विशेष रिपोर्ट: बीते दिनों कृषि विधेयकों के देशव्यापी विरोध के बीच मोदी सरकार ने रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की और इसे ‘ऐतिहासिक’ कहते हुए किसानों को लाभ होने दावा किया. हालांकि राज्यों द्वारा भेजी गई उत्पादन लागत रिपोर्ट बताती है कि यह एमएसपी कई राज्यों की उत्पादन लागत से भी कम है.
नई दिल्ली: संसद से विवादित कृषि विधेयकों के पारित होने के तुरंत बाद मोदी सरकार ने पिछले दिनों छह रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की.
केंद्र का यह निर्णय देश भर के विभिन्न हिस्सों में सरकार के खिलाफ चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शनों के बीच आया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमएसपी में बढ़ोतरी को अपनी सरकार का ‘ऐतिहासिक निर्णय’ करार दिया है और कहा है कि इससे करोड़ों किसानों को लाभ मिलेगा.
हालांकि हकीकत ये है कि रबी 2020-21 की फसलों के लिए तय की गई एमएसपी कई राज्यों की उत्पादन लागत से भी कम है या फिर मामूली बढ़ोतरी हुई है.
इतना ही नहीं, वर्ष 2020 की खरीफ फसलों के लिए भी तय की गई एमएसपी राज्यों, जिसमें बड़े उत्पादक राज्य भी शामिल हैं, की उत्पादन लागत से कम है या फिर इसमें मामूली वृद्धि है.
आलम ये है कि केंद्र सरकार ने अपनी संस्था के जरिये कराए गए विभिन्न उत्पादन लागत आकलन में से भी कम उत्पादन लागत के आधार पर एमएसपी तय की है, जो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें को लागू करने की मोदी सरकार के दावे पर गंभीर सवाल खड़े करता है.
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों को सी2 (C2) लागत पर डेढ़ गुना दाम मिलना चाहिए, जिसमें खेती के सभी आयामों जैसे कि खाद, पानी, बीज के मूल्य के साथ-साथ परिवार की मजदूरी, स्वामित्व वाली जमीन का किराया मूल्य और निश्चित पूंजी पर ब्याज मूल्य भी शामिल किया जाता है.
हालांकि सरकार ए2+एफएल (A2+FL) लागत के आधार पर डेढ़ गुना एमएसपी दे रही है, जिसमें पट्टे पर ली गई भूमि का किराया मूल्य, सभी कैश लेन-देन और किसान द्वारा किए गए भुगतान समेत परिवार श्रम मूल्य तो शामिल होता है, लेकिन इसमें स्वामित्व वाली जमीन का किराया मूल्य और निश्चित पूंजी पर ब्याज मूल्य शामिल नहीं होता है.
ए2+एफएल लागत सी2 लागत से काफी कम होती है, नतीजतन इसके आधार पर तय की गई एमएसपी भी कम होती है.
एमएसपी की सिफारिश करने वाली कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के विभिन्न रिपोर्टों (पहला व दूसरे) के अध्ययन से इन तथ्यों का पता चलता है.
पिछले दिनें सरकार ने गेहूं की एमएसपी 50 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 1,975 रुपये प्रति क्विंटल करने की घोषणा की.
वैसे तो साल 2019 में घोषित की गई गेहूं की एमएसपी 1,925 रुपये की तुलना में यह महज 2.6 फीसदी की बढ़ोतरी है और पिछले 10 सालों की तुलना में यह न्यूनतम बढ़ोतरी है, लेकिन यदि राज्य सरकारों द्वारा आकलन किए गए उत्पादन लागत से तुलना करते हैं तो यह स्थिति और चिंताजनक दिखती है.
गेहूं
उदाहरण के तौर पर, देश में गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश ने सीएसीपी को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राज्य में इसकी उत्पादन लागत 1,559 रुपये प्रति क्विंटल है.
खुद केंद्र सरकार ने भी पाया था कि इस वर्ष के लिए उत्तर प्रदेश में गेहूं की उत्पादन लागत (सी2) 1,560 रुपये क्विंटल है. लेकिन इसके बावजूद भारत सरकार ने गेहूं की उत्पादन लागत 960 रुपये प्रति क्विंटल (जो सभी राज्यों का ए2+एफएल उत्पादन लागत का औसत मूल्य है) मानकर इसकी एमएसपी 1,975 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की है.
