मृतक किसान भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहण) द्वारा 15 सितंबर से मुक्तसर ज़िले के बादल गांव में नए कृषि विधेयकों के ख़िलाफ़ आयोजित प्रदर्शन में भाग ले रहे थे, जो पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का पैतृक गांव है.
चंडीगढ़: पंजाब के मुक्तसर जिले में कृषि संबंधी नए विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान 70 साल के एक किसान की किसी जहरीले पदार्थ खाने के बाद मौत हो गई. पुलिस ने शनिवार को यह जानकारी दी.
मनसा जिले के अक्कनवाली गांव निवासी प्रीतम सिंह ने शुक्रवार सुबह कोई जहरीला पदार्थ खा लिया. बाद में एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई.
सिंह भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहण) द्वारा 15 सितंबर से बादल गांव में आयोजित प्रदर्शन में भाग ले रहे थे. यह पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का पैतृक गांव है.
पुलिस ने कहा कि अभी पता नहीं चला है कि किसान के यह कदम क्यों उठाया.
किसान संगठन का कहना है कि प्रीतम सिंह पर कर्ज था.
भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहण) के महासचिव सुखदेव सिंह ने मांग की कि मृतक के परिवार को प्रशासन की ओर से मुआवजा दिया जाना चाहिए.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, संगठन के राज्य सचिव शिंगरा सिंह मान ने राज्य सरकार के प्रतिनिधियों से धरना स्थल पर आने और मृतक किसान के परिवार के लिए मुआवजा घोषित करने की मांग की है.
उन्होंने कहा, ‘किसान का शव भटिंडा के मोर्चरी में है. हम उनका पोस्टमॉर्टम तब तक नहीं होने देंगे जब तक हमारी मांगें मान नहीं ली जाती हैं.’
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इस बीच किसानों ने बादल परिवार के आवास के बाहर 25 सितंबर तक 24 घंटे तक धरना देने का भी निर्णय किया है. इससे पहले 20 सितंबर तक धरना प्रदर्शन करने की घोषणा की गई थी.
रिपोर्ट के अनुसार, धरनास्थल पर प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को हरियाणा के सिरसा जिले में बालासर स्थित उनके फॉर्म हाउस में शिफ्ट कर दिया गया था.
उनके बेटे और शिरोमणि अकाली दल से सांसद सुखबीर सिंह बादल अपनी पत्नी हरसिमरत कौर के साथ संसद के सत्र में शामिल होने के लिए दिल्ली गए हुए हैं. बीते 17 सितंबर को हरसिमरत कौर ने कृषि विधेयकों के विरोध में नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था.
इससे पहले इन अध्यादेशों को किसान विरोधी बताते हुए भारतीय किसान संघ और अन्य किसान संगठनों ने बीते 10 सितंबर को हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिपली में प्रदर्शन किया था. बीते 20 जुलाई को भी राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के किसानों ने अध्यादेशों के विरोध में प्रदर्शन किया था.
मालूम हो कि केंद्र की मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है, जिसके जरिये खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया.
सरकार ने एक नया कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 पेश किया है, जिसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है.
केंद्र ने एक और नया कानून- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020 पारित किया है, जो कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान करता है ताकि बड़े बिजनेस और कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर जमीन लेकर खेती कर सकें.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर मोदी सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)