बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी की वजह से ग़रीबी कुछ ही महीनों में सात फीसदी बढ़ गई है. अत्याधिक ग़रीबी रेखा से ठीक ऊपर रहने वाले लोग तेज़ी से नीचे गिर रहे हैं. इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोविड-19 का बुरा असर पड़ा है.
नई दिल्ली: बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने मंगलवार को कहा कि कोरोना वायरस महामारी ने पिछले कई दशकों के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र में हुई प्रगति को पटलते हुए लगभग 3.7 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया है.
फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस महामारी का वास्तविक प्रसार चाहे जितना रहा हो, लेकिन इसने आर्थिक रूप से प्रत्येक देश में व्यापक रूप से तबाही मचाई है.
रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक अनुमान का हवाला देते हुए कहा गया है कि दुनिया भर में विकास को बढ़ावा देने के लिए 18,000 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करने के बावजूद 2021 के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 12,000 अरब डॉलर या इससे अधिक कमी होगी.
फाउंडेशन की वार्षिक ‘गोलकीपर्स रिपोर्ट’ में यह बात कही गई. यह रिपोर्ट मुख्य रूप से गरीबी को दूर करने और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का विश्लेषण करती है.
After 20 years of advances toward global goals to improve health and reduce poverty, COVID-19 has stopped progress in its tracks. We can end the pandemic, but it will take a solution that includes everyone. Learn more in this year’s Goalkeepers report. https://t.co/pOEqujQHcX
— Mark Suzman (@MSuzman) September 15, 2020
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस संकट के दौरान भारत ने 20 करोड़ महिलाओं को नकदी हस्तांतरण किया और इससे न केवल भूख और गरीबी पर महामारी के असर को कम करने में मदद मिली, बल्कि महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिला.
एनडीटीवी के मुताबिक रिपोर्ट में फाउंडेशन ने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से गरीबी कुछ ही महीनों में 7 फीसदी बढ़ गई है, जो दो दशक के विकास को एक ही झटके में खत्म कर दिया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 अप्रत्यक्ष रूप से पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित कर रहा है और मौत का कारण बन रहा है, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाएं महामारी शुरू होने से पहले से और उसके बाद और ज्यादा बाधित हुईं हैं.
फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष बिल गेट्स ने कहा कि महामारी ने नियमित टीकाकरण को प्रभावित किया है. इससे पहले टीकाकरण, स्वास्थ्य प्रणालियों में गिरावट 1990 के दशक में देखा गया था.
उन्होंने कहा, ‘दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमने लगभग 25 सप्ताह में करीब 25 साल पीछे चले गए.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी का शिक्षा पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. महामारी से पहले से ही दुनिया में शिक्षा का संकट था, जिसमें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 53 प्रतिशत छात्र थे और उप-सहारा अफ्रीका में 87 प्रतिशत थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक तंगी और स्कूल बंद होने से इन असमानताओं के और बढ़ने की संभावना है, जिसमें लड़कियों के स्कूल न लौटने का खतरा और बढ़ गया है.
बता दें कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने कोविड-19 से ग़रीबी, भुखमरी और संघर्ष बढ़ने की आशंका जताई थी कि कमज़ोर देशों में कोविड-19 संकट से आर्थिक एवं स्वास्थ्य पर पड़ने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों के कारण ग़रीबी बढ़ेगी, औसत आयु कम होगी, भुखमरी बढ़ेगी, शिक्षा की स्थिति ख़राब होगी और अधिक बच्चों की मौत होगी.
बीते जुलाई महीने में संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक महामारी के पहले 12 महीनों में भुखमरी से लाखों बच्चों की जान जाने की आशंका जताई थी.
संयुक्त राष्ट्र ने अगाह किया था कि कोरोना वायरस और उससे निपटने के लिए लगे प्रतिबंधों के कारण कई समुदाय भुखमरी का सामना कर रहे हैं और एक महीने में 10,000 से अधिक बच्चों की जान जा रही है.
जुलाई के शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र ने चेताया था कि कोरोना वायरस महामारी इस साल करीब 13 करोड़ और लोगों को भुखमरी की ओर धकेल सकती है.
बीते जून महीने में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट में कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक ग़रीबी दर में 22 वर्षों में पहली बार वृद्धि होगी. भारत की ग़रीब आबादी में एक करोड़ 20 लाख लोग और जुड़ जाएंगे, जो विश्व में सर्वाधिक है.
इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी थी कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)