एल्गार परिषद मामलाः एनआईए ने पूछताछ के लिए प्रोफेसर और पत्रकार को तलब किया

राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने एल्गार परिषद मामले में पूछताछ के लिए हैदराबाद की ईएफएलयू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के सत्यनारायण और द हिंदू के पत्रकार केवी कुरमानाथ को तलब किया है. ये दोनों कवि और सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव के दामाद हैं.

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(पार्थसारथी रे, के सत्यनारायण और केवी कुरमानाथ)

राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने एल्गार परिषद मामले में पूछताछ के लिए हैदराबाद की ईएफएलयू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के सत्यनारायण और द हिंदू के पत्रकार केवी कुरमानाथ को तलब किया है. ये दोनों कवि और सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव के दामाद हैं.

(पार्थसारथी रे, के सत्यनारायण और केवी कुरमानाथ)
(पार्थसारथी रे, के सत्यनारायण और केवी कुरमानाथ)

मुंबईः राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एल्गार परिषद मामले की जांच के संबंध में पूछताछ के लिए हैदराबाद के एक शिक्षाविद् और कोलकाता के पत्रकार को तलब किया है.

जिन दो लोगों को तलब किया गया है, उनमें से एक हैदराबाद के इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज यूनिवर्सिटी (ईएफएलयू) में प्रोफेसर के सत्यनारायण (51) जबकि दूसरे द हिंदू के पत्रकार केवी कुरमानाथ हैं.

ये दोनों ही एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव के दामाद हैं.

एनआईए की तरफ से समन जारी होने के बाद सात सितंबर को जारी बयान में सत्यनारायण ने कहा कि हालिया समन से उनका तनाव और बढ़ा है.

बता दें कि अगस्त 2018 में पुणे पुलिस ने हैदराबाद में वरवरा राव के घर के अलावा सत्यनारायण और कुरमानाथ के घरों पर भी छापेमारी की थी.

उस समय द वायर  के साथ बातचीत में सत्यनारायण ने पुलिस की इस कार्रवाई को लेकर रोष जताया था. छापेमारी के दौरान उनकी निजी संपत्ति नष्ट कर दी गई थी. उनके कंप्यूटर को जब्त कर लिया गया था.

तलाशी में सत्यनारायण की कई अप्रकाशित किताबों की पांडुलिपियां और अपनी पत्नी पावना के कई महत्वपूर्ण नारीवादी लेख भी नष्ट हो गए थे.

पुणे पुलिस ने उस समय सत्यनारायण को मराठी में लिखा हुआ एक कागज (समन) दिया था.

सत्यनारायण ने उस समय बताया था कि उन्हें नहीं पता कि उस कागज पर क्या लिखा है. बाद में उनके कुछ मराठी भाषी सहयोगियों ने इसे देखकर बताया कि इस वारंट में उनका और उनकी पत्नी के नाम का उल्लेख नहीं था लेकिन ऐसा माना गया कि उनके ससुर वरवरा राव उनके साथ रहते थे इसलिए उनके घर पर छापेमारी की गई.

उस समय सत्यनारायण ने द वायर  को दिए साक्षात्कार में बताया था कि छापेमारी के दौरान पुलिस लगातार उनकी जाति को लेकर सवाल-जवाब कर रही थी.

उन्होंने कहा था, ‘तलाशी के दौरान कई बार मेरी और मेरी पत्नी की जाति का उल्लेख किया गया. वे लगातार पावना से पूछते रहे कि वह हिंदू महिलाओं द्वारा आमतौर पर पहने जाने वाली पारंपरिक आभूषण क्यों नहीं पहनती. उन्होंने पावना से साफ कहा कि आपके पति दलित हैं जबकि आप ब्राह्मण हैं, आप रीति-रिवाजों का अनुसरण क्यों नहीं करती.’

बता दें कि इसी तरह की छापेमारी हैदराबाद में कुरमानाथ के घर पर भी की गई थी.

सत्यनारायण ने बयान में कहा था, ‘मैंने तब कहा था कि मेरा भीमा कोरेगांव मामले से कोई संबंध नहीं है. वरवरा राव के मेरे ससुर होने के तथ्य का इस्तेमाल कर मेरे घर पर छापेमारी की गई, जिससे मुझे मानसिक पीड़ा हुई.’

उन्होंने कहा, ‘यह तथ्य है कि वरवरा राव से मेरे करीबी संबंध हैं लेकिन मेरा फिर दोहराता हूं कि मेरा भीमा कोरेगांव मामले से कोई संबंध नहीं है.’

सत्यनारायण और कुरमानाथ दोनों के ही कोरोना संक्रमण के बीच में मुंबई जाने की आशंका है.

कुरमनाथ ने द वायर को बताया, ‘हमारे ससुर पहले से ही हिरासत में हैं, वह कोरोना संक्रमित हैं और उनकी तबियत ठीक नहीं है. इस तरह की स्थिति में एनआईए हमें मुंबई बुलाना चाहता है. यह चिंताजनक है.’

एनआईए के नोटिसों में प्रोफेसर और पत्रकार से गवाह के तौर पर पेश होकर मामले से संबंधित कुछ प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा गया है.

