भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की वकील ने कहा कि वह दो साल से भी ज़्यादा समय से जेल में बंद हैं और अब तक आरोप भी तय नहीं हुए हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेरिट के आधार पर आपके पास अच्छा मामला है. आप नियमित ज़मानत के लिए आवेदन क्यों नहीं करतीं.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद- भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी अधिवक्ता एवं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की अंतरिम जमानत याचिका पर बृहस्पतिवार को विचार करने से इनकार कर दिया.
इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है.
जस्टिस उदय यू. ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने सुधा भारद्वाज की याचिका खारिज कर दी, क्योंकि इसे वापस ले लिया गया.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि भारद्वाज दो साल से भी ज्यादा समय से जेल में बंद हैं और इस मामले में अभी तक आरोप भी तय नहीं हुए हैं. याचिकाकर्ता के पास से कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली है.
सुधा भारद्वाज की सेहत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आरोपी मधुमेह और कई दूसरी बीमारियों से जूझ रही हैं.
सुधा भारद्वाज ने वृंदा ग्रोवर के जरिये कहा, ‘वे मुझे दवाएं दे रहे हैं, लेकिन कई जांच करानी हैं. मुझे अंतरिम जमानत दी जाए. मैं स्वयं ही ये जांच कराऊंगी और इसके बाद समर्पण कर दूंगी.’
पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि आरोपी की जमानत याचिका उच्च न्यायालय में लंबित है. पीठ ने कहा, ‘मेरिट के आधार परआपके पास अच्छा मामला है. आप नियमित जमानत के लिए आवेदन क्यों नहीं करतीं.’
न्यायालय ने कहा, ‘आप या तो इसे वापस ले लीजिए, अन्यथा हम इसे खारिज कर देंगे.’ इस पर याचिकाकर्ता की वकील ने इसे वापस ले लिया.
मुंबई की भायखला जेल में सितंबर, 2018 से बंद 58 वर्षीय सुधा भारद्वाज ने इससे पहले उच्च न्यायालय में जमानत याचिका दायर की थी, जिसमें कहा था कि वह कई बीमारियों से जूझ रही हैं.
उन्होंने कहा था कि उनकी सेल में एक महिला कैदी के कोविड-19 से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है और इस वजह से उनके भी इसकी चपेट में आने का खतरा है.
उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद राज्य सरकार ने 21 अगस्त को अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें कहा था कि भारद्वाज की एक चिकित्सा अधिकारी ने जेल में जांच की है और पाया कि उनकी सेहत संतोषजनक है.
उसके बाद बीते 28 अगस्त को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज को जमानत देने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज की याचिका खारिज करते हुए कहा था, ‘हमारी नजर में जमानत का कोई आधार नहीं बनता है.’
अदालत का कहना था कि राज्य उन्हें उनकी बीमारियों के लिए जेल में ही चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराना जारी रखेगा.
मालूम हो कि इससे पहले सुधा भारद्वाज की बेटी ने 25 अगस्त को एक प्रेस नोट जारी कर दावा किया था कि जेल में हुए ‘तनाव के कारण’ उनकी मां को दिल की बीमारी हो गई है.
कार्यकर्ता की बेटी मायशा भारद्वाज ने 23 जुलाई की जेल के एक मेडिकल रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया कि उनकी मां ‘इस्केमिक हार्ट डिजीज’ से पीड़ित हैं, जो दिल की धमनियों के संकुचित होने के कारण होता है. इसके चलते हृदय में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और दिल का दौरा पड़ सकता है.
बेटी ने कहा था कि जेल जाने से पहले उनकी मां को कभी भी इस तरह हृदय रोग से जुड़ी कोई शिकायत नहीं थी.
मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली वकील सुधा भारद्वाज ने करीब तीन दशकों तक छत्तीसगढ़ में काम किया है. सुधा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय सचिव भी हैं.
उन्हें अगस्त 2018 में पुणे पुलिस द्वारा जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
उन पर हिंसा भड़काने और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए फंड और मानव संसाधन इकठ्ठा करने का आरोप है, जिसे उन्होंने बेबुनियाद बताते हुए राजनीति से प्रेरित कहा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)