अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों के लिए एमएसपी की गारंटी सुनिश्चित करने से इनकार किया, साथ ही वह पंजाबी और सिखों से जुड़े मुद्दों पर लगातार असंवेदनशीलता दिखा रही है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इस कदम को अकाली दल की राजनीतिक मजबूरी बताया है.
चंडीगढ़/नई दिल्ली: शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने शनिवार रात कृषि विधेयकों के विरोध में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग होने की घोषणा की.
पार्टी की कोर समिति की बैठक के बाद उन्होंने यह घोषणा की. इससे पहले एनडीए के दो अन्य प्रमुख सहयोगी दल शिवसेना और तेलगु देशम पार्टी भी अन्य मुद्दों पर गठबंधन से अलग हो चुके हैं.
सुखबीर ने कहा, ‘शिरोमणि अकाली दल की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई कोर समिति की शनिवार रात हुई आपात बैठक में भाजपा नीत एनडीए से अलग होने का फैसला सर्वसम्मति से लिया गया.’
उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों की भावनाओं का आदर करने के बारे में भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी दल शिअद की बात नहीं सुनी.
Shiromani Akali Dal (SAD) has decided to pull out of BJP-led NDA alliance because of the centre’s stubborn refusal to give statutory legislative guarantees to protect assured marketing of farmers crops on MSP & its continued insensitivity to Punjabi & Sikh issues: SAD pic.twitter.com/lC3xHczDm2
— ANI (@ANI) September 26, 2020
शिअद की ओर से जारी बयान में सुखबीर बादल ने कहा कि एनडीए से अलग होने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि केंद्र ने किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी सुनिश्चित करने से इनकार कर दिया है. वह पंजाबी, खासकर सिखों से जुड़े मुद्दों पर लगातार असंवेदनशीलता दिखा रही है, जिसका एक उदाहरण है जम्मू-कश्मीर में आधिकारिक भाषा श्रेणी से पंजाबी भाषा को बाहर करना है.
ज्ञात हो कि इससे पहले 17 सितंबर को सुखबीर सिंह बादल की पत्नी और शिअद की वरिष्ठ नेता हरसिमरत कौर ने कृषि विधेयकों के विरोध में कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
हरसिमरत कौर ने एनडीए से अलग होने के बारे में कहा कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार ने पंजाब की ओर से आंखें मूंद ली हैं. उन्होंने कहा कि यह वह गठबंधन नहीं है जिसकी कल्पना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी.
उन्होंने कहा, ‘जो अपने सबसे पुराने सहयोगी दल की बातों को अनसुना करे और राष्ट्र के अन्नदाताओं की याचनाओं को नजरंदाज करे, वह गठबंधन पंजाब के हित में नहीं है.’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट किया, ‘तीन करोड़ पंजाबियों की पीड़ा और विरोध के बाद भी अगर भारत सरकर के सख्त रवैये में नरमी नहीं आती है तो यह वह एनडीए नहीं रह गई है जिसकी वाजपेयी जी और बादल साहब ने कल्पना की थी. कोई गठबंधन अपने सबसे पुराने सहयोगी की बात अनसुनी करे और देश के अन्नदाताओं की मांगों पर आंखें मूंद ले, तो वह पंजाब के हित में नहीं है.’
If Pain & Protests of 3 cr punjabis fail to melt the rigid stance of GoI, it's no longer the #NDA envisioned by Vajpayee ji & Badal sahab. An alliance that turns a deaf ear to its oldest ally & a blind eye to pleas of those who feed the nation is no longer in the interest of Pb. https://t.co/OqU6at00Jx
— Harsimrat Kaur Badal (@HarsimratBadal_) September 26, 2020
इससे पहले बठिंडा की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को कहा था कि उन्होंने इसलिए इस्तीफ़ा दिया क्योंकि संसद में कृषि विधेयक लाए जाने के फैसले बाद उन्हें पद पर रहना ‘शर्मनाक’ लगा .
पूर्व केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री ने दावा किया था कि मसौदा कानून को जब उनके मंत्रालय के साथ साझा किया गया तो उन्होंने इसके बारे में प्रतिकूल टिप्पणी की थी.
उन्होंने बताया, ‘मैंने यह भी आग्रह किया था कि किसानों के साथ चर्चा पूरी होने तक विधेयकों को प्रवर समिति के पास भेजा दिया जाए. हालांकि, जब मुझे पता चला कि संसद में काला कानून पेश किया जा रहा है, तो मैंने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया.’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने दावा किया कि उन्होंने सरकार से कहा था कि विधेयक लाने से पहले किसानों को विश्वास में लेना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘मैं पिछले दो-ढाई महीने से लगातार प्रयास कर रही थी.’
