हैं.
कांग्रेस और गैर-राजग दलों के शासन वाले राज्य इस बात पर जोर दे रहे हैं कि घाटे की कमी को पूरा करना केंद्र सरकार की सांवधिक जिम्मेदारी है. वहीं केंद्र सरकार ने कानूनी राय का हवाला देते हुए कहा कि अगर कर संग्रह में कमी होती है तो उसकी ऐसी कोई बाध्यता नहीं है.
सूत्रों के अनुसार बैठक में केंद्र के साथ-साथ भाजपा-जद (यू) शासित बिहार की राय थी कि राज्यों को कर राजस्व में कमी कमी की भरपाई के लिए बाजार से कर्ज लेना चाहिए.
बता दें कि पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा ने 26 अगस्त को सीतारमण को पत्र लिखा था कि राज्यों को जीएसटी राजस्व संग्रह में कमी को पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज लेने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए.
मित्रा ने कहा था, ‘केंद्र को उन उपकर से राज्यों को क्षतिपूर्ति दी जानी चहिए जो वह संग्रह करता है और इसका बंटवारा राज्यों को नहीं होता. जिस फार्मूले पर सहमति बनी है, उसके तहत अगर राजस्व में कोई कमी होती है, यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह राज्यों को पूर्ण रूप से क्षतिपूर्ति राशि देने के लिए संसाधन जुटाए.’
वर्ष 2017 में 28 राज्य वैट समेत अपने स्थानीय करों को समाहित कर जीएसटी लागू करने पर सहमत हुए थे. जीएसटी को सबसे बड़ा कर सुधार माना जाता है.
उस समय केंद्र ने राज्यों को माल एवं सेवा कर के क्रियान्वयन से राजस्व में होने वाली किसी भी कमी को पहले पांच साल तक पूरा करने का वादा किया था. यह भरपाई जीएसटी के ऊपर आरामदायक और अहितकर वस्तुओं पर उपकर लगाने से प्राप्त राशि के जरिये की जानी थी.
महामारी से पहले ही जीएसटी संग्रह के साथ क्षतिपूर्ति उपकर लक्ष्य से कम रहा है. इसके कारण केंद्र के लिए राज्यों को क्षतिपूर्ति करना मुश्किल हो गया.
एक तरफ जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर लक्ष्य से कम रहा तो दूसरी तरफ केंद्र ने पेट्रोल और डीजल पर उपकर बढ़ाया है. ये दोनों जीएसटी के दायरे से बाहर हैं. इसके जरिये उपकर के रूप में करोड़ों रुपये संग्रह किए गए, लेकिन उसे राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता.
मित्रा चाहते हैं कि केंद्र इसके जरिये राज्यों के राजस्व में कमी की भरपाई करे.
उन्होंने पत्र में लिखा, ‘किसी भी हालत में राज्यों से बाजार से कर्ज लेने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए, क्योंकि इससे कर्ज भुगतान की देनदारी बढ़ेगी. इससे ऐसे समय राज्य को व्यय में कटौती करनी पड़ सकती है, जब अर्थव्यवस्था में मंदी की गंभीर प्रवृत्ति है. इस समय खर्च में कटौती वांछनीय नहीं है.’
मित्रा ने यह भी कहा कि क्षतिपूर्ति भुगतान पर पीछे हटने का सवाल ही नहीं है. 14 प्रतिशत की दर का हर हाल में सम्मान होना चाहिए.
सूत्रों के अनुसार, जीएसटी परिषद की बैठक में पश्चिम बंगाल के साथ पंजाब, केरल और दिल्ली ने केंद्र से कमी की भरपाई करने को कहा.
सूत्रों ने कहा कि सीतारमण ने अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल की राय का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र अपने कोष से राज्यों को जीएसटी राजस्व में किसी प्रकार की कमी को पूरा करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है.
केंद्र सरकार ने मार्च में अटॉनी जनरल से क्षतिपूर्ति कोष में कमी को पूरा करने के लिए जीएसटी परिषद द्वारा बाजार से कर्ज लेने की वैधता पर राय मांगी थी. क्षतिपूर्ति कोष का गठन लग्जरी (आरामदायक) और अहितकर वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाकर किया गया है. इसके जरिये राज्यों को जीएसटी लागू करने से राजस्व में होने वाली किसी भी कमी की भरपाई की जाती है.
अटॉनी जनरल वेणुगोपाल ने यह भी राय दी थी कि परिषद को पर्याप्त राशि उपलब्ध कराकर जीएसटी क्षतिपूर्ति कोष में कमी को पूरा करने के बारे में निर्णय करना है.
