केंद्र द्वारा ‘सफल’ घोषित की गई इस योजना के तहत आठ लाख टन खाद्यान्न वितरण का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार इसमें से सिर्फ 2.65 लाख टन राशन का वितरण हुआ है.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के चलते देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अपने घरों को लौटने को मजबूर हुए और खाद्यान्न संकट से जूझ रहे प्रवासी मजदूरों के लिए आवंटित खाद्यान्न में से सिर्फ 33 फीसदी राशन का वितरण हो पाया है.
बीते एक सितंबर को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत करीब आठ लाख टन खाद्यान्न वितरण की योजना बनाई थी, लेकिन 31 अगस्त 2020 तक इसमें से सिर्फ 2.65 लाख टन खाद्यान्न का वितरण हो पाया है.
मंत्रालय के अनुसार योजना के तहत मई महीने में 2.35 करोड़, जून महीने में 2.48 करोड़, जुलाई में 31.43 लाख और अगस्त में 16 लाख लोगों यानी कुल करीब 2.65 करोड़ लोगों को दस-दस किलो खाद्यान्न वितरित किया गया है.
खास बात ये है कि इस तरह के लचर प्रदर्शन के बावजूद भारत सरकार ने इस योजना को ‘सफल’ घोषित कर दिया है.
व्यापक आलोचना और महामारी के दौरान सभी लोगों को राशन मुहैया कराने के लिए उठी मांगों के बाद केंद्र सरकार ने 15 मई 2020 को घोषणा किया था कि मई और जून महीने के लिए कुल आठ करोड़ ऐसे प्रवासी मजदूरों, फंसे हुए लोगों और जरूरतमंदों को भी मुफ्त राशन दिया जाएगा, जिनके पास राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) या राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन कार्ड नहीं है और वे खाद्य योजनाओं के दायरे में नहीं है.
हालांकि सरकार ने अभी तक ये भी स्पष्ट नहीं किया है कि उन्होंने किस आधार पर ये आकलन किया था कि सिर्फ आठ करोड़ लोग ही ऐसे लोग हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है.
बहरहाल, सरकार ने कहा था कि ऐसे सभी व्यक्ति को दस किलो खाद्यान्न (मई और जून महीने के लिए) और प्रति परिवार दो किलो चना मुफ्त में दिया जाएगा.
लेकिन अब सरकार इससे भी एक कदम आगे निकल गई है और कम वितरण पीछे उनकी दलील ये है कि राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश ऐसे सिर्फ करीब 2.8 करोड़ लोगों की ही पहचान कर पाए हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है और वे आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत राशन पाने के लिए पात्र हैं.
जबकि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़े दर्शाते हैं कि जून, 2020 के अंत तक राज्य में इस योजना के तहत वितरण के लिए 6.38 लाख टन खाद्यान उठाया था.
मंत्रालय ने दावा किया, ‘इस योजना में पूरा लचीलापन था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी योजना का लाभार्थी इससे वंचित न रह जाए. इसके लिए योजना के तहत पात्र प्रवासियों/फंसे हुए प्रवासियों और अन्य जरूरतमंद व्यक्तियों की पहचान करने और उन्हें खाद्यान्न वितरण की जिम्मेदारी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों को दी गई थी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों को केंद्र या राज्य योजना के तहत राशन कार्ड नहीं पा सके या संकट की स्थिति में खाद्यान्न पाने से वंचित रह गए लोगों की पहचान करने के लिए जिला/क्षेत्र स्तर के अधिकारियों को अपने हिसाब से दिशा-निर्देश और एसओपी जारी करने की पूरी स्वतंत्रता दी गई थी.‘
मंत्रालय ने कहा, ‘राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने सामूहिक रूप से योजना के कुल लाभार्थियों की संख्या 2.8 करोड़ रहने का अनुमान लगाया. कुल करीब 2.65 करोड़ लोगों को योजना के तहत खाद्यान्न वितरित किया गया है, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से अनुमानित 2.8 करोड़ लाभार्थियों का 95 प्रतिशत है.‘
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आत्मनिर्भार भारत योजना के तहत खाद्य विभाग ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को 29,132 टन चना आवंटित किया था, लेकिन 31 अगस्त तक इसमें से सिर्फ 16,323 टन (56 फीसदी) चने का वितरण हुआ है.
मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस अखबार को बताया कि इस योजना को अब खत्म कर दिया गया है क्योंकि किसी राज्य ने इसे आगे बढ़ाने की मांग नहीं की है.
मालूम हो कि बीते 30 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के बीच लाई गई ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ को नवंबर तक बढ़ा दिया था.
इसके तहत एनएफएसए के लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति अतिरिक्त पांच किलो खाद्यान्न (गेहूं या चावल) मुफ्त में दिया जाता है. इसके अलावा प्रति राशन कार्ड पर एक किलो दाल (चना) मुफ्त दिया जाता है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि मोदी ने ये घोषणा करते हुए ‘आत्मनिर्भर भारत पैकेज’ के तहत प्रवासी मजदूरों या जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, उनकों भी मुफ्त राशन मुहैया कराते रहने की घोषणा नहीं की.
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत भी अप्रैल से लेकर जून तक सभी लाभार्थियों को खाद्यान्न नहीं मिला है.
भोजन के अधिकार की दिशा में कार्य करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि एक तो सरकार द्वारा घोषित लाभार्थियों की संख्या ही अपर्याप्त है, बावजूद इसके सरकार खुद के द्वारा चिह्नित लाभार्थियों को भी उचित राशन नहीं दे रही है.
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत उन लोगों को लाभार्थी माना गया है जो एनएफएसए के दायरे में आते हैं.
हालांकि ये गणना 2011 के सर्वे पर आधारित है. जाहिर है इन सालों में जनसंख्या बढ़ी है तो लाभार्थियों की संख्या भी बढ़ी होती है.
इसलिए कार्यकर्ताओं की मांग है कि महामारी के कारण उत्पन्न हुए भयावह संकट को देखते हुए सभी लोगों, जिनके पास राशन कार्ड है उनको भी और जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उनको भी राशन मुहैया कराया जाए. हालांकि सरकार ने इन दलीलों को अभी तक स्वीकार नहीं किया.
वहीं, दूसरी तरफ चौतरफा आलोचना और प्रवासियों को भोजन मुहैया कराने की बढ़ती मांग के बाद सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सिर्फ दो महीने (मई-जून) के लिए बिना राशन कार्ड वाले कुल आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों को राशन देने की घोषणा की थी.
लेकिन इसकी हकीकत क्या है, यह उपरोक्त आंकड़े साफ बयां करते हैं.