हरसिमरत ने कहा कि जब उनके आग्रह पर ध्यान नहीं दिया गया तो शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने संसद में इन विधेयकों का विरोध करने का फैसला किया .
हरसिमरत ने कहा कि वह इस्तीफा दे चुकी हैं अब वह विधेयकों के खिलाफ लड़ाई में किसानों के हाथ मजबूत करेंगी.
शनिवार को अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि किसानों के कल्याण की तुलना में उनकी पार्टी के लिए किसी गठबंधन या सरकार का कोई महत्व नहीं है और उनकी पार्टी अन्नदाता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाएगी.
सुखबीर ने कहा कि एनडीए सरकार द्वारा किसानों और शिअद की मांग के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक अधिकार बनाने से इनकार करने के बाद पार्टी ने विधेयकों के खिलाफ मतदान करने का फैसला किया.
बादल ने शनिवार को मांग की कि पंजाब सरकार तत्काल एक अध्यादेश लेकर आए जिसमें पूरे राज्य को कृषि बाजार घोषित किया जाए ताकि केंद्र के कृषि विधेयकों को यहां लागू करने से रोका जा सके.
शिअद ने एक बयान में कहा, ‘अकाली फोबिया से दिनरात ग्रस्त रहने और अपने विरोधियों पर दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने में व्यस्त रहने के बजाए मुख्यमंत्री कैप्टन अमिरंदर सिंह किसानों की रक्षा के लिए कदम उठाएं.’
बादल ने कहा, ‘केंद्र के नए कानूनों को पंजाब में लागू करने का एकमात्र तरीका यह है कि पूरे राज्य को कृषि उत्पाद की मंडी घोषित कर दिया जाए.’
उन्होंने कहा कि कोई भी इलाका जिसे मंडी घोषित किया गया है वह नए कानून के दायरे से बाहर है. उन्होंने कहा कि इससे ‘बड़े कॉरपोरेट शार्क’ प्रदेश में प्रवेश नहीं कर पाएंगे.
एनडीए से अलग होना शिअद की राजनीतिक मजबूरी थी: अमरिंदर सिंह
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एनडीए से अलग होने के अकाली दल के फैसले को बादल परिवार के लिए ‘राजनीतिक मजबूरी’ बताया.
उन्होंने कहा कि कृषि विधेयकों को लेकर भाजपा द्वारा शिअद की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के बाद बादल के पास कोई और विकल्प नहीं रह गया था.
मुख्यमंत्री ने कहा कि शिअद के फैसले के पीछे कोई नैतिक आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि भाजपा ने कृषि विधेयकों को लेकर किसानों को नहीं मना पाने के लिए अकाली दल को जिम्मेदार ठहराया था, जिसके बाद उनके पास और कोई विकल्प नहीं रह गया था.
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र के भाजपा नीत सत्तारूढ़ दल ने शिअद के झूठ और दोहरे रवैये को सामने ला दिया.
उन्होंने कहा कि चेहरा बचाने की इस कवायद में अकाली दल और भी बड़ी राजनीतिक मुश्किल में फंस गया है जिसमें अब उनके लिए पंजाब के साथ-साथ केंद्र में भी कोई जगह नहीं बची.
वहीं कांग्रेस ने शनिवार को कहा कि यह किसानों की जीत है क्योंकि अकाली दल को अन्नदाताओं की चौखट पर झुकना पड़ा और सत्तारूढ़ गठबंधन से संबंध तोड़ना पड़ा.
आख़िर किसान-मज़दूर की जीत हुई,
काले क़ानूनों के समर्थक अकाली दल को NDA छोड़ मोदी सरकार से रिश्ता तोड़ना पड़ा,
किसान-मज़दूर की ड्योढ़ी पर झुकना पड़ा।
अब बीबी हरसिमरत कौर का ये इंटरव्यू भी देखें जहां वो खेती विरोधी काले क़ानूनों को सही ठहरा रही थी 👇 #AkaliDalLiesExposed pic.twitter.com/0Z8ppnEU80
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) September 26, 2020
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक ट्वीट में कहा, ‘काले कानून के समर्थक अकाली दल को एनडीए छोड़ना पड़ा और मोदी सरकार से संबंध तोड़ने पड़े.’
उन्होंने कहा, ‘उन्हें (अकाली) किसानों-श्रमिकों की चौखट पर झुकना पड़ा.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)