आईसीएमआर को कोरोना हॉटस्पॉट का सीरो-प्रीवलेंस डेटा प्रकाशित करने से रोका गया: रिपोर्ट

मीडिया में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कोविड-19 की व्यापकता का अनुमान लगाने के लिए भारत के पहले राष्ट्रीय सीरो-प्रीवलेंस सर्वेक्षण के शोधकर्ताओं से 11 मई और 4 जून के बीच 10 शहरों के हॉटस्पॉट से एकत्र किए गए डेटा को शोध-पत्र से हटाने के लिए कहा था.

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Srinagar: A doctor collects samples for immunoglobulin (Ig) blood test against coronavirus disease, at Barzulla Bone and Joint Hospital in Srinagar, Monday, June 15, 2020. Authorities organised testing among health care workers as positive cases and deaths increase day-by-day in the Jammu and Kashmir. (PTI Photo/S. Irfan)(PTI15-06-2020_000102B)

मीडिया में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कोविड-19 की व्यापकता का अनुमान लगाने के लिए भारत के पहले राष्ट्रीय सीरो-प्रीवलेंस सर्वेक्षण के शोधकर्ताओं से 11 मई और 4 जून के बीच 10 शहरों के हॉटस्पॉट से एकत्र किए गए डेटा को शोध-पत्र से हटाने के लिए कहा था.

(फोटोः पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: मई 2020 में जनसंख्या में कोविड-19 की व्यापकता का अनुमान लगाने के लिए भारत के पहले राष्ट्रीय सीरो प्रीवलेंस सर्वेक्षण के परिणामों का विश्लेषण करने वाले शोधकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि उन्हें सर्वेक्षण पेपर में 10 शहरों में बीमारी के हॉटस्पॉट के डेटा को शामिल करने की अनुमति नहीं दी गई.

सूत्रों ने द टेलीग्राफ को बताया कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने शोधकर्ताओं से 11 मई और 4 जून के बीच एकत्र किए गए डेटा को हटाने के लिए कहा था, क्योंकि आईसीएमआर के पास इसे प्रचारित करने के लिए आवश्यक मंजूरी नहीं थी. यह शोधपत्र इस महीने इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित हुआ था.

सूत्रों ने अखबार को बताया कि भार्गव, जो स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव भी हैं, ने इस बात का कोई जिक्र नहीं किया कि उन्हें ये निर्देश कहां से मिले.

इससे विशेषज्ञों के बीच चिंता पैदा हुई कि भारत की प्रमुख चिकित्सा अनुसंधान एजेंसी ने खुद चिकित्सा नैतिकता का उल्लंघन किया है. आमतौर पर आईसीएमआर ऐसी नैतिक संहिता का मसौदा तैयार करती है जिनके भारत में डॉक्टरों से पालन करने की उम्मीद की जाती है.

अखबार ने दावा किया है कि उसने शोध के 74 सह-लेखकों में से सात से बात की है. उनमें से चार ने नाम न बताने की शर्त पर जबकि तीन ने ऑन रिकॉर्ड बातचीत की है.

शोध के एक सह-लेखक ने द टेलीग्राफ को बताया, ‘हमसे कहा गया, ‘हॉटस्पॉट डेटा निकाल दें या प्रकाशित न करें.’

इस बात की दो अन्य लोगों ने पुष्टि की है.

कोविड-19 से भारतीय आबादी का कौन सा हिस्सा संक्रमित हुआ था, यह निर्धारित करने के उद्देश्य से शोधकर्ताओं ने 21 राज्यों के 71 जिलों में रैंडम तरीके से सर्वेक्षण किया. इसके लिए उन्होंने गैर-हॉटस्पॉट क्षेत्रों के प्रति जिले से 400 और हॉटस्पॉट में प्रति जिले से 500 प्रतिभागियों की सीमा निर्धारित की थी.

ये 10 जिले अहमदाबाद, भोपाल, कोलकाता, दिल्ली, हैदराबाद, इंदौर, जयपुर, मुंबई, पुणे और सूरत थे.

12 जून को भार्गव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सर्वेक्षण के प्रारंभिक परिणामों की घोषणा की थी और कहा था कि आईसीएमआर शोधकर्ताओं ने 83 जिलों में 28,000 व्यक्तियों के नमूनों का परीक्षण किया था.

हालांकि, प्रकाशित पत्र में केवल 71 जिलों का उल्लेख था. यह स्पष्ट नहीं था कि उत्तरदाताओं का कौन सा सेट अंतिम परिणामों से बाहर रह गया था.

