कथित बलात्कार पीड़िता ‘मांगलिक’ है या नहीं, इसकी जांच करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

बीते 23 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इस बात का पता लगाने का निर्देश दिया था कि पीड़ित महिला ‘मांगलिक’ है या नहीं. याचिका में आरोपी की ओर से कहा गया था कि वह महिला से शादी नहीं कर सकता, क्योंकि वह ‘मांगलिक’ है.

सरकारी फैक्ट-चेकिंग के ख़िलाफ़ कुणाल कामरा की याचिका और अभिव्यक्ति की आज़ादी का सवाल

इस महीने की शुरुआत में अधिसूचित नए आईटी नियम कहते हैं कि सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फ़र्ज़ी या भ्रामक’ क़रार दी गई सामग्री को गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाता को हटाना ही होगा. स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने इसके ख़िलाफ़ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है.

स्टरलाइट संयंत्र के विरोध में प्रदर्शन करना मौलिक दायित्व: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक लॉ ग्रैजुएट छात्र को राहत देते हुए कहा कि सरकार के ख़िलाफ़ काम करने और सरकार की नीतियों का विरोध करने के बीच बड़ा अंतर है.

प्रिया रमानी-एमजे अकबर मामले को सुनवाई के आख़िरी दौर में ट्रांसफर करने के क्या मायने हैं

पत्रकार प्रिया रमानी पर पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा दायर मानहानि मामले को दूसरे कोर्ट को भेजने के निर्णय का अर्थ है कि आख़िरी दौर की जिरहों को दोबारा सुना जाएगा. निश्चित रूप से न्यायिक प्रशासन की इस बड़ी ग़लती के लिए किसी को तो जवाबदेह होना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की अपील ख़ारिज की, कहा- अपलोड होने के बाद ही प्रभावी होंगे ई-गजट

सीमा शुल्क अधिनियम से जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार का कहना था कि किसी अधिसूचना को ई-गजट पर अपलोड होने के समय से ही प्रभावी माना जाना चाहिए, जिस पर शीर्ष अदालत ने असहमति ज़ाहिर की है.

जस्टिस अरुण मिश्रा के न्यायिक परंपराओं की अनदेखी की वजह उनका रूढ़िवादी नज़रिया है

जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा प्रार्थनास्थलों पर सरकार की नीति, अश्लीलता और लैंगिक न्याय को लेकर दिए गए फ़ैसले क़ानूनी पहलुओं से ज़्यादा उनके निजी मूल्यों पर आधारित नज़र आते हैं.

जस्टिस अरुण मिश्रा के सुप्रीम कोर्ट के सबसे प्रभावशाली जज बनने की कहानी

भारत के राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक संवेदनशील मामलों को अनिवार्य रूप से जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ को ही भेजा जाता था और देश के सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम जज इसकी वजह जानने के लिए इतिहास में पहली बार मीडिया के सामने आए थे.