भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा वित्त पोषित एक अध्ययन के लिए कुल 464 मरीज़ों को शामिल किया गया था. इस दौरान प्लाज़्मा थेरेपी वाले 235 मरीज़ों में से 34 और स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट लेने वाले 229 मरीज़ों में से 31 की मौत हुई थी.
नई दिल्ली: कॉन्वेलेसेंट प्लाज्मा (सीपी) थेरेपी कोरोना वायरस संक्रमण के गंभीर मरीजों का इलाज करने और मृत्यु दर को कम करने में कोई खास कारगर साबित नहीं हो रही है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा वित्त पोषित बहु-केंद्रीय अध्ययन में यह पाया गया है.
इस स्टडी को MedRxiv जर्नल में प्रकाशित किया गया है. हालांकि इस अध्ययन की अभी तक समीक्षा नहीं की गई है और खुद आईसीएआर इस पर प्रतिक्रिया नहीं दे रही है.
समीक्षा नहीं किए जाने का मतलब है कि अभी इस अध्ययन का आकलन किया जाना बाकी है, इसलिए इसे किसी भी क्लीनिकल कार्य में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
कोविड-19 मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी के प्रभाव का पता लगाने के लिए 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 39 निजी और सरकारी अस्पतालों में ‘फेज-2, ओपन-लेवल, मल्टीसेंटर रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल’ (पीएलएसीआईडी या प्लेसिड ट्रायल) किया गया.
सीपी थेरेपी में कोविड-19 से उबर चुके व्यक्ति के रक्त से एंटीबॉडीज लेकर उसे संक्रमित व्यक्ति में चढ़ाया जाता है, ताकि उसके शरीर में संक्रमण से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके.
इस स्टडी के लिए कुल 1210 मरीजों की स्क्रीनिंग की गई थी, जिसमें से कुल 464 मरीजों को शामिल किया गया था.
अध्ययन के दौरान 229 मरीजों को कोविड-19 का बेस्ट स्टैंडर्ड केयर (बीएससी) और 235 मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी के साथ बीएससी भी दिया गया. कोरोना मरीजों को 24 घंटे के अंतराल में 200 एमएल कॉन्वेलेसेंट प्लाज्मा (सीपी) का दो डोज दिया गया था.
इसमें से प्लाज्मा थेरेपी प्राप्त करने वाले 44 मरीजों (18.7%) और स्टैंडर्ड केयर वाले 41 मरीजों (17.9%) के समग्र प्राथमिक परिणाम सामने आए.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान प्लाज्मा थेरेपी वाले 235 मरीजों में से 34 (13.6 फीसदी) और स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट लेने वाले 229 मरीजों में से 31 (14.6%) मरीजों की मौत हुई थी.
आईसीएमआर ने बताया कि कोविड-19 के लिए आईसीएमआर द्वारा गठित राष्ट्रीय कार्यबल ने इस अध्ययन की समीक्षा कर इससे सहमति जताई.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 27 जून को जारी किए गए कोविड-19 के ‘क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल’ में इस थेरेपी के इस्तेमाल को मंजूरी दी थी.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘सभी नामांकित प्रतिभागियों को क्लीनिकल जांच और कई लैबोरेटरी जांच से गुजरना पड़ा, जिसमें धमनी रक्त गैस (एबीजी) विश्लेषण, पूर्ण रक्त गणना, गुर्दे और यकृत क्रिया परीक्षण शामिल हैं. सभी मरीजों से 28वें दिन टेलीफोन के जरिये उनकी स्वास्थ्य स्थिति का आकलन किया गया.’
कोरोना थेरेपी प्राप्त करने वाले मरीजों में सांस लेने और थकान की समस्या सातवें दिन बढ़ गई थी, जबकि बुखार और खांसी वाली समस्या दोनों तरह के मरीजों में समान थी.
अध्ययन में कहा गया, ‘सीपी मृत्यु दर को कम करने और कोविड-19 के गंभीर मरीजों के इलाज करने में कोई खास कारगर नहीं है.’
अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 के लिए सीपी के इस्तेमाल पर केवल दो परीक्षण प्रकाशित किए गए हैं, एक चीन से और दूसरा नीदरलैंड से. इसके बाद ही दोनों देशों में इसे रोक दिया गया था.
मालूम हो कि विभिन्न देशों में कोरोना वायरस के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी काफी कारगर होने का दावा किया जा रहा है. दिल्ली सरकार इस श्रेणी में काफी आगे है.
प्लाज्मा थेरेपी को लेकर उस समय बहस और तेज हो गई जब अमेरिका ने भी आपातकालीन स्थिति में कॉन्वेलेसेंट प्लाज्मा (सीपी) के इस्तेमाल की इजाजत दे दी.
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने 23 अगस्त 2020 को कहा था कि देश में कॉन्वेलेसेंट प्लाज्मा से 70,000 से अधिक मरीजों का इलाज किया गया और यह प्लाज्मा कोरोना वायरस संक्रमण से उबर चुके लोगों के रक्त से लिया जाता है.
उन्होंने कहा कि उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर एफडीए इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह उत्पाद कोविड-19 के इलाज में प्रभावी हो सकता है और ‘उसके ज्ञात और संभावित फायदे उसके ज्ञात और संभावित जोखिम से अधिक हैं.’
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अब भी मानना है कि प्लाज्मा थेरेपी प्रायोगिक दौर में है और उसका मूल्यांकन जारी रहना चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)