सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की अपील ख़ारिज की, कहा- अपलोड होने के बाद ही प्रभावी होंगे ई-गजट

सीमा शुल्क अधिनियम से जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार का कहना था कि किसी अधिसूचना को ई-गजट पर अपलोड होने के समय से ही प्रभावी माना जाना चाहिए, जिस पर शीर्ष अदालत ने असहमति ज़ाहिर की है.

(फोटो: पीटीआई)

सीमा शुल्क अधिनियम से जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार का कहना था कि किसी अधिसूचना को ई-गजट पर अपलोड होने के समय से ही प्रभावी माना जाना चाहिए, जिस पर शीर्ष अदालत ने असहमति ज़ाहिर की है.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः यह वास्तव में सुप्रीम कोर्ट का एक दुर्लभ उदाहरण हैं, जब उसने केंद्र सरकार के खिलाफ जाकर एक निर्णायक फैसला सुनाया. इससे पहले हाल ही में कुछ मामलों में केंद्र सरकार के दावों को स्वीकार कर सुप्रीम कोर्ट को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को लगा कानूनी झटका बहुत ही मामूली मुद्दे पर रहा और ये था कि क्या अधिसूचना को ई-गजट पर अपलोड होने के समय से ही प्रभावी माना जाना चाहिए या फिर दिन की शुरुआत से उसे प्रभावी समझा जाना चाहिए.

जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को हुए आतंकी हमले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा कदम उठाया गया ताकि भारत के कथित विरोधियों को जवाब दिया जा सके.

वहीं, तथाकथित नाटकीय बालाकोट हवाई हमले की वजह से उस समय मोदी सरकार को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले अपने घटते वोटों से उबरने में मदद मिली और प्रचंड बहुमत से मोदी सरकार ने सत्ता में वापसी की.

हालांकि, एक ऐसा तथ्य जो बहुत कम लोगों को पता है, वह 16 फरवरी 2019 को सीमा शुल्क अधिनियम 1975 की धारा 8ए के तहत अधिसूचना का प्रकाशित होना है.

इस अधिसूचना में पाकिस्तान में उत्पादित या निर्यात होने वाले सभी सामानों पर लगने वाले शुल्क पर 200 फीसदी तक का इजाफा कर दिया गया. वह भी इस तथ्य को नजरअंदाज किए बिना कि पाकिस्तान के कुछ उत्पादों को सीमा शुल्क से छूट दी गई है.

इस अधिसूचना को ई-गजट पर अपलोड करने का सही समय 20:46:58 बजे था.

इस अधिसूचना के जारी होने से पहले भारत और पाकिस्तान (दोनों सार्क देश) ने इस बात पर सहमति जताई थी कि पाकिस्तान से आयात होने वाले सामानों पर रियायती दरों पर शुल्क लगाया जाएगा, उन मामलों में जहां आयात किसी भी शुल्क के योग्य नहीं है.

अटारी बॉर्डर पर भूमि सीमा शुल्क स्टेशन के सीमा शुल्क अधिकारियों ने आयातकों से बढ़ी हुई दर से शुल्क की मांग की जबकि ये आयातक ई-गजट पर अधिसूचना अपलोड होने से पहले ही घरेलू उपभोग के लिए एंट्री बिल पेश कर चुके थे.

सीमा शुल्क अधिकारियों ने पहले से ही मूल्यांकित किए गए सामान को रिलीज करने से मना कर दिया और 200 फीसदी की संशोधित सीमा शुल्क और 28 फीसदी की आईजीएसटी दर से सामान का दोबारा मूल्यांकन किया और इस तरह एक मामले में शुल्क बढ़कर 73,342 से बढ़कर 8,10,952 हो गया.

इसके बाद मामले को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. आयात की खेप में सूखे मेवे से लेकर सीमेंट तक कई सामान थे. पिछले साल 26 अगस्त को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की पीठ ने रिट याचिकाओं को मंजूरी दी.

पाकिस्तान से सामान आयात करने वाले आयातकों ने एंट्री बिल अदालत के समक्ष पेश किए और सीमा शुल्क को 200 फीसदी तक बढ़ाए जाने की अधिसूचना जारी और अपलोड होने से पहले स्व-मूल्यांकन की सभी प्रक्रिया पूरी कर ली थी.

हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि शुल्क की दर निर्धारित करने की तारीख एंट्री बिल पेश करने की तारीख ही थी.

