बीते दिनों गोरखपुर के एक सहायक अभियंता के तबादले को लेकर गोरखपुर नगर के भाजपा विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल और सांसद रवि किशन के बीच खींचतान शुरू हुई थी, जिसमें क्षेत्र के कुछ और विधायक भी शामिल हो गए. लेकिन क्या इस ज़बानी जंग की वजह केवल यह तबादला है?
गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर में आजकल भाजपा विधायकों और सांसदों में जमकर सिर-फुटौव्वल हो रही है. एक सड़क के निर्माण और उससे जुड़े सहायक अभियंता के तबादले को लेकर शुरू हुई बयानबाजी एक दूसरे का इस्तीफा मांगने, एक दूसरे के क्षेत्र में आकर चुनाव लड़ने की चुनौती देने से लेकर बात व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी तक पहुंच गई है.
गोरखपुर नगर के भाजपा विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को प्रदेश पार्टी नेतृत्व द्वारा सोशल मीडिया में बयान देने के मामले में कारण बताओ नोटिस भी थमा दिया गया है.
नोटिस जारी होने के बाद भी बयानबाजी का सिलसिला थम नहीं रहा है और विधायक-सांसद से लेकर कार्यकर्ता तक दो खेमों में बंटे नजर आ रहे हैं.
यह कहानी यूपी विधानसभा के सत्र से शुरू हुई. तीन दिन के इस संक्षिप्त सत्र में गोरखपुर नगर के भाजपा विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल ने विधानसभा में अपने क्षेत्र में इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय रोड को ऊंचा किए जाने से उस क्षेत्र में जलभराव का मामला उठाया और इसके लिए पीडब्ल्यूडी के सहायक अभियंता केके सिंह को जिम्मेदार ठहराया.
बाद में वे उपमुख्यमंत्री एवं लोक निर्माण मंत्री केशव प्रसाद मौर्य से मिले और उनके सामने यह प्रकरण रखा. उनकी मांग पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सड़क निर्माण से जुड़े सहायक अभियंता केके सिंह को गोरखपुर से हटाते हुए उन्हें मुख्यालय से संबद्ध कर दिया.
सहायक अभियंता का तबादला गोरखपुर के सांसद रवि किशन को पसंद नहीं आया.
उन्होंने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को पत्र लिखकर कहा कि यह सड़क फोरलेन बन रही है. सड़क पर घुटने भर तक पानी लगता था. उन्होंने सड़क ऊंचा करने को कहा जिस पर सड़क को ऊंचा करने का कार्य हुआ. यदि सहायक अभियंता हटे, तो काम में देरी होगी. उनका काम बहुत अच्छा है.
यहां तक तो सामान्य था और नगर विधायक डॉ. अग्रवाल ने भी सांसद के पत्र को अपने खिलाफ नहीं माना, लेकिन 25 अगस्त को भाजपा के चार विधायकों- शीतल पांडेय (सहजनवा), विपिन सिंह (गोरखपुर ग्रामीण), महेंद्र पाल सिंह (पिपराइच) और संगीता यादव ( चौरीचौरा ) का पत्र सोशल मीडिया और मीडिया में आया.
सभी विधायकों ने उपमुख्यमंत्री को लिखे पत्र में सहायक अभियंता केके सिंह की तारीफ करते हुए उन्हें गोरखपुर में बनाए रखने का अनुरोध किया था.
विधायकों ने कहा है कि सहायक अभियंता उनके क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करवा रहे हैं, इसलिए उनके तबादले से काम में देरी होगी.
कैम्पियरगंज के भाजपा विधायक फतेहबहादुर सिंह ने भी यही बात कहते हुए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को पत्र लिखा. बाद में इन विधायकों में से एक शीतल पांडेय ने किसी भी तरह का पत्र लिखने से इनकार किया और कहा कि उनके लेटरपैड का दुरूपयोग किया गया है.
इन विधायकों के पत्र लिखने पर नगर विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल ने 25 अगस्त को अपने फेसबुक एकाउंट पर तीखी टिप्पणी की.
उन्होंने 25 अगस्त को लिखा, ‘हम तो लड़ रहे थे अपनी विधानसभा के चार महीने से पानी में डूबे हुए नागरिकों के लिए लेकिन सहायक अभियंता के समर्थन में आ गये पिपराईच, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवा क्षेत्र के मा. विधायकगण! अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय. यह कैसा लोकतंत्र बना लिया आप लोगों ने !
