किसानों के प्रदर्शन के बीच तीन कृषि अध्यादेशों को लोकसभा के बाद राज्यसभा की भी मंज़ूरी मिल गई है. पत्रकार पी. साईनाथ ने कहा कि इन क़ानूनों के चलते चौतरफ़ा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. किसान अपनी उपज का उचित मूल्य चाहता है लेकिन इसके लिए जो भी थोड़ी बहुत व्यवस्था बनी हुई थी सरकार उसे भी उजाड़ रही है.
नई दिल्ली: वरिष्ठ पत्रकार और कृषि मामलों के जानकार पी. साईनाथ ने मोदी सरकार द्वारा हाल ही में लाए गए तीन कृषि विधेयकों की आलोचना करते हुए कहा कि यदि सरकार को दावा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था खत्म नहीं होगी, तो वे इस पर एक कानून लाकर सुनिश्चित क्यों नहीं करते हैं.
इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि सरकार ने एक और दावा किया है कि वे 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे, तो इस पर उन्हें विधेयक पारित करने से कौन रोक रहा है.
2/5. The Bill would say: MSP (Swaminathan formula, as the BJP promised in 2014) stands guaranteed. No big traders, corporations or other ‘new buyers’ can lift produce at below MSP. Also, guarantee procurement to ensure that MSP is not reduced to a mockery.#FarmBill2020
— P. Sainath (@PSainath_org) September 23, 2020
साईनाथ कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आश्वासन दिया है कि वे एमएसपी को खत्म नहीं होने देंगे और वे किसानों की कमाई 2022 तक दोगुनी कर देंगे. बहुत अच्छी बात है. इन आश्वासनों को एक बिल के द्वारा सुनिश्चित करने से उन्हें किसने रोका है. बाकी के तीन कृषि विधेयकों के विपरीत, यह बिल बिना विरोध के पास होगा.’
उन्होंने कहा कि इस बिल का आशय ये होना चाहिए कि एमएसपी (स्वामीनाथ फॉर्मूला पर आधारित, जिसका भाजपा ने साल 2014 में वादा किया था) गारंटी होगी. बड़े व्यापारी, कंपनियां या कोई भी खरीददार एमएसपी से कम दाम पर कृषि उत्पाद नहीं खरीदेंगे.
पी. साईनाथ ने कहा कि इसके साथ ही गारंटी के साथ किसानों से खरीदी होनी चाहिए, ताकि एमएसपी मजाक बनकर न रह जाए.
5/5. And since this government has already encroached on the state subject – agriculture – what’s to stop it from moving this Bill? Certainly not respect for federal structures and states’ rights. The money for it is anyway only with the Centre.#FarmBill2020
— P. Sainath (@PSainath_org) September 23, 2020
इसके साथ ही वरिष्ठ पत्रकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि कर्ज माफ करने की मांग की है. उन्होंने कहा, ‘कर्ज माफी के बिना किसानों की कमाई 2022 या 2032 तक भी दोगुनी नहीं हो सकती है. जब किसान कर्ज में डूबे हों तो ऐसे उद्देश्य की पूर्ति संभव नहीं है.’
साईनाथ ने आगे कहा, ‘जिस तरह तीन कृषि विधेयकों को थोपा गया है, उसके विपरीत एमएसपी और कर्ज माफी गारंटी वाले विधेयक को प्रधानमंत्री मोदी आसानी से पारित होता देख सकेंगे. संसद में इसे लेकर न तो घमासान होगा और न ही इसे थोपना पड़ेगा.’
सरकार का दावा है कि इन कृषि विधेयकों का उद्देश्य कृषि बाजारों को खोलना है ताकि किसानों को उनके उपज का सही मूल्य मिल सके. हालांकि इसके विरोध में हरियाणा, पंजाब और देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं. विशेषज्ञों ने कृषि सुधार के नाम पर लाए गए इन कानूनों को एपीएमसी मंडियों एवं एमएसपी व्यवस्था के लिए खतरा बताया है.
द वायर को दिए एक इंटरव्यू में पी. साईनाथ ने कहा कि सरकार कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) को सभी समस्याओं का जड़ बता रही है, जबकि ऐसा नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘इन विधेयकों के लागू होने के बाद एपीएमसी व्यवस्था वैसी ही रह जाएगी जैसे कि सरकारी स्कूल हैं. कहने को तो सरकारी स्कूल हैं, लेकिन उनकी महत्ता नहीं रही और सभी जगह प्राइवेट स्कूलों ने घेर लिया है.’
एमएसपी बने रहने के प्रधानमंत्री के दावे पर उन्होंने कहा कि मोदी के बातों पर विश्वास करने से पहले एमएसपी पर किए गए उनके पिछले छह सालों के वादों को गौर से देखना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘साल 2014 में भाजपा ने वादा किया कि वे सत्ता में आते ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश खासकर एमएसपी तय करने के C2+50 फार्मूले को लागू करेंगे. आयोग ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने का एक विस्तृत फार्मूला दिया था, जो कि काफी उचित था.’
साईनाथ ने कहा, ‘लेकिन उन्होंने क्या किया? सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि ये संभव नहीं है, इससे बाजार में विकृति आ जाएगी. जो लोग इस वादे के आधार पर करोड़ों लोगों का वोट लेकर सत्ता में आए, आज कह रहे हैं कि ये संभव नहीं है. आगे चलकर तत्कालीन कृषि मंत्री राधामोहन सिंह न यहां तक कह दिया कि हमने कभी ऐसा वादा ही नहीं किया था.’
पी. साईनाथ ने कहा कि सरकार इतने पर ही नहीं रुकी और साल 2018-19 के बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि हमने रबी फसलों के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया है और अब बस खरीफ फसलों के लिए ये किया जाना बाकी है.
उन्होंने कहा कि हकीकत ये है कि सरकार ने कभी भी इसे लागू ही नहीं किया और वे C2+50 की जगह A2+FL फॉर्मूला के आधार पर एमएसपी तय कर रहे हैं, जिसके कारण एमएसपी लागत की तुलना में काफी कम होती है.
कृषि पत्रकार ने कहा कि किसान को उचित मूल्य एवं स्थिरता चाहिए, लेकिन सरकार जरूरी मुद्दों के बयाज जो भी थोड़ी बहुत व्यवस्था बनी हुई थी उसे उजाड़ रही है.
उन्होंने कहा कि इन सबके चलते इसका तत्काल प्रभाव चौतरफा अराजकता होगी. पत्रकार ने कहा, ‘आप जब कुछ तोड़ते हैं, तो उससे खालीपन जन्म लेता है, आप चाहते हैं कि उसकी जगह नई व्यवस्था बना जाएगी लेकिन ऐसा होने की संभावना नहीं है.’
साईनाथ ने आगे कहा, ‘कृषि समुदाय में स्थायीपन की मांग में बहुत बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने अब तक बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव देख लिए हैं. किसान अपनी उपज का दाम तय नहीं करता है, ये काम कोई और करता है. उन्हें कीमतों में भयावह उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है.’
केंद्र की मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है, जिसके जरिये खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है.
सरकार ने एक नया कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 पेश किया है, जिसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है.
केंद्र ने एक और नया कानून- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020 पारित किया है, जो कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान करता है ताकि बड़े बिजनेस और कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर जमीन लेकर खेती कर सकें.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर मोदी सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
बहरहाल बीते 20 सितंबर को विपक्ष के हंगामे और विभिन्न शहरों में किसानों के प्रदर्शन के बीच इन तीन विवादित कृषि अध्यादेशों को लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी मंजूरी मिल गई है.