मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए श्रम क़ानूनों में जहां एक ओर सामाजिक सुरक्षा के दायरे में ऐसे विभिन्न कामगारों को लाया गया है, जो अब तक इसमें नहीं थे, वहीं दूसरी ओर हड़ताल के नियम कड़े किए गए हैं. साथ ही नियोक्ता को बिना सरकारी मंज़ूरी के कामगारों को नौकरी देने और छंटनी के लिए अधिक छूट दी गई है.
नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा श्रम सुधार के नाम पर लाए गए तीन विधेयकों- औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता बिल 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता बिल 2020– को बुधवार को राज्यसभा ने पारित कर दिया.
इस दौरान आठ सांसदों के निष्कासन के विरोध में कांग्रेस, वामपंथी और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने राज्यसभा की कार्रवाई का बहिष्कार किया.
सरकार ने 29 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में मिला दिया था और उनमें से एक संहिता (मजदूरी संहिता विधेयक, 2019) पहले ही पारित हो चुकी है.
इस विधेयक के विरोध में दिल्ली के जंतर मंतर पर 10 ट्रेड यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन किया और इन कानूनों को श्रमिक विरोधी बताते हुए तत्काल वापस लेने की मांग की है.
इन कानूनों के जरिये जहां एक तरफ सरकार ने सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाकर इसमें गिग वर्कर और अंतर-राज्यीय प्रवासी मजदूरों को शामिल करने का प्रावधान किया है, वहीं दूसरी तरफ यह बिना सरकारी इजाजत के मजदूरों को नौकरी पर रखने एवं उन्हें नौकरी से निकालने के लिए नियोक्ता (एम्प्लॉयर) को और अधिक छूट प्रदान करता है.
शेयरिंग इकोनॉमी जैसे उबर एवं ओला के ड्राइवर, जोमैटो, स्विगी आदि के डिलीवरी पर्सन के रूप में काम करने वाले लोगों को गिग वर्कर कहा जाता है.
इस तरह की नौकरियां ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, इंडिपेंडेंट कॉन्ट्रैक्टर, ऑन-कॉल वर्कर आदि से जुड़ी हुई होती हैं, जहां कर्मचारी कंपनी से बंधे नहीं होते और वे उतने समय के लिए अपना काम चुन सकते हैं, जितने समय तक काम करना चाहते हैं.
क्या कहती है नई श्रम संहिता
औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक में सरकार ने हड़ताल पर जाने के मजदूरों के अधिकारों पर अत्याधिक बंदिश लगाने का प्रावधान किया गया है.
इसके साथ ही नियुक्ति एवं छंटनी संबंधी नियम लागू करने के लिए न्यूनतम मजदूरों की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर दिया गया है, जिसके चलते ये प्रबल संभावना जताई जा रही है नियोक्ता इसका फायदा उठाकर बिना सरकारी मंजूरी के ज्यादा मजदूरों को तत्काल निकाल सकेंगे और उसी अनुपात में भर्ती ले लेंगे.
भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीटू) के महासचिव तपन सेन ने कहा, ‘इन संहिताओं के चलते 74 फीसदी से अधिक औद्योगिक श्रमिक और 70 फीसदी औद्योगिक प्रतिष्ठान ‘हायर एंड फायर’ व्यवस्था में ढकेल दिए जाएंगे, जहां उन्हें अपने मालिक के रहम पर जीना पड़ेगा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके चलते ट्रेड यूनियन बनाना भी बहुत कठिन होगा और हड़ताल करने के मजदूरों के अधिकार पर एक अप्रत्यक्ष प्रतिबंध लग जाएगा. यहां तक की उन्हें अपनी शिकायतें एवं मांग के लिए आवाज उठाने में दिक्कत आएगी.’
तपन सेन ने आगे कहा कि इन सभी तीनों कोड बिलों में श्रमिकों के कई मूल अधिकारों और काम करने की स्थितियों के संबंध में भयावह प्रावधानों को निर्धारित किया गया है, जो कार्यपालिका को खुली छूट दे देगा अर्थात सरकार एकतरफा रूप से परिवर्तन करेगी और कॉरपोरेट के इशारे पर कार्यकारी प्रावधानों के माध्यम से उन प्रावधानों को स्पष्ट रूप से बदल देगी.
हालांकि श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने तीनों श्रम सुधार विधेयकों पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा, ‘श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है.’
उन्होंने यह भी बताया कि 16 राज्यों ने पहले ही अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना फर्म को बंद करने और छंटनी करने की इजाजत दे दी है.
गंगवार ने कहा कि रोजगार सृजन के लिए यह उचित नहीं है कि इस सीमा को 100 कर्मचारियों तक बनाए रखा जाए, क्योंकि इससे नियोक्ता अधिक कर्मचारियों की भर्ती से कतराने लगते हैं और वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम स्तर पर बनाए रखते हैं.
उन्होंने सदन को बताया कि इस सीमा को बढ़ाने से रोजगार बढ़ेगा और नियोक्ताओं को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा.
औद्योगिक संबंध संहिता के तहत औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों के लिए बने नियम ‘स्थायी आदेश’ की आवश्यकता के लिए श्रमिकों की सीमा बढ़ाकर 300 से अधिक कर दी गई है. इसका तात्पर्य है कि 300 श्रमिकों से कम वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों को स्थायी आदेश लागू करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिसे लेकर विशेषज्ञ का कहना है कि कंपनियां श्रमिकों के लिए मनमाना सेवा शर्तें बनाएंगी.