एक दूसरी टिप्पणी में उन्होंने लिखा-‘ ये रिश्ता क्या कहलाता है ? ऐसा कभी देखा और सुना नहीं होगा ! विधायक जी लोग रोते थे कि कोई अधिकारी सुनता नहीं. अद्भुत दृश्य है, बेचारे अदने से अधिकारी के पीछे लामबंद हैं. तो क्या हम भ्रष्टाचारियों की दलाली शुरू कर दें. अपुन से यह नहीं होने वाला है, अपुन तो आपके लिए लड़ेगा. ’
नगर विधायक को बांसगांव के भाजपा सांसद कमलेश पासवान और उनके छोटे भाई बांसगांव के विधायक डॉ. विमलेश पासवान का समर्थन मिला.
सांसद कमलेश पासवान ने अपने फेसबुक एकाउंट पर लिखा, ‘डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल जी (नगर विधायक गोरखपुर) के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में मै आपके साथ खड़ा हूं, और हम सब जानते है कि हमारे क्षेत्रों में जो भी विकास कार्य हो रहे है उनकी क्या गुणवत्ता है.’
इसके अगले दिन कैम्पियरगंज के विधायक फतेह बहादुर सिंह ने नगर विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल पर हमला बोला और कहा कि ‘विधायक निधि सस्पेंड हो जाने से वे बौखला गए हैं. नगर विधाायक सहायक अभियंता के तबादले के लिए नादान बालक की तरह जिद कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘अधिकतर सांसद व विधायक जब इंजीनियर के काम से संतुष्ट हैं और उन्हें बचाने के लिए एक सुर में बोल रहे हैं तो ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि नगर विधायक उन्हें हटवाना चाहते हैं. उनका क्या जनाधार है, किसी से छुपा नहीं है. वे सुर्खियां बटोरने के लिए मीडिया व सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं. ’
कैम्पियरगंज के विधायक के इस हमले पर डॉ. अग्रवाल ने जोरदार पलटवार किया. उन्होंने अपने फेसबुक पर 27 अगस्त को लिखा कि कैम्पियरगंज के माननीय विधायक श्री फतेह बहादुर सिंह सहायक अभियंता केके सिंह के समर्थन में बहुत पीड़ित मन से अश्रु-रोदन कर रहे हैं. ’
इस पोस्ट में उन्होंने फतेह बहादुर सिंह पर बार-बार दल बदलने, वन मंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोप की विस्तार से चर्चा की और कहा कि आखिर वे किस अधिकार से उनके विधानसभा क्षेत्र में नागरिकों की लड़ाई में हस्तक्षेप कर रहे हैं.
बाकी विधायक तो इस प्रकरण में चुप रहे और उनके दोबारा बयान नहीं आए, लेकिन गोरखपुर के सांसद रवि किशन और कैम्पियरगंज के विधायक फतेहबहादुर सिंह लगातार डॉ. अग्रवाल पर हमला बोल रहे हैं.
डॉ. अग्रवाल के फेसबुक पोस्ट पर फतेह बहादुर सिंह ने फिर जवाब दिया और उन्हें इस्तीफा देकर कैम्पियरगंज से चुनाव लड़ने की चुनौती दी.
इसी बीच डॉ. अग्रवाल का एक भाजपा कार्यकर्ता से बातचीत का ऑडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया. इस ऑडियो में डॉ. अग्रवाल भाजपा कार्यकर्ता द्वारा लड़कियों से छेड़खानी व मारपीट के मामले में कार्यवाही न होने का प्रकरण उठाए जाने पर कहते हुए सुने जा रहे हैं कि ‘ठाकुरों का राज चल रहा है. डरकर रहिए.’
इस ऑडियो के बारे में डॉ. अग्रवाल का कहना है कि ‘उन्हें ऐसी किसी बातचीत का स्मरण नहीं है. वे इस तरह की बातचीत करते भी नहीं है. इस ऑडियो को उनके खिलाफ साजिशन जारी किया गया है जिसकी असलियत जल्द सामने आ जाएगी.’
इस ऑडियो को लेकर डॉ. अग्रवाल पर तीखे हमले शुरू हो गए. भाजपा सांसद रवि किशन ने कहा, ‘नगर विधायक को यदि भाजपा से नफरत है तो त्यागपत्र दे दें. वे लगातार भाजपा विरोधी कार्य कर रहे हैं. वे गोरखपुर शहर के विकास में बाधक बन गए हैं ’
उधर डॉ. अग्रवाल ने सांसद रवि किशन के इस बयान पर भी जवाब दिया और कहा कि ‘रवि किशन जी की मूर्ति गढ़ने में गिलहरी की तरह हमारी भी भूमिका है. मूर्तिकार कभी अपनी स्थापित मूर्तियां नहीं तोड़ता.’
