बदहाल अर्थव्यवस्था को कृषि के ज़रिये उबारने की आशाओं के बीच ग्रामीण क्षेत्र में संकट के संकेत

ग्रामीण क्षेत्र में प्रमुख फसलों को छोड़कर बागवानी, दूध और मुर्गी पालन के बाज़ार मूल्य में गिरावट देखने को मिल रही है. प्रवासियों के अपने घरों को लौटने के कारण शहर से पैसे भेजने की दर में काफी कमी आई है, जिसके कारण आने वाले समय में इस क्षेत्र की वृद्धि थम सकती है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

ग्रामीण क्षेत्र में प्रमुख फसलों को छोड़कर बागवानी, दूध और मुर्गी पालन के बाज़ार मूल्य में गिरावट देखने को मिल रही है. प्रवासियों के अपने घरों को लौटने के कारण शहर से पैसे भेजने की दर में काफी कमी आई है, जिसके कारण आने वाले समय में इस क्षेत्र की वृद्धि थम सकती है.

Nadia: A farmer prepares land for cultivation during Monsoon season, in Nadia district of West Bengal, Tuesday, July 9, 2019. (PTI Photo)(PTI7_9_2019_000060B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के समय आर्थिक वृद्धि की दर में बेहद चिंताजनक गिरावट के बीच भले ही ग्रामीण क्षेत्र ने आशा की किरण जगाई हो, लेकिन कुछ ऐसे संकेत भी देखने को मिल रहे हैं, जिसके कारण आने वाले समय में इस क्षेत्र की वृद्धि थम सकती है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के कम से कम तीन ऐसे संकेत हैं, जिस पर तत्काल विचार किए जाने की जरूरत है.

वैसे तो मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़ों के अनुसार, कृषि क्षेत्र की वृद्धि में तीन फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है. नतीजतन रबी फसलों की अच्छी खरीद हुई और बाजार मूल्य भी पहले से बेहतर बना रहा, लेकिन मंडियों के नए आंकड़े दर्शाते हैं कि बागवानी, दूध और मुर्गी पालन आदि क्षेत्रों के बाजार मूल्य में गिरावट आ रही है.

दूसरी तरफ बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी अपने घरों को लौट आए हैं, जो कि ग्रामीण मांग के स्रोत थे. ये बिहार जैसे राज्यों के लिए काफी चिंताजनक हैं, क्योंकि यहां के निवासी शहरों में कमाकर अपने घर पैसे भेजा करते थे, जिससे उनकी आजीविका चलती थी.

इन सब के ऊपर सबसे बड़ी चिंता कोरोना वायरस की है. चूंकि अब ये महामारी तेजी से शहरों से होते हुए ग्रामीण बसावटों में दस्तक दे रही है, जिसके कारण इसके सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव काफी ज्यादा होंगे, क्योंकि भारत के अधिकतर स्वास्थ्य संस्थान बद से बदतर स्थिति में चल रहे हैं.

भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया, ‘दो तरीके की चिंताए हैं. पहली ये कि देश भर में बंपर फसल का उत्पादन हुआ है, लेकिन इनके दाम आधे ही हैं. देश के एक हिस्से को बंपर फसल से काफी फायदा हुआ है, जहां आप ट्रैक्टर की मांग को देखते हैं, देश के अन्य आधे हिस्से को इतना फायदा नहीं हुआ है क्योंकि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिला है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘दूसरी समस्या ये है कि देश के कई हिस्सों में काफी कम पैसा भेजा गया है या उनके पास पैसा नहीं है. यदि ये धन नहीं होने की वजह से ग्रामीण मांग प्रभावित होती है तो इसके चलते किसानों के लिए समस्या खड़ी हो जाएगी, उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलेंगे. किसानों को अच्छा खासा पैसा ग्रामीण या स्थानीय मांग के आधार पर मिलता है. उनके उत्पादन का कारीब 40-45 फीसदी ही शहरी क्षेत्र में भेजा जाता है, बाकी ग्रामीण खपत के लिए होता है.’

मालूम हो कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी में 23.9 फीसदी की भारी कमी दर्ज की गई है.

पहली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि दर (सकल मूल्य वर्धन या जीवीए) 39.3 फीसदी की गिरावट, निर्माण क्षेत्र में 50.3 फीसदी की गिरावट, उद्योग में 38.1 फीसदी की गिरावट, खनन क्षेत्र में 23.3 प्रतिशत की गिरावट और सेवा क्षेत्र में 20.6 प्रतिशत की गिरावट आई है.

आंकड़ों के अनुसार, बिजली, गैस, पानी की सप्लाई और अन्य उपयोगी सेवाओं में सात प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इसके अलावा व्यापार, होटल, यातायात, संचार और प्रसारण से जुड़ीं अन्य सेवाओं में 47 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.

खास बात ये है कि इस तिमाही में सिर्फ कृषि, वानिकी और मत्स्य उद्योग में 3.4 फीसदी की विकास दर्ज की गई है.

सेन ने आगे कहा, ‘कई सारे राज्य अपने खर्च में कमी लाने की तैयारी में हैं और यदि वे ऐसा करते हैं तो इसके चलते मांग के कमी आएगी, परिणामस्वरूप पूरी स्थिति बदतर हो जाएगी. मेरी समझ यह है कि निवेश गतिविधि को गंभीरता से रोकना पड़ सकता है.’

प्रवासियों द्वारा पैसे भेजने में गिरावट आने की वजह से कम आय वाले राज्य प्रभावित हुए हैं. साल 2017 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक देश में कुल आंतरिक प्रवासियों की संख्या 13.9 करोड़ है और उद्योग अनुमानों के मुताबिक एक साल में देश के भीतर करीब दो लाख करोड़ रुपये भेजे जाते हैं.

प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाले पैसों में बिहार और उत्तर प्रदेश की 60 फीसदी हिस्सेदारी है, वहीं ओडिशा, झारखंड, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश पैसे प्राप्त करने वाले अन्य राज्य में शामिल हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक अन्य चिंता की बात ये उभर के आ रही है कि प्रमुख फसलों के अलावा बागवानी और आलू एवं प्याज जैसे उत्पादों के दाम गिरने लगे हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अभी भी रेस्टोरेंट और बैंक्वेट हॉल वगैरह बंद चल रहे हैं, शादी के कार्यक्रम का आयोजन बहुत सीमित संख्या के साथ ही किया जा रहा है.

प्याज के लिए साल-दर-साल मुद्रास्फीति में गिरावट जारी है, जो अप्रैल में 72.3 प्रतिशत से गिरकर मई में 5.8 प्रतिशत हो गई. इसके बाद जून में 15.3 प्रतिशत और जुलाई में 25.6 प्रतिशत की और गिरावट आ गई. फलों की भी मुद्रास्फीति में कमी आई है.

वित्त मंत्रालय ने अपनी जुलाई महीने की एक रिपोर्ट में कहा है कि बेहतर मानसून की संभावना को देखते हुए कृषि क्षेत्र कोरोना वायरस से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

रिपोर्ट में हालिया कृषि क्षेत्र के सुधारों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इससे कृषि क्षेत्र नियंत्रण मुक्त हुआ है. इसके साथ ही इनसे किसान सशक्त हुए हैं और वे भारत के विकास की कहानी का एक बड़ा और अधिक स्थिर भागीदार बन सके हैं.

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