केंद्र द्वारा जम्मू कश्मीर के लिए नए नियम जारी, एंटी करप्शन ब्यूरो-पुलिस सीएम के दायरे से बाहर

केंद्र सरकार द्वारा जारी नए नियमों के ज़रिये केंद्रशासित जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र से कई विभाग वापस ले लिए गए हैं और इसके चलते महत्वपूर्ण मामलों में उप-राज्यपाल के ज़रिये केंद्र अप्रत्यक्ष रूप से अंतिम निर्णायक विभाग होगा.

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Srinagar: Policemen patrolling at Lal Chowk after restrictions were lifted, in Srinagar, Tuesday, Aug. 20, 2019. Barricades around the Clock Tower in Srinagar's city centre Lal Chowk were removed after 15 days, allowing the movement of people and traffic in the commercial hub, as restrictions eased in several localities while continuing in others. (PTI Photo/S. Irfan)(PTI8_20_2019_000114B)
(फोटो: पीटीआई)

केंद्र सरकार द्वारा जारी नए नियमों के ज़रिये केंद्रशासित जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र से कई विभाग वापस ले लिए गए हैं और इसके चलते महत्वपूर्ण मामलों में उप-राज्यपाल के ज़रिये केंद्र अप्रत्यक्ष रूप से अंतिम निर्णायक विभाग होगा.

Srinagar: Policemen patrolling at Lal Chowk after restrictions were lifted, in Srinagar, Tuesday, Aug. 20, 2019. Barricades around the Clock Tower in Srinagar's city centre Lal Chowk were removed after 15 days, allowing the movement of people and traffic in the commercial hub, as restrictions eased in several localities while continuing in others. (PTI Photo/S. Irfan)(PTI8_20_2019_000114B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर प्रशासन के सुचारू रूप से कामकाज करने के नाम पर नए नियम जारी किए हैं, जिनमें स्पष्ट किया गया है कि पुलिस, भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय वन सेवा और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) केंद्रशासित प्रदेश के उप-राज्यपाल के सीधे नियंत्रण में रहेंगे.

ये नियम केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला द्वारा जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत अधिसूचित किए गए हैं.

इन नियमों को लेकर मोदी सरकार की काफी आलोचना हो रही है और ये कहा जा रहा है कि केंद्र उप-राज्यपाल के जरिये महत्वपूर्व विषयों को अपने पास रखकर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री को शक्तिविहीन करना चाह रहा है.

जम्मू कश्मीर को जब तक विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ था, तब तक मुख्यमंत्री निर्णय लेने की प्रक्रिया में सबसे ताकतवर व्यक्ति होता था.

इन नियमों के कारण मुख्यमंत्री के पास जम्मू कश्मीर पुलिस के एक कॉन्स्टेबल को भी ट्रांसफर करने करने की भी शक्ति नहीं रहेगी.

ये नियम उन लोगों के लिए भी झटका है जो ये मान रहे थे कि सरकार जल्द ही जम्मू कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा बरकरार करेगी.

नियमों में स्पष्ट किया गया है कि किसी मामले में उप-राज्यपाल और मंत्री परिषद (जब इसका गठन हो) के विचारों में मतभेद होने की स्थिति में उप-राज्यपाल इसे केंद्र सरकार के पास राष्ट्रपति के निर्णय के उद्देश्य से भेजे और उस निर्णय के अनुरूप काम होगा.

गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में 39 विभाग होंगे, जिसमें कृषि, स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, वानिकी (फॉरेस्ट्री), चुनाव, सामान्य प्रशासन, गृह, खनन, ऊर्जा, पीडब्ल्यूडी, परिवहन, आदिवासी मामला आदि शामिल है.

गौरतलब है कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया था और इसके बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया था. ये केंद्र शासित प्रदेश पिछले वर्ष 31 अक्टूबर को अस्तित्व में आए थे.

अधिसूचना में कहा गया है, ‘जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 55 के तहत प्रदत्त शक्तियों, 31 अक्टूबर 2019 की अधिघोषणा के तहत जारी धारा 73 के अनुरूप राष्ट्रपति निम्नलिखित नियम बनाते हैं.’

इसमें कहा गया है कि लोक व्यवस्था, पुलिस, भारतीय प्रशासनिक सेवा और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से जुड़े मामलों में उप-राज्यपाल कानून के तहत कार्यकारी कामकाज को देखेंगे.

उप-राज्यपाल, मुख्यमंत्री (जब निर्वाचित होंगे) की सलाह पर सरकार के कामकाज का आवंटन मंत्रियों के बीच करेंगे और मंत्रियों को एक या अधिक विभाग आवंटित करेंगे.

मंत्रिपरिषद उप-राज्यपाल के नाम पर किसी विभाग की ओर से जारी सभी कार्यकारी आदेश और केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति के नाम किसी अनुबंध के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार होगी, जबकि ऐसे आदेश या अनुबंध केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन के संबंध में किसी मंत्री द्वारा उसके अधीन विभाग से जुड़े मामलों में अधिकृत होंगे.

अधिसूचना में कहा गया है कि नियमित या गैर जरूरी प्रकृति के संवाद को छोड़कर प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रालयों सहित केंद्र से प्राप्त सभी संवाद को जितनी जल्द हो सके, उन्हें सचिव द्वारा मुख्य सचिव, प्रभारी मंत्री, मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल की जानकारी के लिये भेजा जाए.

इसमें कहा गया है कि ऐसा कोई मामला, जिसमें केंद्र शासित प्रदेश की सरकार के साथ केंद्र या एक राज्य सरकार के बीच विवाद होने की संभावना हो, उसे संबंधित सचिव द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से जितनी जल्द हो सके, उप-राज्यपाल और मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जाए.

उप-राज्यपाल और एक मंत्री के बीच किसी मामले में विचारों में मतभेद होने की स्थिति में उप-राज्यपाल ऐसे असहमति उत्पन्न होने की तिथि से दो सप्ताह में मतभेद के बिंदुओं को सुलझाने के लिए चर्चा करेंगे.

मतभेद बने रहने पर उप-राज्यपाल इसे परिषद को भेजेंगे और अगर 15 दिनों में कोई निर्णय नहीं होता है तब उप-राज्यपाल इसे केंद्र सरकार के पास राष्ट्रपति के निर्णय के उद्देश्य से भेजे और इस निर्णय के अनुरूप काम होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)