सहारा समूह को चार करोड़ जमाकर्ताओं से मिले 86 हज़ार करोड़ रुपये की जांच की मांग: रिपोर्ट

सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार द्वारा कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर सहारा समूह द्वारा 2010 से 2014 के बीच गठित चार सहकारी समितियों में फ़र्ज़ीवाड़े की जांच कराने की मांग की गई है.

सुब्रत रॉय सहारा. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार द्वारा कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर सहारा समूह द्वारा 2010 से 2014 के बीच गठित चार सहकारी समितियों में फ़र्ज़ीवाड़े की जांच कराने की मांग की गई है.

सुब्रत रॉय सहारा. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)
सुब्रत रॉय सहारा. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: साल 2012 से 2014 के बीच जब सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप की दो कंपनियों को दोषी ठहराया और इसके प्रमुख सुब्रत रॉय को गिरफ्तार किया गया था तो इसी समय ग्रुप ने तीन सहकारी समितियों को शुरू किया था और कुल चार करोड़ जमाकर्ताओं से 86,673 करोड़ रुपये प्राप्त किए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अब सरकार द्वारा इन समितियों और इनकी जमा राशि पर अंगुली उठाई है और अनियमितताओं को लेकर जांच की मांग की है.

रिपोर्ट के मुताबिक सरकार इन समितियों में अत्यधिक संदिग्ध अनियमितताओं के मामले की जांच करेगी, जिसके कारण जमाकर्ताओं की कड़ी मेहनत के पैसों पर गंभीर जोखिम बना हुआ है.

नियामकों ने बताया कि जमा की गई राशि में से 62,643 करोड़ रुपये महाराष्ट्र के लोनावाला में एंबी वैली प्रोजेक्ट में निवेश किए गए थे.

ये वही प्रोजेक्ट है जिसे साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने जब्त किया था और जमाकर्ताओं के पैसे चुकाने के लिए की गई नीलामी की नाकाम कोशिशों के बाद साल 2019 में इसे छोड़ दिया गया.

ये चारों समितियां मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट के तहत शुरू की गई थीं, जो कृषि मंत्रालय के दायरे में आता है.

इनके नाम हैं: सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (2010 में स्थापित), हमारा इंडिया क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, सहारायण यूनिवर्सल मल्टीपर्पज सोसायटी लिमिटेड और स्टार्स मल्टीपरपज कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड.

बीते 18 अगस्त को कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल, जो सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार भी हैं, ने कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) द्वारा सहारा समूह में जांच शुरू करने की मांग की है.

सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव ने लगभग 4 करोड़ जमाकर्ताओं से 47,254 करोड़ रुपये जमा किए और एंबी वैली लिमिटेड में 28,170 करोड़ रुपये का निवेश किया. 

वहीं सहारायण यूनिवर्सल ने अपने 3.71 करोड़ सदस्यों से लगभग 18,000 करोड़ रुपये एकत्र किए और 17,945 करोड़ रुपये का निवेश किया। 

हमारा इंडिया में 1.8 करोड़ सदस्यों से 12,958 करोड़ रुपये जमा किए और 19,255 करोड़ रुपये का निवेश किया था. इसी तरह स्टार्स मल्टीपरपज कोऑपरेटिव ने 37 लाख सदस्यों से 8,470 करोड़ रुपये प्राप्त किया और एंबी वैली में 6273 करोड़ रुपये का निवेश किया है.

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को लिखे पत्र में अग्रवाल ने कहा कि इन चार समितियों द्वारा एंबी वैली लिमिटेड के शेयर्स की लेनदेन वक्त ‘काल्पनिक मुनाफे’ के बारे में पता चला है.

उन्होंने कहा, ‘ये इकाइयां शेयरों की बिक्री से आय दिखाती हैं, जबकि इस तरह के ट्रांसफर केवल समूह संस्थाओं के भीतर ही हुए हैं.’

अग्रवाल ने आगे कहा, ‘इन चार सहकारी समितियों में करोड़ों भारतीय नागरिकों द्वारा की गई अपनी गाढ़ी कमाई का निवेश गंभीर खतरे में है. ऐसी सभी जमा राशि अब सहारा समूह की कंपनियों खासकर एंबी वैली के रहम पर हैं, इसलिए सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए मामले की जांच की जाए.’

पिछले दो महीनों में रजिस्ट्रार ने देश भर के कई जमाकर्ताओं और सदस्यों से स्वैच्छिक शिकायतों के आधार पर इन चार सहारा समितियों के खिलाफ कई सुनवाई कीं और आदेश पारित किए.

इस संबंध में सहारा ग्रुप के प्रवक्ता ने इस अखबार को बताया, ‘हमारी समिति आम जनता से किसी भी तरह के योगदान को स्वीकार नहीं कर रही है, हम केवल अपने सदस्यों से जमा/योगदान को स्वीकार कर रहे हैं, जिनके पास हमारे समिति में मतदान के अधिकार हैं. हम अपने पैसे हमारे उप-कानूनों के प्रावधानों के अनुसार निवेश कर रहे हैं, जो सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार द्वारा मंजूरी प्राप्त है, जिन्होंने साल 2018 में स्वतंत्र चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों के माध्यम से हमारी समितियों का एक विशेष ऑडिट कराया था और हम पर कोई आरोप सिद्ध नहीं पाया गया है.’

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