यह उत्तर प्रदेश राज्य की उत्पादन लागत की तुलना में 27 फीसदी की बढ़ोतरी है, जबकि सरकार लागत का डेढ़ गुना (लागत मूल्य+ लागत मूल्य/50) एमएसपी देने का वादा कर रही है.
देश के कुल गेहूं उत्पादन में करीब 31.5 फीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश का होता है.
इसी तरह दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य पंजाब ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को बताया था कि उनके यहां गेहूं की उत्पादन लागत 1,864 रुपये प्रति क्विंटल और इस आधार पर एमएसपी तय की जानी चाहिए, ताकि किसानों को लाभ मिल सकते.
लेकिन गेहूं की एमएसपी पंजाब की उत्पादन लागत के मुकाबले महज छह फीसदी अधिक है, जबकि भारत सरकार का वादा लागत के मुकाबले एमएसपी 50 फीसदी अधिक देने की है.
केंद्र ने पंजाब में गेहूं उत्पादन लागत का अनुमान 1,287 रुपये प्रति क्विंटल लगाया था, जो राज्य के आकलन से 577 रुपये प्रति क्विंटल कम है.
देश के कुल गेहूं उत्पादन में मध्य प्रदेश का हिस्सा करीब 16.6 फीसदी होता है और यह तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है. हालांकि सीएसपी रिपोर्ट के मुताबिक इस बार राज्य ने उत्पादन लागत का डेटा उन्हें नहीं भेजा था.
केंद्र के आकलन के मुताबिक राज्य में गेहूं उत्पादन की लागत (सी2) 1,320 रुपये प्रति क्विंटल थी और इस बार की एमएसपी इसकी तुलना में यह करीब 50 फीसदी अधिक है.
हरियाणा सरकार ने सीएसीपी को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उनके यहां गेहूं की उत्पादन लागत 1,705 रुपये प्रति क्विंटल है और इस आधार पर एमएसपी तय की जानी चाहिए.
केंद्र सरकार ने अपने आकलन में पाया कि राज्य में उत्पादन लागत 1,500 रुपये प्रति क्विंटल है. चूंकि इस बार गेहूं की एमएसपी 1,975 रुपये तय की गई है, इस तरह राज्य के लागत अनुमान के मुताबिक यह महज 16 फीसदी और केंद्र के आकलन के मुताबिक करीब 32 फीसदी अधिक है.
दोनों ही सूरत में किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि एमएसपी हरियाणा में गेहूं की उत्पादन लागत का डेढ़ गुना नहीं है.
खास बात ये है कि गेहूं की एमएसपी गुजरात सरकार द्वारा भेजी गई उत्पादन लागत से भी कम है.
राज्य सरकार ने सीएसीपी को बताया था कि उनके यहां उत्पादन लागत 2,094 रुपये प्रति क्विंटल है. चूंकि एमएसपी 1,975 रुपये है, इस तरह किसानों को प्रति क्विंटल पर 119 रुपये का घाटा होगा.
चना
रबी सीजन की अन्य प्रमुख फसल चने का भी यही हाल है. सरकार ने इसका औसक उत्पादन लागत (ए2+एफएल ) 2,866 रुपये प्रति क्विंटल मानकर इस बार चने की एमएसपी 5,100 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की है.
लेकिन विभिन्न राज्यों द्वारा केंद्र को भेजी गई उनकी उत्पादन लागत का आकलन करने से पता चलता है कि यह मामूली बढ़ोतरी है.
सीएसीपी की रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़ा चना उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश ने उन्हें उत्पादन लागत के बारे में जानकारी नहीं भेजी थी.
हालांकि केंद्र के आकलन के मुताबिक राज्य में चने की उत्पादन लागत (सी2) 3759 रुपये प्रति क्विंटल थी. इस तरह भारत सरकार द्वारा घोषित एमएसपी राज्य की लागत की तुलना में सिर्फ 35 फीसदी ही अधिक है.
देश के कुल चना उत्पादन में 35 फीसदी हिस्सा मध्य प्रदेश का होता है.
वहीं दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उनके यहां चने की उत्पादन लागत 3,592 रुपये प्रति क्विंटल है. भारत सरकार द्वारा किए गए आकलन के मुताबिक यहां की उत्पादन लागत (सी2) और अधिक 3,654 रुपये है.
