जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले की मारवाह तहसील के निवासी ज़हूर अहमद को 6 जनवरी को गिरफ़्तार किया गया था. उन पर आतंकवादियों को शरण देने और आतंकवादी संगठन को समर्थन देने के आरोप लगाए गए थे. उन पर यूएपीए के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था.
श्रीनगर: गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) अदालत ने जम्मू कश्मीर जेल विभाग को सरकार के साथ काम करने वाले एक फार्मासिस्ट को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. उन्हें पिछले आठ महीने से अधिक समय में हिरासत में रखा गया था.
किश्तवाड़ जिले की मारवाह तहसील के निवासी जहूर अहमद को 6 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था. उन पर आतंकवादियों को शरण देने और आतंकवादी संगठन को समर्थन देने के आरोप लगाए गए थे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू कश्मीर यूएपीए अदालत ने कहा कि यूएपीए के किसी प्रावधान के तहत उनके ऊपर किसी आरोप का सबूत नहीं है और अगर वे एक आतंकी को दवाइयां दे रहे थे, तब भी वे केवल अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे.
जम्मू के तीसरे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुनीत गुप्ता ने कहा कि पुलिस ने उनके पास से केवल दवाइयां जब्त कीं और ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि वे यूएपीए के किसी अपराध के तहत शामिल थे.
आरोपों को उन्हें झूठा फंसाने का सफल प्रयास करार देते हुए अदालत ने कहा कि गर उनका नाम किसी और मामले में नहीं है तो अहमद को जम्मू सेंट्रल जेल से अंतरिम जमानत पर 25,000 रुपये की जमानत राशि पर रिहा किया जाना चाहिए.
जम्मू कश्मीर सरकार के स्वास्थ्य विभाग के साथ कार्यरत अहमद मारवाह तहसील के रेनिया में तैनात थे. उनके वकील फहीम शोकत बट ने कहा कि उन्हें किसी भी अपराध से जोड़ने के लिए कोई भी सामग्री रिकॉर्ड में नहीं लाने के बावजूद उन्हें जेल में रखा गया है.
इस दौरान जज ने अतिरिक्त सरकारी वकील की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें वह दावा कर रहे थे कि आतंकवादियों को सुरक्षा बलों के बारे में जानकारी देने के लिए और आतंकवादी कमांडर मोहम्मद अमीन उर्फ जहांगीर सहोरी के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए अहमद को नौ अन्य लोगों के साथ चार्जशीट में नामित किया गया था.
जज गुप्ता ने कहा, ‘ पूरी फाइल से गुजरने के दौरान मुझे एक भी गवाह नहीं मिला जिसके बयान दर्ज किए गए हों और जिन्होंने आवेदक जहूर अहमद के खिलाफ एक भी शब्द बोला हो.’
उन्होंने कहा, ‘गैरकानूनी गतिविधियों, साजिश, आतंकवादियों को शरण देने और आतंकवादी संगठन को दिए गए समर्थन के संबंध में उनके खिलाफ आरोप लगाए गए हैं लेकिन इनमें से किसी भी अपराध को अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने आरोपित नहीं किया है, जिनके बयान आईओ (जांच अधिकारी) या यहां तक कि गवाह जिनके बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए हैं.’
यूएपीए अदालत ने कहा कि अहमद के खिलाफ कोई सबूत पाने में असफल होने के बाद आईओ ने किसी और मामले में एक गवाह अख्तर हुसैन का बयान संलग्न किया है जो कि यूएपीए की धारा 13, 18, 19, 38, 39 का मामला है.
अदालत ने आगे कहा, ‘उस कॉपी में दर्ज बयान के अनुसार आईओ ने जहूर अहमद को झूठा फंसाने का सफल प्रयास किया.’
जज गुप्ता ने कहा कि उक्त कथन के अनुसार, अहमद वास्तव में ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं पाए गए, जिसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत अपराध कहा जा सकता है.
आईओ द्वारा अहमद के खिलाफ आरोप तैयार करने के लिए किसी अन्य मामले का बयान इस्तेमाल करने के तथ्य पर सवाल उठाते हुए जज ने कहा, ‘यहां तक कि अगर हम उक्त गवाह के बयान पर विचार करते हैं तो भी मुझे नहीं लगता कि जहूर अहमद के बारे में यह कहा जा सकता है कि वह किसी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल थे, चाहे वह किसी आतंकी संगठन की सहायता कर रहे हों, शरण दे रहें हो या आतंकवादी संगठन का हिस्सा हों.’
उन्होंने आगे कहा, ‘चूंकि जहूर अहमद फार्मासिस्ट बनना चाहते हैं और उनके पास कुछ दवाइयां थीं. एक आतंकी को भी दवा पहुंचाने के अपने पेशेवर कर्तव्य को निभाने के दौरान यह नहीं कहा जा सकता है कि वह यूएपीए के तहत किसी अपराध में शामिल थे.’
अहमद को जमानत देते हुए अदालत ने उन्हें निर्देश दिया कि वह अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह से संपर्क न करें और न्यायालय की पूर्व लिखित अनुमति के बिना जम्मू कश्मीर की क्षेत्रीय सीमा को न छोड़ें.
रिपोर्ट के अनुसार, यूएपीए अदालत के फैसले के दो दिन बाद शनिवार को जम्मू कश्मीर पुलिस ने कहा कि वह जमानत आदेश के खिलाफ अपील दायर करेगी.
शनिवार को किस्तवाड़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरमीत सिंह ने कहा कि अहमद को उनके खिलाफ यूएपीए के तहत दर्ज एक मामले में तकनीकी आधार पर जमानत दी गई है.
उन्होंने कहा, हमारे पास उसके खिलाफ सबूत थे और हमने उस विशेष मामले में सबूतों की एक फोटोकॉपी रखी थी। हम न्यायपालिका के समक्ष फिर से मामला उठाएंगे.’
सिंह ने कहा कि अहमद देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हैं.