लोकसभा में पेश रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण संबंधी संसदीय समिति ने बताया कि 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बीएसएनएल में एससी/एसटी कर्मचारियों की पदोन्नति रोकी गई है.
नई दिल्ली: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण संबंधी संसदीय समिति ने दूरसंचार विभाग और भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) की अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण पर उनके ढुलमुल रवैये के लिए आलोचना की.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा सांसद किरीट प्रेमजीभाई सोलंकी की अध्यक्षता वाली समिति ने भारत संचार निगम लिमिटेड के विशेष संदर्भ में सरकारी सेवाओं, सार्वजनिक उपक्रमों और स्वायत्त निकायों में निजीकरण, काम के आउटसोर्सिंग और संविदात्मक रोजगार के प्रकाश में एससी और एसटी के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने के तरीके और साधन शीर्षक वाली रिपोर्ट शुक्रवार को लोकसभा में पेश की.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बीएसएनएल में एससी/एसटी कर्मचारियों की पदोन्नति रोकी गई है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कानून के अनुसार एससी/एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति दी थी.
बीएसएनएल ने समिति को दिए अपने जवाब में हाईकोर्टों में चल रहे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है और अदालत की अवमानना कर सकता है.
इसके साथ ही बीएसएनएल ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) को भी पदोन्नति में आरक्षण रोकने के एक कारण के रूप में इस्तेमाल किया.
बता दें कि 1,53,823 कर्मचारियों वाले बीएसएनएल में 44,983 कर्मचारी कार्यकारी श्रेणी के जबकि 1,08,839 कर्मचारी गैर-कार्यकारी श्रेणी के हैं.
कार्यकारी श्रेणी में 17.86 फीसदी कर्मचारी जबकि गैर-कार्यकारी श्रेणी में 18.73 फीसदी कर्मचारी एससी हैं. वहीं, कार्यकारी श्रेणी में एसटी कर्मचारियों की संख्या 6.01 फीसदी तो गैर-कार्यकारी श्रेणी में 5.35 फीसदी है.
समिति ने कहा कि जबकि कार्यकारी और गैर-कार्यकारी श्रेणियों में एससी प्रतिनिधित्व पर्याप्त था, तो वहीं कार्यकारी और गैर-कार्यकारी श्रेणी में एसटी प्रतिनिधित्व निर्धारित 7.5 फीसदी के से नीचे था.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘समिति दृढ़ता से अनुशंसा करती है कि बीएसएनएल के प्रबंधन को सभी कार्यकारी और गैर-कार्यकारी पदों में एससी/एसटी के लिए निर्धारित प्रतिशत को सख्ती से बनाए रखना चाहिए. समिति ने इस तथ्य पर फिर से जोर दिया कि एसटी के लिए अधिक अवसर सुनिश्चित करने के लिए एसटी के लिए आरक्षण का प्रतिशत बनाए रखना अनिवार्य है.’
समिति ने कहा, ‘समिति को यह भी लगता है कि संचार मंत्रालय (दूरसंचार विभाग) और बीएसएनएल को निपटान के समय कानून और न्याय मंत्रालय (कानूनी मामलों के विभाग) से परामर्श करना चाहिए और इन मुद्दों उचित समाधान करना चाहिए. समिति इस संबंध में मंत्रालय के ढुलमुल रवैये की सख्त आलोचना करती है.’
बता दें कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण द्वारा स्थगन आदेश के कारण संचार मंत्रालय के तहत दूरसंचार विभाग ने 2018 से 124 एससी/एसटी अधिकारियों के पदोन्नति आदेश जारी नहीं किए हैं.