रोज़गार गंवा चुके मज़दूरों की मदद के लिए श्रम क़ानूनों में हुए बदलाव रद्द करना ज़रूरी: कांग्रेस

राज्यसभा में कांग्रेस सांसद पीएल पूनिया ने कहा कि कोविड-19 महामारी में मज़दूरों को रोज़गार ख़त्म हो जाने की वजह से घोर संकट का सामना करना पड़ रहा है. कुछ राज्य सरकारों ने उनकी मदद करने के बजाय उद्योगपतियों के हित में श्रम क़ानूनों में बदलाव किया है.

(फोटो: पीटीआई)

राज्यसभा में कांग्रेस सांसद पीएल पूनिया ने कहा कि कोविड-19 महामारी में मज़दूरों को रोज़गार ख़त्म हो जाने की वजह से घोर संकट का सामना करना पड़ रहा है. कुछ राज्य सरकारों ने उनकी मदद करने के बजाय उद्योगपतियों के हित में श्रम क़ानूनों में बदलाव किया है.

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नई दिल्ली: राज्यसभा में कांग्रेस के एक सदस्य ने श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को समाप्त करने की मांग उठाते हुए सोमवार को कहा कि कोविड-19 महामारी की वजह से उत्पन्न हालात के कारण रोजगार गंवा चुके मजदूरों की मदद के लिए यह कदम उठाना बेहद जरूरी है.

कांग्रेस के पीएल पूनिया ने उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी की वजह से अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न हो गई है. इस संकट में मजदूरों को अपने रोजगार खत्म हो जाने की वजह से घोर संकट का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा ‘हमने बेरोजगार हो चुके मजदूरों को मीलों की दूरी पैदल तय कर अपने घरों की ओर जाते हुए देखा है.’

पूनिया ने कहा कि ऐसे विषम हालात में इन बेहाल मजदूरों की मदद करने के बजाय कुछ राज्य सरकारों ने उद्योगपतियों के हितों में श्रम कानूनों में बदलाव कर दिया. इन बदलावों के तहत मजदूरों के काम करने के घंटे बढ़ा दिए गए और ओवरटाइम की अवधि भी अधिक कर दी गई है.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश इसका उदाहरण हैं. पूनिया ने श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को समाप्त करने और पुराने श्रम कानूनों को बहाल करने की मांग करते हुए सरकार से कहा कि मजदूरों के हित में यह कदम उठाना बेहद जरूरी है.

विभिन्न दलों के सदस्यों ने उनके इस मुद्दे से स्वयं को संबद्ध किया.

इसके अलावा शून्यकाल में ही भाजपा के हरनाथ सिंह यादव ने बढ़ती आबादी और उसकी वजह से घटते संसाधनों का मुद्दा उठाया.

उन्होंने कहा कि देश जनसंख्या विस्फोट के मुहाने पर खड़ा है. बढ़ती आबादी ने न केवल बेरोजगारी, खाद्य संकट, पर्यावरण, जलसंकट, संसाधनों की कमी जैसी समस्याएं खड़ी की हैं बल्कि सामाजिक तानेबाने को भी गहरे तक प्रभावित किया है.

उन्होंने सरकार से ऐसे उपाय करने की मांग की जिनसे न केवल आबादी नियंत्रित की जा सके बल्कि संसाधनों का अधिक प्रयोग सुनिश्चित किया जा सके.

बता दें कोरोना महामारी के मद्देनजर लागू लॉकडाउन के दौरान देश के कई राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव किया है.

मई महीने में उत्तर प्रदेश सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने के नाम पर तीन साल के लिए विभिन्न श्रम कानूनों से राज्य के उद्योगों को छूट देने के लिए एक अध्यादेश को मंजूरी दी थी.

बीते मई महीने में संसद की श्रम मामलों की स्थायी समिति ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात समेत नौ राज्यों से श्रम कानूनों को ‘कमजोर’ किए जाने को लेकर जवाब मांगा था.

समिति के अध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने कहा था कि श्रमिकों के अधिकारों की कीमत पर उद्योगों को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है. उत्तर प्रदेश और गुजरात के अलावा भाजपा शासित मध्य प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश और असम के साथ ही कांग्रेस शासित राजस्थान और पंजाब से भी स्पष्टीकरण मांगा गया था.

वहीं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा था कि भारत में श्रम कानूनों में हो रहे बदलाव अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार, श्रमिक और नियोक्ता संगठनों से जुड़े लोगों के साथ त्रिपक्षीय वार्ता के बाद ही श्रम कानूनों में किसी भी तरह का संशोधन किया जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)