सूत्रों ने द टेलीग्राफ को बताया कि मुंबई के धारावी में 36 फीसदी, अहमदाबाद में 48 फीसदी और कोलकाता में 30 फीसदी प्रतिभागियों के नमूने कोविड-19 के एंटीबॉडी के लिए पॉजिटिव पाए गए थे, जो दर्शाता है कि वे पहले वायरस के संपर्क में थे.

कुल मिलाकर पेपर के परिणामों से पता चला कि अन्य जिलों में प्रीवलेंस की संख्या कम (0.62 फीसदी से 1.03 फीसदी) थी, जबकि अप्रैल से अंत और मई की शुरुआत में राष्ट्रीय औसत 0.73 फीसदी था.

आईसीएमआर के महामारी विज्ञान विभाग के प्रमुख और शोध के एक सह-लेखक समीरन पांडा ने हॉटस्पॉट से संबंधित डेटा को छोड़ने के निर्णय का बचाव किया और कहा कि उस सर्वेक्षण की जगह 10 शहरों में से कुछ में किए गए शहर-स्तरीय सीरो प्रीवलेंस सर्वेक्षण को शामिल किया गया था.

हालांकि, पेपर के एक अन्य सह-लेखक और सामुदायिक चिकित्सा विशेषज्ञ डीसीएस रेड्डी ने कहा, ‘संक्रमण से ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में वायरस के प्रसार को समझने के लिए शहर के हॉटस्पॉट के आंकड़े महत्वपूर्ण थे.’

टेलीग्राफ से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘निगरानी समूह के सदस्यों के रूप में हम यह नहीं कह सकते कि डेटा को क्यों रोक लिया गया. आईसीएमआर प्रमुख ही इसका जवाब दे सकते हैं.’

पेपर के 74 लेखकों में से द टेलीग्राफ ने डॉ. रेड्डी और डॉ. पांडा सहित सात शोधकर्ताओं से बात की और आईसीएमआर प्रमुख बलराम भार्गव को इस संबंध में सवालों की एक सूची बीते 18 सितंबर को भेजी है, जिसका उनकी तरफ से इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं मिल सका था.

एक सह-लेखक और कोविड-19 के लिए आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और निगरानी समूह के सदस्य जयप्रकाश मुलीयिल ने कहा, ‘विज्ञान की खोज सत्य की तलाश के लिए है अनुसंधान को दबाना अतार्किक है.’

अन्य सह-लेखकों में से एक के अनुसार, इस बारे में बहुत बहस हुई थी कि क्या शोधकर्ताओं को अपूर्ण डेटा प्रकाशित करना चाहिए या महत्वपूर्ण डेटा के जान-बूझकर दबाने पर अपना विरोध दर्ज करना चाहिए.

टेलीग्राफ से बातचीत में एक चिकित्सक और इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स के संपादक अमर जेसानी ने कहा, ‘परिणामों में से चयनात्मक डेटा रखना पेपर के विश्लेषण को बिगाड़ देता है. यह शोध की अखंडता का उल्लंघन है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने स्वेच्छा से अपने रक्त के नमूने दिए होंगे क्योंकि उनका मानना था कि विश्लेषण से विज्ञान या समाज को लाभ होगा. उचित कारण के बिना उनके डेटा को सर्वे से हटा देना परेशान करने वाला है.’

बता दें कि पिछले कुछ समय से सरकार के पास डेटा न होने का मुद्दा हर तरफ चर्चा का विषय है, क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार दावा कर रही है कि उसके पास उन प्रवासी श्रमिकों की संख्या का कोई डेटा नहीं है जो लॉकडाउन के पहले दो महीनों के दौरान मारे गए थे.

सरकार ने हाल ही में यह भी दावा किया है कि उसके पास ड्यूटी के दौरान संक्रमित या फिर मारे गए विभिन्न स्वास्थ्यकर्मियों का भी कोई डेटा नहीं है.

दरअसल बीते 16 सितंबर को संसद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने काम के दौरान कोरोना वायरस से जान गंवाने वाले डॉक्टरों का जिक्र नहीं किया था और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री चौबे ने कहा था कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र के पास इस बारे में कोई डेटा नहीं है.

इस पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने नाराजगी जाहिर की थी और खुद बताया था कि इस बीमारी से अब तक 2,238 चिकित्सक संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 382 की मौत हो चुकी है. आईएमए ने इन 382 चिकित्सकों की सूची प्रकाशित करते हुए उन्हें ‘शहीद’ का दर्जा दिए जाने की मांग की थी.

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