गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस रोगियों के इलाज में लगे चिकित्साकर्मियों को वेतन के लाले

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में चार महीने से 378 कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में चार महीने से 378 कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला.

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गोरखपुर: बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज से जुड़े 378 चिकित्सकों, स्टाफ नर्सों, वार्ड व्वाय व अन्य कर्मचारियों को चार माह से वेतन और पिछले 12 महीने का एरियर नहीं मिला है.

इंसेफेलाइटिस इलाज के लिए धन की कमी न होने का ढोल पीटते न थकने वाले नेताओं व अफसरों का दावा इस तथ्य से पूरी तरह से खोखला साबित हो रहा है. हालत यह है कि वेतन व एरियर न मिलने के लिए एनएचएम महाप्रबंधक और बीआरडी के प्राचार्य एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेहरू अस्पताल में इंसेफेलाइटिस के तीन वार्ड हैं. नया बना 100 बेड का इंसेफेलाइटिस वार्ड जिसमें 214 चिकित्सक व कर्मचारी कार्यरत हैं और 54 बेड का वार्ड संख्या 12 जिसमें 164 चिकित्सक, नर्स व कर्मचारी कार्यरत है. यह सभी संविदा पर हैं.

इसके अलावा 54 बेड का वार्ड संख्या 14 भी है जिसमें इंसेफेलाइटिस के वयस्क मरीज भर्ती होते हैं. इस वार्ड का संचालन मेडिसिन विभाग से होता है जबकि 100 बेड के इंसेफेलाइटिस वार्ड व वार्ड नम्बर 12 का संचालन बाल रोग विभाग से होता है.

इन वार्डों में पूरे वर्ष इंसेफेलाइटिस के तकरीबन 3000 मरीज भर्ती होते हैं जिनके इलाज का दारोमदार संविदा पर कार्यरत इन्हीं चिकित्सकों, नर्सों, वार्ड व्वाय व कर्मचारियों पर होती है.

वार्ड संख्या 14 में कार्यरत चिकित्सक एवं कर्मचारियों का वेतन राज्य सरकार ने अप्रैल 2014 से अनुमन्य वेतनबैंड तथा ग्रेड वेतन का न्यूनतम कर दिया. यही नहीं उन्हें राज्य कर्मचारियों के समान महंगाई भत्ता भी देने का आदेश कर दिया गया जिससे उनका वेतन नियमित मिल रहा है लेकिन वार्ड संख्या 12 व 100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड के चिकित्सक, नर्सों व अन्य कर्मियों की काफी कम वेतन अनियमित रूप से मिल रहा है.

वार्ड संख्या 12 और 100 बेड के नए इंसेफेलाइटिस वार्ड के स्टाफ नर्सों को 16500 रुपये वेतन मिल रहा है जबकि वार्ड संख्या 14 की स्टाफ नर्सों को 30,441 रुपये मिल रहे हैं. जबकि मेडिकल कॉलेज में ही कार्य कर रही नियमित स्टाफ नर्सों को 38 हजार से 60 हजार रुपये तक प्रतिमाह वेतन मिल रहा है.

इसी तरह वार्ड संख्या 12 और नए इंसेफेलाइटिस वार्ड के तृतीय श्रेणी कर्मचारियों को सिर्फ आठ हजार रुपये प्रतिमाह तो वार्ड संख्या 14 में 17,147 रुपये प्रतिमाह वेतन मिल रहा है. मेडिकल कॉलेज के नियमित तृतीय श्रेणी कर्मचारियों को सभी सुविधाओं से 26 हजार से 40 हजार रुपये मिल रहे हैं.

वार्ड संख्या 12 और नए इंसेफेलाइटिस वार्ड के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सिर्फ सात हजार रुपये प्रतिमाह मिलता है जबकि वार्ड संख्या 14 में कार्य करने वाले कर्मचारियेां को 15330 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं. नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को 22 हजार से 30 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन मिल रहा है.

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यही नहीं वार्ड संख्या 12 व नए इंसेफेलाइटिस वार्ड के स्टाफ नर्स व तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सिर्फ 14 आकस्मिक अवकाश मिलता है. उन्हें किसी तरह का भत्ता नहीं मिलता जबकि वार्ड संख्या 14 के स्टाफ नर्सों व कर्मचारियों को 20 आकस्मिक अवकाश व प्रतिवर्ष महंगाई भत्ता मिलता है.

इस तरह एक ही अस्पताल में एक ही तरह के कार्य करने वाले नर्सों व कर्मचारियों के वेतन व अन्य सुविधाओं में दो गुने से लेकर तीन गुने का अंतर है.

वार्ड संख्या 12 और 100 बेड के इंसेफेलाइटिस वार्ड में तैनात चिकित्सक, नर्स, वार्ड व्वाय व अन्य कर्मियों का वेतन नेशनल स्वास्थ्य मिशन एनएचएम से दिया जाता है और यह सभी स्टाफ संविदा पर है.