डॉ. अग्रवाल ने 28 अगस्त को फेसबुक पर कई पोस्ट लिखे, जिसमें उन्होंने ‘प्रबल विरोधों के आगे चट्टान की तरह सुदृढ़ रहने,’ ‘अभिमन्यु नहीं अर्जुन हैं, चक्रव्यूह में घुसना जानते हैं तो तोड़ना भी जानते हैं’ जैसी बातें लिखकर हमलों के खिलाफ न झुकने का ऐलान किया.
27 अगस्त को ही डॉ. अग्रवाल को पार्टी के प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया.
इस नोटिस में उन पर सरकार और संगठन की छवि धूमिल करने के लिए सोशल मीडिया में पोस्ट लिखने का आरोप लगाया गया है. नोटिस पर एक सप्ताह में जवाब मांगा गया है.
बयानबाजी का क्रम 29 अगस्त को भी जारी रहा. कैम्पियरगंज के विधायक फतेहबहादुर सिंह का एक अखबार में बयान छपा कि ‘डॉ. आरएमडी अग्रवाल मानसिक रूप से परेशान हैं और उन्हें इलाज की जरूरत है. वह विधानसभा अध्यक्ष से मिलकर कहेंगें कि वह उनकी जांच कराएं.’
डॉ. अग्रवाल ने इसका जवाब इसी दिन फेसबुक पर लंबी पोस्ट लिखकर दिया है. उन्होंने लिखा, ‘यह राजनीति किस घटिया दौर से गुजर रही है, जहां कोई विधायक अपने विधानसभा के नागरिकों की ईमानदारी से सेवा करने की जगह दूसरी विधानसभा के नागरिकों की 6 महीने की नारकीय स्थिति के समाधान के सामने खलनायक बन कर खड़ा हो जाता है?’
इसी दिन शाम को उन्होंने एक पोस्ट में बताया कि सहायक अभियंता केके सिंह का तबादला आखिर मंजूर हो गया है. लेकिन क्या बात यहीं खत्म हो जाएगी?
भाजपा सांसदों व विधायकों के बीच छिड़े इस घमासान को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. पहला सवाल यही है कि क्या एक इंजीनियर इतना ताकतवर है कि उसके तबादले को लेकर भाजपा सांसद और विधायक आपस में तू-तू-मैं-मैं करने लगे और दो गुटों में बंट जाएं?
यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है कि बात सिर्फ एक इंजीनियर के तबादले की है. भाजपा की राजनीति को जानने वाले जानते हैं कि यह सच नहीं है.
इंजीनियर का तबादला तो बहाना है, इंजीनियर के तबादले के बहाने भाजपा के नगर विधायक को घेरा गया है. दबी जुबान से यह भी चर्चा है कि भाजपा विधायक को घेरे जाने का संकेत ‘ऊपर’ से हुआ है.
डॉ. अग्रवाल वर्ष 2002 से विधायक हैं. उनकी राजनीति में आने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. वह बाल रोग चिकित्सक थे और संघ से जुड़े थे.
उस वक्त गोरखपुर की राजनीति में भाजपा में दो गुट बन गए थे. एक गुट का नेतृत्व प्रदेश सरकार में मंत्री शिव प्रताप शुक्ल कर रहे थे, तो दूसरे गुट की कमान खुद योगी आदित्यनाथ ने संभाली हुई थी.
योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ खुली बगावत कर दी. उन्होंने मेयर चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया.
इस चुनाव में भाजपा और भाजपा के बागी प्रत्याशी की हार हुई और निर्दल प्रत्याशी के रूप में किन्नर आशा देवी की जीत हुई. इसके बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को चुनाव लड़ा दिया.
डॉ. अग्रवाल हिंदू महासभा के बैनर से चुनाव लड़े और जीत गए. बाद में वे भाजपा से प्रत्याशी बनते रहे और जीतते रहे.
उधर, गोरखपुर की राजनीति में करीब-करीब एक दशक तक भाजपा और योगी आदित्यनाथ व उनके संगठन हिंदू युवा वाहिनी के बीच टकराव चलता रहा.
बाद में भाजपा संगठन ने न सिर्फ गोरखपुर बल्कि पूर्वाचल में योगी आदित्यनाथ का वर्चस्व स्वीकार कर लिया और उनकी सहमति से टिकट वितरित होने लगे.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और साल 2017 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी को निष्क्रिय करते हुए भाजपा से टकराव से बचाया. इस कारण युवा वाहिनी के कई बड़े नेता उनसे नाराज भी हुए और संगठन छोड़कर चले गए.
डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल काफी सक्रिय व मुखर विधायक हैं. बिना तामझाम के रहते हैं और सहज उपलब्ध हैं. साथ ही विधानसभा में लगातार सवाल भी उठाते रहे हैं.
अपने 18 वर्ष के राजनीतिक करिअर में उन्होंने योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े कद के नेता के छाया में रहने के बावजूद अपनी एक स्वतंत्र छवि बना ली है.
हालांकि यह हैरत का भी विषय है कि चार बार से लगातार विधायक चुने जाने के बावजूद न तो उन्हें सरकार, न ही संगठन में कोई महत्वपूर्ण पद मिला.
पिछले तीन वर्षों में डॉ. अग्रवाल कई बार चर्चा में आए. एक बार एक आंदोलन के दौरान लोगों पर लाठीचार्ज को लेकर उनकी एक महिला आईपीएस से तीखी झड़प हो गई थी.
फिर दिसंबर 2019 में जल निगम की गोरखपुर निर्माण इकाई के आधा दर्जन अभियंता डॉ. अग्रवाल पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए सामूहिक अवकाश पर चले गए थे.
विधायक डॉ. अग्रवाल ने इन अभियंताओं पर 140 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाने के काम में मानक के विपरीत कार्य करने, नई बनी सड़कों को काटकर छोड़ देने का आरोप लगाया था जिसके कारण कई कॉलोनियों में जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी और लोग दुर्घटनाओं में घायल हो रहे थे.
इस ताजा विवाद के पहले उन्होंने लखीमपुर खीरी जिले में एक भाजपा कार्यकर्ता के रिश्तेदार की गोली लगने से हुई मौत के मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी न होने पर ट्विटर पर तीखी टिप्पणी की थी.
उन्होंने डीजीपी और अपर मुख्य सचिव (गृह) को कई बार फोन किया. जब फोन नहीं उठा तो ट्विटर पर टिप्पणी की. इसके बाद आरोपियों पर कार्यवाही हुई और विधायक ने अपना ट्वीट हटा लिया.
उनके बेलाग बोल और राजनीति की शैली से से भाजपा के अंदर नाखुश रहने वालों की अच्छी-खासी संख्या है लेकिन भाजपा के बाहर उन्हें पसंद करने वाले भी काम नहीं हैं.
समय-समय पर उन्हें कई बार घेरा गया लेकिन बात संगठन के अंदर ही रही. पहली बार सब कुछ खुलेआम हो रहा है.
गोरखपुर जिले में दो सांसद और नौ विधायक हैं. एक विधायक को छोड़ सभी भाजपा के ही हैं. दोनों सांसद भी भाजपा के ही हैं.
भाजपा के आठ विधायकों में से पांच- पिपराइच, सहजनवा, गोरखपुर ग्रामीण, चौरीचौरा, बांसगांव के विधायक पहली बार चुने गए हैं.
गोरखपुर नगर क्षेत्र के विधायक डॉ. अग्रवाल लगातार चौथी बार विधायक बने हैं. खजनी से संत प्रसाद दोबारा चुनकर आए हैं. वह वर्ष 1996 में भी विधायक रह चुके हैं.
कैम्पियरगंज से फतेह बहादुर सिंह 1996 से लगातार पांच बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं. हालांकि इस दौरान वह कई दलों में रहे. वह कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह व बसपा सरकार में मंत्री भी रहे हैं.
इस घटना के पूर्व जून माह के आखिरी सप्ताह में एक अस्पताल के मालिकाना कब्जे को लेकर हुए विवाद में बांसगांव के भाजपा सांसद कमलेश पासवान के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ था.
अपने खिलाफ केस दर्ज होने से वे बहुत आहत हुए थे और अपनी ‘पीड़ा’ सावर्जनिक रूप से व्यक्त की थी.
साल 2002 से 2020 तक राप्ती नदी में बहुत पानी बह चुका है. इस लंबे समय में तमाम विरोधी शक्तियां अब भाजपा की नाव में ही सवारी कर रही हैं, सबकी अपनी महत्वाकांक्षाएं और पीड़ाएं भी हैं जो समय-समय पर बाहर आती रहती हैं.
यह बयानबाजी व भिड़त अनायास नहीं हैं. यह 2022 के विधानसभा चुनाव की पूर्व पीठिका है. गोरखपुर जिले में भाजपा के अंदर नए समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं, देखना बस यह होगा कि यह समीकरण कौन-सी शक्ल लेते हैं.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)