भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि राहत उपायों के बिना अर्थव्यवस्था में वृद्धि की क्षमता बहुत गंभीर रूप से प्रभावित होगी. यदि अर्थव्यवस्था को इस भयावह स्थिति से निकालना है तो सरकार को अधिक से अधिक ख़र्च करना होगा.
नई दिल्ली: मौजूदा वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी में रिकॉर्ड 23.9 फीसदी की गिरावट पर भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राम ने कहा है ये आंकड़े ‘हम सभी को चौंकाने चाहिए’ और सरकार एवं नौकरशाहों को इससे डरने की जरूरत है.
अपने लिंक्डइन पोस्ट में राजन ने तर्क दिया कि सरकार भविष्य में प्रोत्साहन पैकेज देने के लिए आज संसाधनों को बचाने की रणनीति पर चल रही है जो कि ‘आत्मघाती’ साबित हुई है. सरकार द्वारा राहत प्रदान करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि कोविड-19 महामारी के रुकने तक विवेकाधीन खर्च कम ही रहेगा.
पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के लिए हाल ही में जारी जीडीपी वृद्धि के आंकड़े हम सभी को चिंतित करने चाहिए. भारत में 23.9 फीसदी संकुचन (और शायद यह तब और भी बुरा होगा जब हम इसमें अनौपचारिक क्षेत्र (इन्फॉर्मल सेक्टर) में क्षति का जोड़ देंगे) कोरोना से प्रभावित उन्नत अर्थव्यवस्थाओं इटली में 12.4% और अमेरिका में 9.5% की गिरावट की तुलना में काफी अधिक है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘भारत में अभी भी महामारी बढ़ ही रही है. इसलिए वायरस पर काबू पाए जाने तक विवेकाधीन खर्च या मनमुताबिक खर्च कम ही रहेगा.’
राजन ने कहा कि राहत उपायों के बिना अर्थव्यवस्था में वृद्धि की क्षमता बहुत गंभीर रूप से प्रभावित होगी. उन्होंने कहा कि सरकार को चालाकी के साथ अधिक से अधिक खर्च करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘यदि आप मानते हैं कि अर्थव्यवस्था बीमार है तो उसे बीमारी से लड़ने के लिए राहत उपायों की जरूरत है. बिना राहत राशि के लोग भोजन में कमी लाएंगे, अपने बच्चों को स्कूल से निकाल कर उन्हें काम करने या भीख मांगने भेज देंगे, उधार लेने के लिए अपना सोना गिरवी रख देंगे और उनकी कर्ज की किस्त और किराया बढ़ता ही जाएगा.’
अर्थशास्त्री ने आगे कहा, ‘इसी तरह बिना राहत के छोटे उद्योग, दुकानें, रेस्टोरेंट मजदूरों को वेतन देना बंद कर देंगे, उनके कर्ज बढ़ते जाएंगे या हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे. इस तरह जब तक कोविड-19 वायरस काबू में आएगा, तब तक अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी.’
रघुराम राजन ने कहा कि अधिकारियों की ये मानसिकता बहुत निराशाजनक है कि महामारी से पहले आर्थिक सुस्ती और सरकार की खराब वित्तीय हालत के कारण वे राहत और प्रोत्साहन दोनों पर खर्च नहीं कर सकते हैं.
मालूम हो कि कोरोना महामारी के शुरुआत से ही रघुराम राजन आर्थिक गतिविधियों को सावधानीपूर्वक संभालने के लिए सरकार को सतर्क करते रहे हैं.
इससे पहले राजन ने कहा था कि भारत एक बहुत बड़ी आर्थिक तबाही का सामना कर रहा है और इसके समाधान के लिए सरकार को विपक्ष के विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए, क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय अकेले ये काम नहीं कर सकता है.
भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार और आईएमएफ के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में काम कर चुके रघुराम राजन ने कहा था कि यह चुनौती सिर्फ कोरोना वायरस और लॉकडाउन से हुए नुकसान को ठीक करने के लिए नहीं है, बल्कि पिछले 3-4 साल में उत्पन्न हुईं आर्थिक समस्याओं को ठीक करना होगा.
इसके अलावा उन्होंने जाने-माने अर्थशास्त्रियों और नोबेल विजेताओं अभिजीत बनर्जी और अमर्त्य सेन के साथ लिखे एक लेख में महामारी से उबरने के लिए गरीबों के हाथ में तत्काल पैसे देने की बात की थी.
इस संबंध में उन्होंने कहा था, ‘लोन को प्रभावी होने में समय लगता है. दूसरी तरफ भूख एक तत्काल समस्या है.’
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ एक संवाद में राजन ने कहा था कि कोविड-19 संकट के दौरान देश में गरीबों की मदद के लिए 65,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. उन्होंने कहा था, ‘यदि गरीबों की जान बचाने के लिए हमें इतना खर्च करने की जरूरत है तो हमें करना चाहिए.’