छह साल में पांचवीं बार केंद्रीय सूचना आयोग के अध्यक्ष का पद ख़ाली

साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से एक भी बार ऐसा नहीं हुआ है कि मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में देरी न हुई हो. कई बार आरटीआई कार्यकर्ताओं को अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा है.

सीआईसी. (फोटो साभार: पीआईबी)

साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से एक भी बार ऐसा नहीं हुआ है कि मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में देरी न हुई हो. कई बार आरटीआई कार्यकर्ताओं को अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा है.

सीआईसी. (फोटो साभार: पीआईबी)
सीआईसी. (फोटो साभार: पीआईबी)

नई दिल्ली: देश के केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के अध्यक्ष का पद एक बार फिर से खाली हो गया है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छह साल के कार्यकाल में यह पांचवीं बार है, जब सीआईसी अध्यक्ष के सेवानिवृत्त होने से पहले नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की गई है. यही नहीं पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह बिना किसी देरी के इन खाली पदों को भरे.

26 मई, 2014 को मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से एक भी बार ऐसा नहीं हुआ है कि मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में देरी न हुई हो.

वहीं, कई बार तो सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ताओं को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा है. एक बार ऐसा हुआ था, जब मुख्य सूचना आयुक्त का पद 10 महीने तक खाली रह गया था.

पारदर्शिता के लिए काम करने वाले सतर्क नागरिक संगठन की सदस्य अंजली भारद्वाज और अमृता जोहरी ने कहा, ‘सीआईसी के प्रमुख और अन्य आयुक्तों को समय पर नियुक्त करने में सरकार की बार-बार असफलता से ऐसा लगता है कि वह आरटीआई अधिनियम को कमजोर करने और लोगों द्वारा सरकार से जानकारी लेने की क्षमता को हतोत्साहित करने का प्रयास कर रही है.’

इस बार निवर्तमान मुख्य सूचना अधिकारी बिमल जुल्का 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो गए. जुल्का की सेवानिवृत्ति की तारीख के बारे में उनकी नियुक्ति के समय से ही पता होने के बावजूद सरकार ने उनकी सेवानिवृत्ति के आखिर में पद के लिए विज्ञापन निकाला.

हालांकि, सरकार ने 15 फरवरी, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं किया है, जिसमें उसने सेवानिवृत्ति से एक या दो महीने पहले नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने को कहा था.

विज्ञापन का उल्लेख करते हुए आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज ने कहा कि सरकार पत्र में अदालत के आदेश का पालन कर रही है, लेकिन मूल भावना के साथ नहीं.

बता दें कि भारद्वाज सीआईसी और कई राज्य सूचना आयोगों में खाली पदों के मुद्दे को लेकर जनहित याचिकाएं दाखिल करने वाली याचिकाकर्ता भी हैं.

उन्होंने आगे कहा कि नियुक्तियों की प्रक्रिया तीन महीने में पूरी करने के 16 दिसंबर, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के सरकार को दिशानिर्देश के बावजूद सीआईसी में सूचना आयुक्तों के चार पद खाली हैं.

उनमें से केवल एक पद पर नियुक्ति की गई थी और मार्च में जुल्का के मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त होते ही सूचना आयुक्त के चार पद खाली हो गए.

द वायर  की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय सूचना आयोग को स्वीकृत 11 सूचना आयुक्तों के पदों में से फिलहाल केवल छह आयुक्तों के साथ काम करना पड़ रहा है.

एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता और राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल से जुड़े वेंकटेश नायक ने कहा कि इससे अपीलीय प्रक्रिया प्रभावित हुई है.

फिलहाल सीआईसी के पास 35,000 से अधिक अपील और शिकायतें लंबित पड़ी हैं.

वहीं, आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश बत्रा ने कहा, ‘मैं तो अब गिन भी नहीं सकता कि साल 2014 से कितनी बार सीआईसी अध्यक्ष का पद खाली रह चुका है.’

बत्रा ने कहा कि 28 अगस्त की सुबह तक सीआईसी में 35,880 मामले लंबित थे, जिनमें से 31,070 अपील हैं और 4,810 शिकायतें.

यह बताते हुए कि आयोग में लगातार रिक्तियों के कारण लंबित मामलों की संख्या कैसे बढ़ गई है, उन्होंने कहा कि जब 25 अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया गया था तो लगभग 23,500 मामले लंबित थे. हालांकि, पिछले दो वर्षों में मामलों में 12,000 से अधिक की वृद्धि ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि केंद्र ने स्थिति को सुधारने के लिए सही तरह के प्रयास नहीं किया.

बत्रा ने यह भी आरोप लगाया कि आयोग की नियुक्तियों में कोई पारदर्शिता नहीं थी और यह पद रिक्त होने से कम से कम तीन महीने पहले विज्ञापित नहीं किए जा रहे थे.

इस साल की शुरुआत में उन्होंने आरटीआई के माध्यम से प्राप्त दस्तावेजों की प्रतियां भी साझा की थीं, जिसमें दिखाया गया था कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश की गई अपनी स्थिति रिपोर्ट में गलत जवाब दिया था और चार पदों के खाली होने के बावजूद दावा किया था कि नियुक्तियां पूरी हो चुकी हैं.

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