सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मज़दूरों के लिए तीन अधिनियमों को लागू नहीं करने पर महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार द्वारा हलफ़नामा दायर नहीं करने को लेकर नाराज़गी जताई है. ये अधिनियम लॉकडाउन के कारण संकटग्रस्त प्रवासी मज़दूरों की मदद के लिए हैं.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के लिए तीन अधिनियमों को लागू नहीं करने पर महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार द्वारा हलफनामा दायर नहीं करने को लेकर नाराजगी जताई है.
ये अधिनियम लॉकडाउन के कारण संकटग्रस्त प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए हैं.
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘हलफनामा दायर नहीं करने से साफतौर पर पता चलता है कि इन राज्यों की अदालती आदेशों को लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.’
पीठ ने लॉकडाउन की मार झेल रहे प्रवासी मजदूरों से संबंधित मामले पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
पीठ ने कहा कि प्रवासी मजदूरों की सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में हैं.
पीठ ने कहा कि अदालत ने अपने 31 जुलाई के आदेश में राज्यों को तीन कानूनों- अंतर राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार एवं सेवा की शर्तों का नियमन) अधिनियम 1979, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रोजगार और सेवा की शर्तों का नियमन) अधिनियम 1996 और असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 को क्रियान्वित करने के निर्देश दिए थे.
पीठ ने कहा, ‘विभिन्न राज्यों ने अपने जवाब दाखिल किए हैं, लेकिन महाराष्ट्र और दिल्ली ने 31 जुलाई 2020 के आदेश के अनुरूप हलफनामा दायर नहीं किया.’
पीठ ने आदेश में कहा, ‘महाराष्ट्र और दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर आते हैं और काम कर रहे हैं.’
पीठ ने कहा कि अदालत ने एक निश्चित आदेश जारी कर राज्यों को हलफनामा दायर करने के निर्देश दिए थे, जिसका उद्देश्य इन अधिनियमों को लागू होते देखना था.
वहीं, महाराष्ट्र और दिल्ली की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने अदालत से मामले में हलफनामा दायर करने के लिए कुछ और समय देने का अनुरोध किया.
पीठ ने कहा, ‘हम महाराष्ट्र और दिल्ली के साथ ही उन राज्यों को जिन्होंने 31 जुलाई के अदालत के आदेश के अनुरूप हलफनामा दायर नहीं किया है, उन्हें दो हफ्ते का समय देते हैं.’
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई को केंद्रशासित प्रदेशों और राज्यों को तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर कर कोरोना की वजह से देशभर में लगे लॉकडाउन के बीच अपने गृहराज्य लौटे मजदूरों का पूरा ब्योरा मांगा था.
अदालत ने कहा था कि सभी फंसे हुए मजदूरों को ट्रेन या अन्य माध्यमों से 15 दिनों के भीतर उनके घर पहुंचाने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिए जाने के नौ जून के आदेश के बावजूद ऐसे बहुत से प्रवासी मजदूर हैं, जो महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों में अभी भी फंसे हुए हैं.
अदालत ने नौ जून को आदेश जारी कर केंद्र और राज्य सरकारों से देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे मजदूरों की पहचान कर घर लौटने की इच्छा रखने वाले मजदूरों को 15 दिनों के भीतर उनके गृहराज्य पहुंचाने, उनकी काउंसलिंग करने और साथ में कोरोना के दौरान रोजगार से हाथ धो बैठे इन मजदूरों के रोजगार के लिए नए रास्ते ढूंढ़ने में मदद करने को कहा था.
(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)