राज्यवार आंकड़ों से पता चलता है कि योजना के तहत किसान जितने भुगतान का दावा करते हैं निजी बीमा कंपनियां उससे कम राशि अदा करती हैं.
खेती का संकट बीमा बाज़ार के लिए मुनाफे का सौदा बनता दिख रहा है. किसानों की आत्महत्याओं, कृषि ऋण, प्राकृतिक आपदाओं और बढ़ती लागत के चलते खेती और खेतिहर समाज चिंता में है.
यह चिंता इतनी ज़्यादा है कि तीन लाख से ज़्यादा किसान इससे उबर नहीं पाए हैं और उन्होंने ख़ुद को ख़त्म कर लिया. सरकार खेती और किसानों को सीधे लाभ नहीं देना चाहती है.
वह चाहती है कि किसानों और सरकार के बीच व किसान और समाज के बीच ‘बाज़ार’ ज़रूर हो. इसी कोशिश में निजी बीमा कंपनियों को शामिल करते हुए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की रूपरेखा बनी.
इसके बारे में शुरू से ही निजी बीमा कंपनियों ने माहौल बनाया था कि कृषि और फसल बीमा बहुत गंभीर और संवेदनशील विषय है. इसमें तय है कि जितने प्रीमियम का भुगतान किया जाएगा, उससे दावों की राशि कम से कम 200 प्रतिशत ज़्यादा होगी.
ऐसे में अगले बीमा वर्ष में प्रीमियम की राशि में वृद्धि करना होगी; किन्तु खरीफ़ और रबी (2016-17) मौसम के आंकड़े बता रहे हैं कि एक बार फिर फसल बीमा का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है.
इन दो मौसमों के लिए ताज़ा-ताज़ा बाज़ार में उतारी गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों, राज्य और केंद्र सरकार ने मिलकर कुल 20374 करोड़ रुपये प्रीमियम का भुगतान किया.
इसके एवज में कुल 5650.37 करोड़ रुपये के दावे किया गए थे. इसमें से 65 प्रतिशत राशि (3656.45 करोड़ रुपये) के दावों का ही भुगतान किया गया.
अभी सरकार को यह जानने की ईमानदार कोशिश करना होगी कि जब किसान दर्द से दोहरा हुआ जा रहा है, पिछले साल कई राज्यों में सूखे और बाढ़ का संकट था, तब भी वहां बीमा लाभ के लिए किसानों के द्वारा दावे किया नहीं किए जा सके? क्या वास्तव में बीमा प्रक्रिया किसानों की पहुंच में है?
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में प्रावधान है कि सभी खरीफ़ फसलों (जुलाई से अक्टूबर) के लिए किसानों को दो प्रतिशत और सभी रबी फसलों (अक्टूबर से मार्च) के लिए 1.5 प्रतिशत का प्रीमियम देना होता है; जबकि वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए पांच प्रतिशत प्रीमियम देना होता है.
इन तीन बिंदुओं को गौर से समझिए…
- समग्रता में अनुभव यह बताते हैं कि हमारे समाज में कृषि बीमा का लाभ किसानों को नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों को होता है.
- भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के द्वारा जारी जानकारियों के मुताबिक वर्ष 2016-17 में बीमा कंपनियों की प्रीमियम आय 1.27 लाख करोड़ रुपये हो गई, जो पूर्व के वर्ष में 96,376 करोड़ रुपये थी. इस वित्तीय वर्ष में बीमा की कुल फसल का मूल्य तीन लाख करोड़ रुपये तक माना गया.
- निजी फसल बीमा कंपनियां मानती हैं कि फसल बीमा संवेदनशील मामला है और नुकसान की संभाव्यता (जितना प्रीमियम आया, उसके मुकाबले किसानों के दावा की राशि) 200 प्रतिशत तक जा सकती है, इसलिए अगले साल से प्रीमियम अधिक होगा.
अब जरा वास्तविकता जानने की कोशिश करते हैं. 18 जुलाई 2017 को लोकसभा में अतारांकित प्रश्न क्रमांक 415 के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपला ने राज्यवार जानकारी दी. हम इसे अधिकृत जानकारी मानते हैं.