केंद्र सरकार ने कहा था कि सीमा शुल्क संशोधित करने की दर 16 फरवरी 2019 थी और आयातक संशोधित दर के आधार पर शुल्क का भुगतान करने लिए उत्तरदायी थे.

हाईकोर्ट ने पाया कि 5/2019 को अधिसूचना जारी होने से पहले ही 16 फरवरी 2019 को एंट्री बिल पेश किए गए थे. 5/2019 को अधिसूचना प्रकाशित होने से पहले ही एंट्री बिल और वाहन की एंट्री की जा चुकी थी.

5/2019 को अधिसूचना कामकाजी घंटों के बाद जारी की गई, जो 2016 में यूनियन ऑफ इंडिया बनाम परम इंडस्ट्रीज लिमिटेड को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अगले दिन से लागू होगी.

इससे भी अधिक महत्वपूर्ण हाईकोर्ट ने कहा कि सीमा शुल्क अधिनियम 1975 की धारा 8 ए पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं हो सकती.

हाईकोर्ट ने भारत सरकार को पाकिस्तान में उत्पादित होने वाले सामानों पर बढ़े हुए सीमा शुल्क की अधिसूचना लागू होने करने के बिना ही पहले से ही घोषित और मूल्यांकित शुल्क के भुगतान पर ही सात दिनों के भीतर सामान को छोड़ने का आदेश दिया.

केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ ने बीते बुधवार को हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया.

इस दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा ने संयुक्त फैसला दिया जबकि जस्टिस केएम जोसेफ ने अलग सहमति जताते हुए फैसला दिया.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘एनालॉग से डिजिटल में गजट अधिसूचना प्रकाशित करने के तरीके में बदलाव के साथ इलेक्ट्रॉनिक मोड में गजट प्रकाशित होने का सही समय महत्व को दर्शाता है. इस तरह की अधिसूचनाएं विधायी शक्तियों के अभ्यास के समान है, जब तक इन्हें कानून द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता, इन्हें पूर्ववर्ती तौर से लागू नहीं किया जा सकता.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘गजट अधिसूचना को इलेक्ट्रॉनिक प्रकाशित करने और एंट्री बिल को ऑनलाइन फाइल करने के युग में 16 फरवरी 2019 को 20:46:58 बजे अधिसूचना को ई-गजट पर अपलोड करने के बाद 5/2019 अधिसूचना के तहत सीमा शुल्क की संशोधित दर घरेलू उपभोग के लिए पेश किए गए एंट्री बिलों पर लागू होंगे.’

पीठ ने कहा कि सीमा शुल्क अधिनियम 1975 की धारा 8 ए के तहत शक्तियों के इस्तेमाल से केंद्र सरकार को सशक्त बनाकर संसद ने न तो स्पष्ट रूप से और न ही आवश्यक रूप से अनुमान लगाया है कि एक बार जारी होने के बाद अधिसचूना पूर्व में लागू होगी. धारा 8 ए के तहत बढ़ाए गए शुल्क वाली अधिसचूना के संभावित प्रभाव हैं.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि ई-गजट अधिसूचना पिछले दिन की समाप्ति की तारीख से प्रभावी होगा.

केंद्र सरकार ने कहा कि हालांकि इसे 16 फरवरी 2019 की शाम को जारी किया गया था जबकि पिछला दिन 15 फरवरी 2019 आधी रात को समाप्त हो गया. अधिसूचना को 15 फरवरी 2019 की आधी रात के पहले से ही लागू माना जाना चाहिए.

जस्टिस जोसेफ ने अलग फैसले में कहा कि देर शाम अधिसूचना जारी होने के बाद सिस्टम पर आगे की बिल एंट्री अपलोड नहीं हो सकी क्योंकि ऐसा माना गया था कि अत्यधिक शुल्क वाले एंट्री बिलों को ही स्वीकार किया जाएगा.

जस्टिस जोसेफ ने केंद्र सरकार के इस दृष्टिकोण से असहमति जताई कि जनरल क्लॉज एक्ट की धारा 5 (3) के अनुसार अधिसूचना को 15/16 फरवरी 2019 की आधी रात के बाद तुरंत प्रभाव से लागू समझा जाना चाहिए.

जस्टिस जोसेफ का जवाब यहा है कि यह अधिसूचना धारा 5 (3) के तहत न तो कोई केंद्रीय कानून है, न ही कोई विनियमन.

जस्टिस जोसेफ के मुताबिक, समय के साथ विकसित हुआ सिद्धांत यह है कि कानून उसके अंशों के संदर्भ में निर्धारित होता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)