गुजरात के सूरत ज़िले की पुलिस ने एक वकील बिलाल काग़ज़ी और सात अन्य पर बीते साल 12 अगस्त को हत्या के प्रयास और अन्य अपराधों के लिए मामला दर्ज किया था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस संबंध में गुजरात के मुख्य सचिव से चार हफ़्ते में जवाब देने को कहा है.
गांधीनगरः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने गुजरात के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि राज्य सरकार को सूरत पुलिस द्वारा गलत तरीके से आपराधिक मामले में फंसाए गए मानवाधिकार वकील को मुआवजे के तौर पर एक लाख रुपये क्यों नहीं दिए जाने चाहिए.
मुख्य सचिव से चार हफ्ते के भीतर इसका जवाब देने को कहा गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में पीड़ित वकील का नाम बिलाल कागजी (39) हैं, जो सूरत जिले के मंगरोल तहसील के कोसांबा गांव के रहने वाले हैं.
एनएचआरसी ने ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स अलर्ट (एचआरडीए) द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर कार्रवाई करते हुए 17 अगस्त 2020 को आदेश जारी किया.
एचआरडीए ने बिलाल कागजी और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर सितंबर 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी.
शिकायत के अनुसार, हत्या के प्रयास और अन्य अपराधों के लिए सूरत जिले की कोसांबा पुलिस ने बिलाल और सात अन्य पर 12 अगस्त 2019 को मामला दर्ज किया था.
एचआरडीए ने अपनी शिकायत में कहा है, ‘इस मामले में शिकायतकर्ता का आरोप है कि सभी आरोपियों (बिलाल और अन्य) ने उसे मारने की कोशिश की, लेकिन बकरीद की वजह से बिलाल घर पर ही थे और जिस जगह यह घटना हुई, वह उसके आसपास भी नहीं थे. पुलिस ने शिकायतकर्ता के साथ सांठगांठ से बिलाल का नाम मामले में घसीटा ताकि उससे दुश्मनी निकाल सके क्योंकि बिलाल शिकायतकर्ता के खिलाफ एक आपराधिक मामले में सह-आरोपी की पैरवी कर रहे थे.’
इस शिकायत के बाद एनएचआरसी ने सूरत के पुलिस अधीक्षक से मामले पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने को कहा, जिसे बाद में पेश किया गया.
सूरत जिला पुलिस प्रशासन द्वारा पेश की गई रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए एनएचआरसी ने 17 अगस्त के अपने आदेश में कहा, ‘यह पता चला है कि पीड़ित (बिलाल कागजी) के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच के दौरान पुष्टि नहीं हुई है और पीड़ित ने अपने बचाव में सीसीटीवीी फुटेज भी पेश की है, जिससे पता चला है कि वह कथित घटनास्थल पर मौजूद नहीं था. मामले के जांच अधिकारी को जांच के निर्देश दिए गए हैं और आरोपी के नाम हटाने के साथ चार्जशीट दाखिल करने को कहा गया है.’
एनएचआरसी ने अपने आदेश में यह भी कहा कि रिपोर्ट पर विचार किया गया और पुलिस अधिकारियों द्वारा स्वीकार किया गया कि पीड़ित को गलत तरीके से फंसाया गया था.
आदेश में कहा गया, ‘राज्य इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है. आयोग इस मामले को पीड़ित को मुआवजा दिए जाने के लिए उपयुक्त मानता है, इसलिए गुजरात के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर चार हफ्ते में यह बताने को कहा जाता है कि पीड़ित को एक लाख रुपये के मुआवजे का भुगतान करने की सिफारिश आयोग को क्यों नहीं करनी चाहिए, पुलिसकर्मियों के अनुचित व्यवहार की वजह से जिनके (पीड़ित) मानवाधिकारों का हनन किया गया.’
बिलाल कागजी ने बताया, ‘मेरी नियमित कानूनी प्रैक्टिस के अलावा मैं दलितों, आदिवासियों और वंचितों के अधिकारों के लिए भी लड़ता रहा हूं, जिस वजह से मेरे पास पुलिस के अत्याचारों की कई शिकायतें आईं इसलिए कोसांबा के कुछ पुलिस अधिकारी मुझसे दुश्मनी निकाल रहे थे.’
बिलाल ने कहा, ‘मेरे गांव में दो समूह हैं, जो स्थानीय प्रभुत्व के लिए एक-दूसरे से लड़ते रहे हैं. वे कई आपराधिक मामलों में भी शामिल हैं और मैं इनमें से एक समूह के मामले की अदालत में पैरवी कर रहा हूं. पिछले साल पुलिस ने विपक्षी समूह के साथ सांठगांठ की, जिसके बाद विपक्षी समूह ने मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और पुलिस ने मुझे आपराधिक मामले में फंसा दिया. इस तरह बीते साल 12 अगस्त को मेरे खिलाफ मामला दर्ज हुआ.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, जब यह कथित घटना हुई. मैं घर पर था और मेरे घर पर लगे सीसीटीवी फुटेज से यह साबित होता है. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज पर विचार नहीं किया, क्योंकि उन्होंने मुझसे दुश्मनी निकाली. वे मुझे प्रताड़ित करना चाहते थे, क्योंकि मैं हिरासत में प्रताड़ना सहित मानवाधिकार उल्लंघनों जैसी कई शिकायतें उनके (पुलिसकर्मियों) खिलाफ दर्ज कराने के लिए जिम्मेदार हूं. मुझे आखिरकार मामले में सीसीटीवी फुटेज के आधार पर सेशन कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई.’
कागजी का कहना है कि स्थानीय पुलिस ने उनके खिलाफ इसी तरह के तीन और झूठे मामले दर्ज किए हैं, जिनके खिलाफ अदालत में वे लड़ रहे हैं.