संसद में प्रस्तुत जानकारी से यह सपष्ट होता है कि खरीफ़-2016 के मौसम के लिए इस योजना के तहत बीमा कंपनियों को कुल 15685.73 करोड़ रुपये की प्रीमियम का भुगतान किया गया. जिसमें से किसानों ने 2705.3 करोड़ रुपये का प्रीमियम का योगदान अपने खाते से किया था.
इसके एवज में बीमा कंपनियों ने 53.94 लाख किसानों के कुल 3634 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया, जबकि किसानों ने 5621.11 करोड़ रुपये के दावे प्रस्तुत किए थे. बीमा कंपनियों को जितना प्रीमियम दिया गया, उसमें से केवल 23.17 प्रतिशत के बराबर का लाभ किसानों को मिला.
राज्यवार स्थिति
मध्य प्रदेश में खरीफ़ मौसम के लिए 2836.3 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया. इसमें से 402.9 करोड़ रुपये का प्रीमियम तो किसानों ने ही भरा था. इस फसल के लिए किसानों ने 637 करोड़ रुपये के दावे लगाए थे, किन्तु जिसके एवज में 114953 किसानों को केवल 51.52 करोड़ रुपये (1.82 प्रतिशत) के दावों का भुगतान हुआ. एक किसान को औसतन 4482 रुपये का बीमित धन मिला.
महाराष्ट्र में 26.91 लाख किसानों के प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने अंतर्गत 1803.3 करोड़ रुपये के दावे स्वीकार हुए, जबकि किसानों, राज्य और केंद्र सरकार ने मिलकर 3933.43 करोड़ रुपये का प्रीमियम बीमा कंपनियों को दिया था.
यानी इस मौसम में कंपनियों को प्रीमियम में से भी केवल 45.85 प्रतिशत राशि का ही इस्तेमाल करना पड़ा.
तमिलनाडु में इस योजना में केवल 8.64 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया था, परन्तु सूखे से गंभीर रूप से प्रभावित इस राज्य में केवल एक किसान को 16 हज़ार रुपये का बीमा दावा हासिल हुआ. वहां यही एक मात्र दावा भी था.
राजस्थान में 1959.5 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया था, इसके एवज में किसानों के 292 करोड़ रुपये के दावों को स्वीकृति मिली.
बिहार में किसानों ने 326.26 करोड़ रुपये के दाव लगाए थे, किन्तु वहां बीमा कंपनियों ने एक भी दावा स्वीकृत नहीं किया. राज्य में कुल 1122.3 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया था, इसमें से किसानों का हिस्सा 130.54 करोड़ रुपये का था.
ओडिशा में किसानों ने 423 करोड़ रुपये के दावे किए थे, इसके एवज में उन्हें 236 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान हुआ.
उतर प्रदेश में कुल 596 करोड़ रुपये का प्रीमियम दिया गया, जबकि किसानों के कुल दावों की राशि 422.5 करोड़ रुपए रही. इसमें से भी 410 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया गया.
अब यदि हम रबी (अक्टूबर 2016-मार्च 2017) के मौसम पर नज़र डालते हैं तो हमें पता चलता है कि इसके लिए 4688 करोड़ रुपये के प्रीमियम का भुगतान किया गया. इस दौरान के लिए केवल 29.26 करोड़ रुपये के ही दावे रिपोर्ट किए गए. इसमें से बीमा कंपनियों ने 22.41 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया.
इस हिसाब से कुल चुकाए गए प्रीमियम में से केवल 0.48 प्रतिशत की राशि ही किसानों के काम आई.
रबी के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत केवल तमिलनाडु में ही कुछ होता हुआ दिखा. वहां 954 करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा किया गया था. राज्य में 22.26 करोड़ रुपये के दावे जमा हुए, जिनमें से 21.65 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया.
यह योजना नए रूप में हो सकती है, किन्तु बीमा के सिद्धांत पुराने ही हैं. बीमा बाज़ार सबसे पहले मुनाफे की तरफ देखेंगे, फिर वक़्त बचा तो खेत और किसान की तरफ.
(लेखक सामाजिक शोधकर्ता और अशोका फेलो हैं.)