पटना कलेक्ट्रेट शहर में डच वास्तुकला के अंतिम जीवंत नमूनों में से एक है. बिहार सरकार ने साल 2016 में इसे ध्वस्त करने को एक प्रस्ताव रखा है. सरकार के इस क़दम का विभिन्न स्तरों पर विरोध हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इसे ध्वस्त करने के आदेश पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है.
नई दिल्ली/पटना: देशभर के कई धरोहर प्रेमियों ने सरकार से सदियों पुराने पटना कलेक्ट्रेट को ध्वस्त न करने की अपील करते हुए कहा कि इस पर अधिक ध्यान देने से सरकार को राजस्व हासिल करने में मदद मिल सकती है.
इसके अधिकतर हिस्सों का निर्माण डच युग में किया गया था. बिहार की राजधानी में बने इस ऐतिहासिक स्थल का भाग्य फिलहाल अधर में लटका है.
पटना से वडोदरा और दिल्ली से कोलकाता तक के विशेषज्ञों तथा आम लोगों ने सरकार से एक बार फिर गंगा नदी के किनारे स्थित प्रतिष्ठित परिसर को ध्वस्त नहीं करने की अपील की है.
इन लोगों ने ‘विश्व पर्यटन दिवस’ यानी रविवार को सरकार से यह अपील की.
विरासत पर काम करने वाले संगठन इनटैक की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 18 सितंबर को पटना कलेक्ट्रेट को ध्वस्त करने के आदेश पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी थी.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके नए परिसर की आधारशिला रखी थी और राज्य के चुनाव से पहले अन्य परियोजनाओं का शिलान्यास किया था लेकिन उसके दो दिन बाद शीर्ष अदालत ने इसे ध्वस्त करने के आदेश पर रोक लगा दी.
कोलकाता के संरक्षण वास्तुकार मनीष चक्रवर्ती ने कहा कि पर्यटन का उपयोग शिक्षा और विरासत के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘दुनिया भर में एक नया रुझान शुरू हो रहा है, जिसमें लोग अब एक शहर की वास्तविक जीवंत विरासत का अनुभव करना चाहते हैं. वे शहर के प्रसिद्ध जगहों पर जाने के बजाय उन ऐतिहासिक जगहों को देखना चाहते हैं, जिनके बारे में कम बात की जाती है. और पटना के लिए कलक्ट्रेट ऐसा ही एक ऐतिहासिक स्थल है.’
पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में यूनेस्को की पुरस्कृत योजना के लिए काम कर चुके चक्रवर्ती ने बिहार सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने और इस शहर की इस अमूल्य धरोहर को दूर न करने की अपील की.
बिहार सरकार ने 2016 में इसे ध्वस्त करने को एक प्रस्ताव रख, एक नए परिसर के निर्माण के लिए रास्ता बनाया था, जिसका भारत और विदेशों में विभिन्न स्तरों पर विरोध किया गया था.
तत्कालीन डच राजदूत अल्फोंस स्टोइलिंग ने 2016 में बिहार के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पटना कलेक्ट्रेट को भारत और नीदरलैंड की ‘साझा विरासत’ के रूप में संरक्षित करने की अपील भी की थी.
पटना कलेक्ट्रेट शहर में डच वास्तुकला के अंतिम जीवंत नमूनों में से एक है, इसमें विशेष रूप से रिकॉर्ड रूम और पुराना जिला अभियंता कार्यालय शामिल है. इस परिसर में ब्रिटिश काल की संरचनाओं में डीएम कार्यालय भवन और जिला बोर्ड पटना भवन शामिल हैं.
पटना में जन्मी और कलेक्ट्रेट स्थित रिकॉर्ड रूम में डिप्टी कलेक्टर के रूप में सेवा दे चुकीं बीना मिश्रा (67) ने कहा कि दुनिया भर में लोग अपनी पुरानी इमारतों को संरक्षित कर रहे हैं, लेकिन हमारी सरकार उसके विरासत मूल्य और पर्यटन की संभावनाओं का इस्तेमाल करने के बजाय, इसे ध्वस्त करने पर तुली हुई है.
दिल्ली के ‘ब्रांड’ रणनीतिकार रमेश ताहिलियानी ने विध्वंस के आदेश को लापरवाही भरा और एक खतरनाक कदम करार देते हुए कहा कि यह अतीत के गौरव के शहर को बर्बाद कर सकता है.
वहीं वडोदरा के डेटा विश्लेषक एवं डिजिटल ग्राफर अनिमेष पाठक (23) ने कहा, ‘पटना में मेरी दिलचस्पी ‘सेव हिस्टोरिक पटना कलेक्ट्रेट’ अभियान से जुड़ने के बाद बढ़ी, जो अब एक जन आंदोलन बन गया है.’
उन्होंने कहा, ‘मैं बिहार सरकार से अपील करता हूं कि वह कलेक्ट्रेट को बंद करे और इसे पर्यटन सर्किट से जोड़े, जिससे सरकार को भी काफी राजस्व मिल सकेगा.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक करीब 12 एकड़ जमीन पर पटना कलेक्ट्रेट परिसर है, जिसके कुछ हिस्सों पर 250 वर्ष से अधिक पुरानी इमारतें हैं, जिनमें ऊंची छतें, विशाल दरवाजे आदि हैं.
पटना की एक अन्य डच इमारतों में पटना कॉलेज के मुख्य प्रशासनिक ब्लॉक और गुलज़ार बाग में राज्य सरकार के प्रेस शामिल हैं. इसके अलावा छपरा शहर में गंगा के पार एक डच-युग का कब्रिस्तान है, जो कि दयनीय स्थिति में है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)