सत्यनारायण ने एक बयान में कहा, ‘यह सच है कि मैं वरवरा राव का रिश्तेदार हूं लेकिन मैं यह बात दोहराता हूं कि मामले से मेरा कोई लेना-देना नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘एनआईए का नोटिस ऐसे समय में हमारे परिवार के लिए परेशानी बढ़ाने वाला है जब वरवरा राव की सेहत बहुत अच्छी नहीं है और मुंबई में कोविड-19 महामारी तेजी से बढ़ रही है. मुझे इस संकट के समय मुंबई तलब किया गया है.’

इसके साथ ही एनआईए ने कोलकाता के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) में एसोसिएट प्रोफेसर पार्थसारथी रे को भी एल्गार परिषद मामले में पूछताछ के लिए तलब किया है.

पार्थसारथी ने एनआईए द्वारा उन्हें तलब करने को प्रताड़ित करने की रणनीति करार दिया है.

एनआईए ने सबसे पहले पिछले हफ्ते उन्हें पूछताछ के लिए मुंबई तलब किया था लेकिन एनआईए कोई आधिकारिक समन जारी नहीं कर सका था इसलिए पार्थसारथी ने मुंबई आने से इनकार कर दिया था.

बता दें कि पार्थसारथी रे एक जाने-माने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वामपंथी पत्रिका ‘सन्हती’ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. साथ ही वे पर्सिक्यूटेड प्रिज़नर्स सॉलिडेरिटी कमेटी (पीपीएससी) की पश्चिम बंगाल इकाई के संयोजक भी हैं.

पार्थसारथी उन नौ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से एक थे, जिन्हें बीते साल कथित तौर पर उन पर निगरानी रखने के लिए एक ‘स्पाईवेयर हमले‘ का निशाना बनाया गया था.

इन सभी कार्यकर्ताओं ने साल 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों को रिहा करने की मांग की थी.

पार्थसारथी ने तब यह भी बताया था कि उन्हें याहू की ओर से अलर्ट भी मिला था, जिसमें उन्हें सावधान रहने को कहा गया था.

उन्होंने बताया था कि याहू से मिले संदेश में लिखा था कि उनका याहू एकाउंट सरकार समर्थित लोगों के निशाने पर है, जिसका मतलब है कि वे उनके एकाउंट से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

तब एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद साल 2018 में गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि वह राज्य के 10 संगठनों पर नज़र रखे.

इन संगठनों से जुड़े लोगों में कोलकाता के एसोसिएट प्रोफेसर पार्थसारथी रे भी शामिल थे.

पार्थसारथी कहते हैं, ‘यह अजीब है. प्रेस में पढ़ने तक मैं एल्गार परिषद मामले के बारे में जानता तक नहीं था लेकिन अब इस स्थिति में खुद का होना वास्तव में अजीब है. यह मुझे प्रताड़ित करने और डराने का स्पष्ट प्रयास है.’

पार्थसारथी को सीआरपीसी की धारा 160 के तहत मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित होने के लिए समन किया गया है जबकि सत्यनारायण और कुरमानाथ को सीआरपीसी की धारा 91 के तहत समन किया गया है.

सीआरपीसी की धारा 91 के तहत जांच एजेंसी या अदालत जांच के उद्देश्य के लिए किसी भी तरह के दस्तावेज या अन्य जरूरी चीज को पेश करने को बोल सकती है.

 

बता दें कि एनआईए आगामी महीने में वरिष्ठ पत्रकार और कार्यकर्ता गौतम नवलखा और अकादमिक एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करने वाली है, जो इस मामले में अब तक की तीसरी चार्जशीट होगी.

बीते कुछ हफ्तों में कई लोगों को पूछताछ के लिए तलब किया गया है. कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के अलावा एनआईए ने इस मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों को भी तलब किया है.

इससे पहले जुलाई महीने में दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी को एनआईए ने इस मामले में गवाह के तौर पर समन किया गया था और बाद में गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस ने अब तक इस मामले में 12 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से नौ पुणे पुलिस द्वारा और बाकी एनआईए द्वारा इस साल जनवरी में जांच संभालने के बाद गिरफ्तार किए गए हैं.

मामले में पहले की दौर की गिरफ्तारियां जून 2018 में हुई थीं, जब पुणे पुलिस ने लेखक और मुंबई के दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, यूएपीए विशेष और वकील सुरेंद्र गाड़लिंग, गढ़चिरौली से विस्थापन मामलों के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग की प्रमुख शोमा सेन और दिल्ली के नागरिक अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन शामिल थे.

दूसरे दौर की गिरफ्तारियां अगस्त 2018 से हुईं, जिसमें वकील अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, लेखक वरवरा राव और वर्नोन गॉन्जाल्विस को हिरासत में लिया गया था.

शुरुआत में पुणे पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी लेकिन महाराष्ट्र से भाजपा की सरकार जाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नवंबर 2019 में इस मामले को एनआईए को सौंप दिया.

इसके बाद एनआईए ने 14 अप्रैल 2020 को अकादमिक आनंद तेलतुम्बड़े और कार्यकर्ता गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया और फिर जुलाई 2020 में हेनी बाबू की गिरफ़्तारी हुई.

इससे पहले पुणे पुलिस ने पहली चार्जशीट दाखिल की थी, जो 5,000 से अधिक पेजों की थी. पुलिस ने दावा किया था कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनके कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) से संबंध हैं और 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद कार्यक्रम आयोजित करने में इन्होंने मदद की थी.

इस मामले में फरवरी 2019 में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई थी और राज्य सरकार का कहना था कि माओवादी नेता गणापती एल्गार परिषद मामले के मास्टरमाइंड हैं.

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