एक्सएलआरआई प्रोफेसर और श्रमिक अर्थशास्त्री केआर श्याम सुंदर कहते हैं कि स्थायी आदेश के लिए न्यूनतम श्रमिक की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 करने का मतलब है कि सरकार मजदूरों को नौकरी पर रखने एवं नौकरी से निकालने के लिए कंपनी मालिकों को खुली छूट दे रही है.
उन्होंने कहा कि 300 मजदूरों से कम वाले संस्थान में कथित दुराचार और आर्थिक कारणों का हवाला देकर आसानी से छंटनी की जा सकेगी.
इसके साथ ही औद्योगिक संबंध संहिता में कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन के संबंध में भी नई शर्तें पेश की गईं हैं.
इसमें प्रस्ताव किया गया है कि एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत कोई भी व्यक्ति 60 दिनों के नोटिस के बिना हड़ताल पर नहीं जाएगा. इसके साथ ही ट्रिब्यूनल या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के सामने मामले लंबित कार्यवाही के समय भी विरोध प्रदर्शन नहीं किया जा सकेगा.
इस कोड के तहत कानूनी हड़ताल पर जाने के सभी शर्तें पूरी करने और नोटिस देने के प्रावधान को सभी औद्योगिक प्रतिस्ठानों पर लागू किया गया है.
श्रम पर स्थायी समिति ने सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं जैसे पानी, बिजली, प्राकृतिक गैस, टेलीफोन और अन्य आवश्यक सेवाओं से परे हड़ताल के लिए आवश्यक सूचना अवधि के विस्तार के खिलाफ सिफारिश की थी.
किसी हादसे में श्रमिक की शारीरिक क्षति की भरपाई और मालिक पर लगाए जुर्माने का आधा हिस्सा श्रमिक को मिलेगा ।#AatmaNirbharShramik #BadegaRozgar #SatyamevJayateShrameyJayate pic.twitter.com/IJ52YE2Gt1
— Santosh Gangwar (@santoshgangwar) September 23, 2020
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने भी इन श्रम कानूनों की आलोचना की है और इसमें परिवर्तन करने की मांग की है.
बीएमएस के अध्यक्ष साजी नारायण ने द वायर से कहा, ‘हम इन कानूनों का विरोध करते हैं. सरकार ने हमसे सलाह जरूर लिया था, लेकिन कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को शामिल नहीं किया गया है. इसके चलते जंगल राज जैसी व्यवस्था बन जाएगी और विवाद उत्पन्न होने की स्थिति में बलपूर्वक समाधान निकालने की कोशिश होगी.‘
उन्होंने आगे कहा, ‘हड़ताल को प्रतिबंधित करने वाले वर्तमान प्रावधानों से औद्योगिक क्षेत्र एक संघर्ष क्षेत्र बन जाएगा, जिसका मतलब औद्योगिक शांति को नष्ट करना है. हड़ताल से 14 दिन से पहले और 2 महीने के भीतर नोटिस देना स्पष्ट रूप से हड़ताल पर रोक लगाना है. इसे हटाया जाना चाहिए.’
अन्य दो श्रम संहिताओं में सामाजिक सुरक्षा के विस्तार और श्रमिकों की परिभाषा में अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों को शामिल करने के प्रावधान को शामिल किया गया है.
सामाजिक सुरक्षा संहिता एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का प्रस्ताव करती है जो केंद्र सरकार को असंगठित श्रमिकों, गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के विभिन्न वर्गों के लिए उपयुक्त योजना तैयार करने की सिफारिश करेगा.
इसके अलावा गिग वर्कर को काम पर रखने वाले एग्रीगेटर को सामाजिक सुरक्षा के लिए अपने वार्षिक टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत योगदान देना होगा, जिसमें कुल योगदान एग्रीगेटर द्वारा गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को देय राशि का 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा.
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता ने अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों को परिभाषित किया है, जो अपने स्तर पर एक राज्य से आए हैं और दूसरे राज्य में रोजगार प्राप्त करते हैं तथा 18,000 रुपये प्रति माह तक कमाते हैं.
हालांकि संहिता से कार्यस्थल के नजदीक श्रमिकों के लिए अस्थायी आवास मुहैया कराने के पहले के प्रावधान को हटा दिया गया है. इसमें एक यात्रा भत्ते का प्रस्ताव किया गया है, जिसके तहत नियोक्ता द्वारा कामगार को उसके घर से लेकर काम पर आने-जाने के भाड़े का वहन किया जाएगा.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों को पेंशन (EPFO) योजना का लाभ मिलेगा। #AatmaNirbharShramik #BadegaRozgar #SatyamevJayateShrameyJayate pic.twitter.com/MMAhZauvDA
— Santosh Gangwar (@santoshgangwar) September 23, 2020
इसके अलावा किसी हादसे में श्रमिक की शारीरिक क्षति की भरपाई और मालिक पर लगाए जुर्माने का आधा हिस्सा श्रमिक को मिलेगा. सरकार ने कहा है कि इस नए कानून के तहत संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों को पेंशन योजना का लाभ मिलेगा.
उद्योग वर्ग ने श्रम कानूनों में प्रस्तावित बदलावों का स्वागत करते हुए कहा है कि वे नियोक्ताओं को परिचालन स्वतंत्रता प्रदान करेंगे, हालांकि सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी से संबंधित प्रावधान के कारण काम पर रखने की लागत में बढ़ोतरी हो सकती है.
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के सदस्य रोहित रेलन ने कहा, ‘अब प्रमुख नियोक्ता संस्थान के किसी भी मुख्य कार्य के लिए कॉन्ट्रैक्टर के जरिये कॉन्ट्रैक्ट मजदूर लगा सकता है, जिससे व्यापार की सुगमता में सुधार आएगा.’