वहीं, बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने बुधवार को कहा, ‘यह केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता है कि वह जीएसटी संग्रह में कमी के चलते राज्यों को मुआवजा दे. यह सही है कि केंद्र सरकार इसके लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं है, लेकिन उसकी नैतिक बाध्यता है.’
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार या तो बाजार धन उठा सकती है या राज्यों की ऋण लेने पर गारंटर बन सकती है.
सुशील मोदी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में राज्यों को मुआवजे के तौर पर करीब 3.65 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना है. इसमें बिहार की हिस्सेदारी 12,000 करोड़ रुपये की है.
उन्होंने कहा कि आम तौर पर राज्यों को जीएसटी व्यवस्था के तहत बनाए गए मुआवजा उपकर कोष से भुगतान किया जाता है, लेकिन अब इस कोष में भी बहुत कम राशि बची है.
सूत्रों के अनुसार, परिषद के पास कमी को जीएसटी दरों को युक्तिसंगत कर, क्षतिपूर्ति उपकर के अंतर्गत और जिंसों को शामिल कर अथवा उपकर को बढ़ाकर या राज्यों को अधिक उधार की अनुमति देने जैसे विकल्प हैं. बाद में राज्यों के कर्ज भुगतान क्षतिपूर्ति कोष में भविष्य में होने से संग्रह से किया जा सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण दर्जनभर से अधिक राज्यों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण वे देरी से वेतन जारी कर पा रही हैं और पूंजीगत व्यय में कटौती करनी पड़ रही है.
बता दें कि इस साल अप्रैल से ही लंबित जीएसटी बकाये के कारण महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और त्रिपुरा जैसे राज्यों में हैं स्वास्थ्यकर्मियों के वेतन जारी करने में देरी हो रही है. वहीं, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में शैक्षणिक विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों का वेतन देरी से जारी हो रहा है.
आर्थिक संकट के कारण राज्यों के पास पूंजीगत खर्च को बढ़ाने के विकल्प नहीं बचे हैं. पिछले कुछ सालों से राज्य केंद्र की तुलना में डेढ़ गुना राशि खर्च कर रहे हैं.
यह एक ऐसा समय है जब जीएसटी से होने वाले राजस्व में तो कमी आने के साथ ही शराब और स्टांप ड्यूटी से भी कम आय हो रही है और राज्यों को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना पड़ रहा है.
बता दें कि बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जीएसटी परिषद से ठीक एक दिन पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पुदुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी के साथ डिजिटल बैठक की थी.
इस दौरान उन्होंने कहा था, ‘जीएसटी को सहयोगात्मक संघवाद के उदाहरण के तौर पर लागू किया गया. इसमें राज्यों को पांच साल तक 14 प्रतिशत की दर से मुआवजा देने का वादा किया गया. गत 11 अगस्त को वित्त मामले की संसद की स्थायी समिति की बैठक में भारत सरकार के वित्त सचिव ने स्पष्ट तौर पर कहा कि केंद्र सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में राज्यों को जीएसटी का मुआवजा देने की स्थिति में नहीं है.’
सोनिया ने आरोप लगाया कि राज्यों को जीएसटी का मुआवजा देने से इनकार करना राज्यों और भारत के लोगों के साथ छल के अलावा कुछ नहीं है.
उन्होंने यह दावा भी किया कि केंद्र सरकार एकतरफा उपकर लगाकर मुनाफा कमा कर रही है और राज्यों के साथ मुनाफा साझा नहीं किया जा रहा है.
जीएसटी कानून के तहत राज्यों को माल एवं सेवा कर के क्रियान्वयन से राजस्व में होने वाले किसी भी कमी को पहले पांच साल तक पूरा करने की गारंटी दी गई है. जीएसटी एक जुलाई, 2017 से लागू हुआ. कमी का आकलन राज्यों के जीएसटी संग्रह में आधार वर्ष 2015-16 के तहत 14 प्रतिशत सालाना वृद्धि को आधार बनाकर किया जाता है.
जीएसटी परिषद को यह विचार करना है कि मौजूदा हालात में राजस्व में कमी की भरपाई कैसे हो.
केंद्र ने 2019-20 में जीएसटी क्षतिपूर्ति मद में 1.65 लाख करोड़ रुपये जारी किए. हालांकि उपकर संग्रह से प्राप्त राशि 95,444 करोड़ रुपये ही थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)