याकूब मेमन को क्षमादान देने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखने संबंधी शिवसेना के आरोप पर गोपाल कृष्ण गांधी ने कहा, मृत्युदंड के मामले में वे महात्मा गांधी और बीआर आंबेडकर के विचारों से प्रभावित हैं जिन्होंने सदैव फांसी का विरोध किया था.
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति पद के लिए 18 विपक्षी दलों के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी ने उस आरोप का जवाब दिया है जिसमें कहा गया था कि उन्होंने याकूब मेमन की फांसी का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि वे मृत्युदंड के खिलाफ महात्मा गांधी और बीआर आंबेडकर के विचारों से प्रभावित हैं. इसी वजह से उन्होंने आतंकवादी याकूब मेमन तथा पाकिस्तान में मृत्युदंड पाए भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को क्षमादान दिए जाने की वकालत की.
यह पूछे जाने पर कि शिवसेना ने गांधी की उम्मीदवारी का इस आधार पर विरोध किया है कि उन्होंने आतंकवादी याकूब मेमन को क्षमादान देने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखा था, गांधी ने कहा कि मृत्युदंड के मामले में वह महात्मा गांधी एवं बीआर आंबेडकर के विचारों से प्रभावित हैं जिन्होंने सदैव फांसी का विरोध किया था.
गांधी ने कहा कि हम मौत की सजा देने के खिलाफ हैं. इसी कारण हमने न सिर्फ भारत में आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी न देने की सिफारिश की, बल्कि पाकिस्तान में मृत्युदंड पाए भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को भी माफ करने के लिए नवाज शरीफ को चिट्ठी लिखी. उन्होंने कहा कि इस मामले में याकूब के लिए उन्होंने एक स्वतंत्र नागरिक के तौर पर पत्र लिखा था क्योंकि वह मृत्युदंड को गलत मानते हैं.
गोपाल कृष्ण गांधी ने मंगलवार को यह भी कहा कि वे किसी राजनैतिक दल के नहीं बल्कि, भारत के नागरिकों के प्रतिनिधि हैं तथा वह भारतीय राजनीति से आम आदमी के उठते भरोसे को दूर करने का प्रयास करेंगे.
गांधी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए मंगलवार को नामांकन भरने के बाद संसद भवन स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को जाकर नमन किया. इसके बाद उन्होंने संवाददाताओं से बातचीत में कहा मैं एक सामान्य नागरिक हूं और इस चुनाव में नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक निर्दलीय एवं स्वतंत्र नागरिक की तरह खड़ा हुआ हूं. उन्होंने 18 विपक्षी दलों द्वारा उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किए जाने के लिए इन दलों का आभार भी जताया.
उन्होंने कहा कि वे जनता और राजनीति के बीच बढ़ती खाई को लेकर काफी चिंतित हैं. वे चाहते हैं कि इस खाई को दूर किया जाए. उन्होंने कहा कि उनकी तीन प्राथमिकताएं हैं. पहली- लोगों के मन में यह भरोसा दिलाना कि राजनीति उनके लिए ही है तथा राजनीति से उनके ध्वस्त हो रहे भरोसे को कायम करना. दूसरा- विभाजनकारी ताकतों से मुकाबला ताकि भविष्य बेहतर बन सके. तीसरा- देश की करीब आधी जनसंख्या युवा होने के बावजूद बेरोजगार और मायूस है. इस वर्ग की समस्याओं की ओर ध्यान दिया जाना.
गांधी को समर्थन पर नाखुश है माकपा का एक धड़ा
उपराष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी का समर्थन करने के केंद्रीय नेतृत्व के फैसले से पश्चिम बंगाल माकपा का एक तबका बेहद नाखुश है क्योंकि प्रदेश का राज्यपाल रहते हुए गांधी ने सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के दौरान पार्टी की भूमिका की आलोचना की थी.
राज्य समिति के कई सदस्य गांधी को समर्थन देने के निर्णय से नाराज हैं. कुछ ने पार्टी फोरम पर अपनी नाराजगी जाहिर की और कुछ ने सोशल मीडिया पर अपनी नाखुशी जतायी है.
इन असंतुष्ट नेताओं ने हुगली जिले के सिंगूर में जबरन किए जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ गांधी के खड़े होने का हवाला दिया. यह अधिग्रहण टाटा मोटर्स की छोटी कार की फैक्टरी लगाने के लिए था और इस दौरान नंदीग्राम में भू-अधिग्रहण विरोधी अभियान शुरू हो गया था. उन्होंने गांधी को तृणमूल कांग्रेस का पक्ष लेने वाला भी करार दिया.
माकपा की राज्य समिति के एक नेता ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, हमें बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि हमारा नेतृत्व क्या करना चाहता है. पहले उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का फैसला लिया और अब उन्होंने गांधी का समर्थन करने का फैसला लिया है. पार्टी 2006 से 2009 के बीच गांधी की पक्षपातपूर्ण भूमिका को कैसे भूल सकती है, भाजपा को रोकने के नाम पर यह पूरा पागलपन है. पार्टी अपनी कब्र खुद खोद रही है.
पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ समर्थन का कड़ा विरोध करने वाले माकपा राज्य-समिति के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, अभी हमने भाजपा को रोकने के मद्देनजर गांधी को माफ करने का फैसला लिया है. अगले साल शायद पार्टी हमसे तृणमूल को माफ करने और भाजपा को रोकने के लिए उसके साथ गठबंधन करने को कह दे.
पार्टी के शीर्ष नेताओं के फैसले का बचाव करते हुए पोलित ब्यूरो के सदस्य हन्नान मोल्लाह ने कहा कि कुछ फैसले बड़ी तस्वीर को ध्यान में रखते हुए लिए गए हैं फिर चाहे उनसे गुस्सा या असंतोष ही क्यों न उत्पन्न हो.
इसी तरह माकपा के राज्य सचिवालय के सदस्य नेपालदेब भट्टाचार्य ने कहा, जो पार्टी के फैसले का विरोध कर रहे हैं वह बंगाल को ध्यान में रखते हुए ऐसा कर रहे हैं. वह शायद अपने दृष्टिकोण से सही हों. लेकिन अगर आप भारत के हिसाब से देखेंगे तो आप समझ पाएंगे कि पार्टी के दृष्टिकोण से यह निर्णय एकदम सही है.
गोपालकृष्ण गांधी दिसंबर 2004 से दिसंबर 2009 के बीच पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे. माकपा नीत सरकार और राज्यपाल के बीच संबंध उस दौरान समय खराब हो गए क्योंकि गांधी ने तत्कालीन राज्य सरकार के सिंगूर में जबरन भू-अधिग्रहण करने के फैसले का विरोध किया था. इसके बाद वर्ष 2007 में नंदीग्राम में पुलिस की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत हो गई थी.
उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव पांच अगस्त को होगा. गांधी राजग के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार वेंकैया नायडू के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)