26 फरवरी 2019 को हुए बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद 27 फरवरी को जम्मू कश्मीर के बड़गाम में वायुसेना का एमआई-17 हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें छह जवान शहीद हुए थे और एक स्थानीय की मौत हो गई थी. जांच में पाया गया था कि वायुसेना ने अपने ही हेलीकॉप्टर को मार गिराया था.
नई दिल्ली: सशस्त्र बलों के एक न्यायाधिकरण ने सोमवार को उन दो अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी, जिसमें उन्हें पिछले साल 27 फरवरी को कश्मीर के बडगाम जिले में वायुसेना के एमआई-17 हेलीकॉप्टर को अपनी ही मिसाइल द्वारा मार गिराए जाने की परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था.
यह घटना उस समय हुई थी, जब भारत और पाकिस्तान की वायुसेना के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई थी.
दोनों अधिकारियों के वकील अंकुर छिब्बर ने कहा कि हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने के मामले में वायु सेना द्वारा ग्रुप कैप्टन एसआर चौधरी और विंग कमांडर श्याम नैथानी के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई सशस्त्र बल अधिकरण की प्रधान पीठ द्वारा रोक दी गई है.
वायुसेना द्वारा की गई उच्च स्तरीय जांच में पाया गया था कि सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल ने हेलीकॉप्टर को मार गिराया था.
बता दें कि पिछले साल 26 फरवरी को हुए बालाकोट एयर स्ट्राइक के एक दिन बाद 27 फरवरी को जम्मू कश्मीर के बड़गाम में वायुसेना का एमआई-17 हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. इसमें वायुसेना के छह जवान शहीद हो गए थे, जबकि एक स्थानीय नागरिक की मौत हो गई थी.
घटना की प्रारंभिक जांच में कहा गया था कि बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद 27 फरवरी की सुबह जब भारत और पाकिस्तान के बीच नौशेरा सेक्टर में हवाई संघर्ष हो रहा था उसी दौरान बड़गाम में रूस निर्मित वायुसेना को एमआई-17 हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था.
लेकिन बाद में उच्च स्तरीय जांच रिपोर्ट में पता चला कि जम्मू कश्मीर के बडगाम में 27 फरवरी को वायुसेना का दुर्घटनाग्रस्त हेलिकाप्टर एमआई-17 भारतीय मिसाइल का ही निशाना बना था.
इस रिपोर्ट में वायुसेना के 5 अधिकारियों को दोषी पाया गया था. इनमें श्रीनगर बेस के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर भी शामिल थे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, वकील अंकुर छिब्बर ने कहा, ‘दोनों अधिकारियों ने वायु सेना के नियमों के नियम 156 के उप-खंड दो के आधार पर कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (सीओआई) और उसके निष्कर्षों को चुनौती दी. बल्कि उन्होंने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के गठन पर ही सवाल उठाया.’
उन्होंने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) फ़िलिप कांपोस और जस्टिस राजेंद्र मेनन की अगुवाई वाले ट्रिब्यूनल ने सीओआई के गठन में अतिक्रमण पाए और दोनों अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न करने के निर्देश दिए. इस मामले में 30 सितंबर को अगली सुनवाई होगी.
जांच में पाया गया कि पाया गया कि हेलीकॉप्टर के अंदर ‘दोस्त या दुश्मन को पहचानने (आईएफएफ)’ सिस्टम बंद कर दिया गया था और ज़मीनी स्टाफ़ और हेलीकॉप्टर के भीतर मौजूद कर्मियों के बीच संचार और समन्वय में ‘महत्वपूर्ण खामियां’ थी.
मानक संचालन प्रक्रियाओं में भी उल्लंघन पाए गए. आईएफएफ एक ऐसी व्यवस्था है जो एयर डिफेंस रडारों को ये चिह्नित करने में मदद करती है कि एक विमान या हेलीकॉप्टर दोस्त का है या दुश्मन का.
पिछले साल 4 अक्टूबर को आयोजित वार्षिक प्रेस सम्मेलन में चीफ ऑफ एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने इस घटना को एक ‘बहुत बड़ी भूल’ कहा था और दोषी पाए जाने वालों पर कार्रवाई करने का अश्वासन दिया था.
उस घटना के बाद, भारतीय वायुसेना ने श्रीनगर बेस के एयर अफसर कमांडिंग (एओसी) को स्थानांतरित कर दिया था ताकि घटना की गहन जांच सुनिश्चित हो सके.
मालूम हो कि 14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा ज़िले में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले में 40 जवानों की मौत हो गई थी. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था.
इसके बाद 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक किया था.
इसके अगले दिन 27 फरवरी को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हवाई संघर्ष में पाकिस्तान ने भारत का मिग-21 विमान गिराने का दावा किया था वहीं भारत ने पाकिस्तान का एफ-16 विमान गिराने का दावा किया था. इसी दौरान बड़गाम में एमआई-17 हेलीकॉप्टर हादसे का शिकार हुआ था.
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस हवाई संघर्ष में विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान ने गिरफ़्तार कर लिया था. हालांकि, पाकिस्तान ने दो दिन बाद अभिनंदन को छोड़ दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)