‘जीएसटी से कालीन उद्योग के 20 लाख बुनकर हुए बेरोज़गार’

पहले से ही बदहाली के दौर से गुजर रहा कालीन उद्योग जीएसटी के बाद बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है.

पहले से ही बदहाली के दौर से गुजर रहा कालीन उद्योग जीएसटी के बाद बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है.

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(फोटो क्रेडिट: arastan.com)

नोटबंदी से तबाह हुए कालीन उद्योग पर जीएसटी की भी मार पड़ी है. एक जुलाई से माल और सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने के बाद बुनकरों मजदूरों पर लगाये गए 18 फीसदी जीएसटी और इन सामानों की बिक्री व खरीद पर 12 प्रतिशत जीएसटी को लागू करने की वजह से यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

कालीन निर्माताओं और निर्यातक संघों के अनुसार जीएसटी के चलते देशभर में लगभग 5,000 इकाइयां बंद हो गई हैं और बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं. इसके चलते करीब 20 लाख कारीगरों और उनके परिवारों की आजीविका प्रभावित हुई है.

कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के अनुसार इन उत्पादन इकाइयों को बंद करने के कारण लगभग 1,000 करोड़ रुपये के निर्यात का नुकसान हुआ है. कोई नया आर्डर नहीं दिया जा रहा है और नए आर्डर के लिए बुनाई लगभग पूरी तरह बंद हो गई है. पुराने आर्डर और पुराने स्टॉक भी टैक्स लागू करने के डर से पूरे नहीं किये जा रहे हैं. पुराने अनुबंधों के कारण खरीदारों से अधिक पैसे नहीं मिल रहे हैं और पैसा खोने की चिंता सता रही है.

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(फोटो क्रेडिट: arastan.com)

भदोही के व्यापारी और कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के सदस्य अब्दुल रब ने बताया कि ज्यादातर मजदूर असंगठित क्षेत्र के हैं. इसलिए उन पर 18 प्रतिशत जीएसटी थोपना कहीं से भी व्यावहारिक नहीं है. अगर इसे वापस नहीं लिया गया तो कालीन निर्माण प्रभावित होगा और लाखों बुनकरों, मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा.

गौरतलब है कि भारतीय कालीन उद्योग अंतरराष्ट्रीय बाजार की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं. चीन और तुर्की जैसे अन्य देश भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों द्वारा छोड़ी गई जगह से लाभ उठाने और उसे भरने के लिए तैयार हैं.

अब्दुल रब का कहना है कि सरकार के ऐसे फैसलों से जल्द ही बाजार मशीन-निर्मित कालीन से भर जाएंगे. भारत में भारी पैमाने पर आयात किये जाएंगे जिससे विदेशी मुद्रा और भुगतान संतुलन में असंतुलन और वृद्धि होगी. जीएसटी के आने के बाद से करीब 2,000 करोड़ रुपये मूल्य के निर्यात ऑर्डर रद्द कर दिए गए हैं. इसका कारण आयातकों ने बढ़ी हुई लागत देने से इनकार कर दिया है.

रब का कहना है कि फिलहाल भारत अभी कालीन उद्योग के क्षेत्र में विश्व बाजार में पहले नंबर पर है, लेकिन जैसे हालात हैं उसमें वह चीन, ईरान, तुर्की, पाकिस्तान और नेपाल जैसे अन्य प्रतिस्पर्धी देशों से पीछे हो जाएगा. कालीन उद्योग से जुड़े ज्यादातर व्यापारी यह व्यवसाय छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में अपनी आजीविका तलाश रहे हैं.

गौरतलब है कि भारत में कालीन उत्पादक क्षेत्र – उत्तर प्रदेश में भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, घोसिया, औराई, आगरा, सोनभद्र, सहारनपुर, सहजनपुर, जौनपुर, गोरखपुर आदि प्रमुख केंद्र हैं.

राजस्थान में जयपुर, टोंक, बीकानेर में कालीन निर्माण का काम होता है तो वहीं हरियाणा में पानीपत, सोनीपत, करनाल में भी कालीन बुनाई का काम होता है.

इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में बारामूला, पांडिपुर, अनंतनाग, बड़गाम, लेह, पुलवामा, कुपवाड़ा, पट्टन, कनिहामा, श्रीनगर आदि में करीब बुनकरी का काम किया जाता है.

पानीपत में कालीन व्यापार से जुड़े सुनील जैन का कहना है कि जीएसटी लागू होने के बाद से उनके पास नया काम नहीं आया है, जिससे मजबूर होकर उन्हें अपना काम बंद रखना पड़ा है. इसके चलते मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. पिछले दो हफ्ते में उनके यहां काम करने वाले करीब 30 मजदूर अपने घर वापस लौट चुके हैं.

उनका कहना है कि जिस तरह खादी पर कोई टैक्स नहीं है. उसी तरह ही कालीन बुनाई में जाॅब वर्क पर जीएसटी खत्म कर दिया जाय. क्योंकि इससे बड़ी संख्या में ग्रामीण मजदूरों को काम मिलता है. सारा काम हाथ से किया जाता है. इससे सूखे, बाढ़ या दो फसलों के बीच में किसानों को बेहद जरूरी अतिरिक्त आय भी मिलती है.

वहीं, कार्पेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (सीईपीसी) के अध्यक्ष महावीर शर्मा उर्फ राजा शर्मा को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में 20 लाख से अधिक बुनकरों और छोटे, मध्यम निर्माताओं और निर्यातकों के बचाव के लिए सरकार आगे आएगी.

सरकार द्वारा जीएसटी न हटाये जाने पर इन 20 लाख से अधिक बुनकरों के समर्थन में भदोही, जयपुर, श्रीनगर, पानीपत और आगरा जैसे शहरों में मूक मार्च और रैली भी निकाली गई है.

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