हर वर्ष इनके वेतन का प्रस्ताव बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य की ओर से एनएचएम को भेजा जाता है और वहां से धन मिलने पर सभी का वेतन दिया जाता है लेकिन वर्षों से यह स्थिति है कि इंसेफेलाइटिस जैसी गंभीर बीमारी के इलाज से जुड़े इन कर्मियों का वेतन कभी भी समय से नहीं मिला.

इस वक्त दोनों वार्डों के चिकित्सकों व कर्मियों को इस वर्ष मार्च माह से वेतन नहीं मिला है. पिछले वर्ष का 5 फीसदी एरियर का भी भुगतान नहीं हुआ है.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य आर के मिश्रा ने 14 जून 2017 को एनएचम के मिशन डायरेक्टर, महाप्रबंधक को पत्र लिखकर धन की मांग की थी.

उन्होंने पत्र में लिखा कि वर्ष 2016-17 का पांच प्रतिशत वेतन वृद्धि का भुगतान इसलिए नहीं दिया जा सका है क्योंकि उन्हें 2016-17 का 75 फीसदी ही बजट मिला है. शेष 25 फीसदी बजट अब तक नहीं मिला. इसके लिए एनएचएम के मिशन डायरेक्टर व सीएमओ को कई बार प्रस्ताव भेजा लेकिन बजट प्राप्त नहीं हुआ.

इसी पत्र में प्राचार्य यह भी लिखते हैं कि उन्हें वार्ड नम्बर 12 के स्वीकृत 164 पदों के लिए 620.407 लाख रुपये मांगे थे जिसके सापेक्ष 122 पदों के लिए 262.42 लाख ही मिले.

इसी वार्ड के 22 स्पोर्टिंग स्टाफ के लिए 13.02 लाख रुपये ही मिले. इससे मार्च माह तक का वेतन दिया जा सका. इसी वार्ड के 20 सपोर्टिग स्टाफ नर्स के वेतन का बजट ही नहीं मिला.

100 बेड के नए इंसेफेलाइटिस वार्ड के 214 पदों के लिए 656.76 लाख रुपये मांगे गए थे लेकिन 2016-17 के लिए 109 आउटसोर्स कर्मियों के लिए 275.87 लाख रुपये ही स्वीकृत किए गए. इसके अलावा सपोर्टिंग स्टाफ के लिए 15.75 लाख ही मिले. इसकी वजह से इस वार्ड के कर्मियों को फरवरी 2017 तक का ही मानदेय दिया जा सका है.

प्रचार्य ने लिखा है कि वर्ष 2017-18 के लिए दोनों वार्डों के कर्मचारियों के वेतन में पांच प्रतिशत वृद्धि, उनके वेतन व दवाइयों के लिए 16 फरवरी को ही प्रस्ताव भेज दिया था लेकिन जून मे प्राप्त आरओपी में न तो वेतन वृद्धि की गई है न ही प्रस्तावित बजट का धन दिया गया है.

प्राचार्य ने पत्र में वर्ष 2017-18 के लिए मानव संसाधन के लिए 16 करोड़ 76 लाख 29 हजार 200 रुपये की मांग की है. एक तरफ बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य लगातार प्रस्ताव भेजने का उल्लेख कर रहे हैं वहीं एनएचएम के महाप्रबंधक प्रस्ताव मिलने से इंकार कर रहे हैं.

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सूर्य प्रकाश पांडेय द्वारा सूचना अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में एनएचएम के महाप्रबंधक डा. एनके पांडेय ने लिखा है कि 2017-18 के लिए मानव संसाधन के मानदेय के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज या सीएमओ गोरखपुर द्वारा कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया है.

वर्ष 2016-17 में वेतन वृद्धि के सम्बन्ध में एनएचएम के महाप्रबंधक ने लिखा है कि प्राचार्य बीआरडी मेडिकल कॉलेज ने 122 चिकित्सकों कर्मियों के लिए कोई भी मांग पत्र उपलब्ध नहीं कराया था. फिर भी मानदेय मद के बजट का 75 फीसद और पांच फीसद वेतन वृद्धि का धन 19 दिसम्बर को ही मुक्त कर दिया. शेष 25 फीसदी बजट के लिए प्राचार्य द्वारा न कोई मांग की गई न ही व्यय किए गए धन का उपयोगिता प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराया गया.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर के प्राचार्य और एनएचएम महाप्रबंधक बीच खतो-खिताबत जारी है लेकिन सचाई यह है कि इस कवायद में दिन-रात इंसेफेलाइटिस रोगियों के इलाज में लगे रहने वाले चिकित्सकों, नर्सो व कर्मचारियों को बिना वेतन के काम करना पड़ रहा है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल के आयोजकों में से एक हैं.)

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