इस तरह चने की एमएसपी राज्य के अनुमानित लागत के हिसाब से करीब 42 फीसदी और केंद्र के हिसाब से करीब 40 फीसदी ही अधिक है.
चना उत्पादन वाले एक प्रमुख राज्य महाराष्ट्र ने अपने यहां की उत्पादन लागत की जानकारी सीएसीपी को नहीं दी थी, हालांकि केंद्र के आकलन के मुताबिक राज्य में चने की लागत (सी2) 4510 रुपये प्रति क्विंटल थी.
इस तरह चने की घोषित एमएसपी 5,100 रुपये राज्य के लागत मूल्य के मुकाबले महज 13 फीसदी अधिक है. यह किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने के वादे से कोसों दूर है.
हैरानी की बात ये है कि चने की मौजूदा एमएसपी कर्नाटक की उत्पादन लागत से भी कम है और किसानों को काफी नुकसान होने की संभावना है.
राज्य ने सीएसीपी को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उनके यहां चने की उत्पादन लागत 7,425 रुपये है. इस तरह केंद्र द्वारा घोषित मौजूदा एमएसपी लागत से भी कम है, बल्कि इस मूल्य पर चना बेचने पर यहां के किसानों को प्रति क्विंटल पर 2,325 रुपये का नुकसान होगा.
कर्नाटक देश का चौथा सबसे बड़ा चना उत्पादक राज्य है.
सरसों
रबी सीजन की प्रमुख फसल सरसों के लिए केंद्र ने इस बार एमएसपी 4,650 रुपये प्रति क्विंटल तय की है. सरकार ने इसकी ऑल इंडिया उत्पादन लागत (ए2+एफएल) 2,415 रुपये प्रति क्विंटल मानी है.
लेकिन अन्य फसलों की तरहत राज्यों में सरसों की उत्पादन लागत के हिसाब यह एमएसपी पर्याप्त प्रतीत नहीं होती है.
सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान ने सीएसीपी को बताया था कि उनके यहां इसकी लागत 3,218 रुपये प्रति क्विंटल है. केंद्र ने अपने आकलन में पाया कि राज्य में सरसों की लागत (सी2) 3,426 रुपये प्रति क्विंटल है.
यदि केंद्र सरकार की घोषणा को देखें तो एमएसपी में राज्य लागत के मुकाबले करीब 44 फीसदी और केंद्र लागत की तुलना में करीब 36 फीसदी की बढ़ोतरी है.
इसी तरह हरियाणा सरकार द्वारा अनुमानित राज्य में उत्पादन लागत 3,335 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में एमएसपी में करीब 39 फीसदी की वृद्धि हुई है.
वहीं, उत्तर प्रदेश की उत्पादन लागत 2998 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले एमएसपी में करीब 55 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
हालांकि केंद्र द्वारा आकलन किए गए राज्य की उत्पादन लागत (सी2) 3681 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले एमएसपी में महज 26 फीसदी की वृद्धि हुई है.
धान
रबी की तरह खरीफ फसलों की भी एमएसपी का यही हाल है. धान खरीफ सीजन की एक प्रमुख फसल है और कुछ राज्यों में इसकी खरीद शुरू होने वाली है, लेकिन यदि राज्यों की उत्पादन लागत को देखते हैं, तो एमएसपी में उचित वृद्धि नहीं है.
भारत सरकार ने वर्ष 2020 के लिए धान की एमएसपी 1,868 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन यह देश के सबसे बड़े धान उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल की लागत से भी कम है.
राज्य ने सीएसीपी को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राज्य में धान की उत्पादन लागत 2,147 रुपये प्रति क्विंटल है. इस तरह मौजूदा एमएसपी के आधार पर किसानों हर एक क्विंटल की बिक्री पर 279 रुपये का नुकसान होगा.
इसी तरह हरियाणा सरकार ने केंद्र सरकार को बताया था कि उनके यहां धान की उत्पादन लागत 2,162 रुपये प्रति क्विंटल है. इस आधार पर राज्य के किसानों को हर एक क्विंटल पर 294 रुपये का घाटा होने की संभावना है.
उत्तर प्रदेश राज्य ने सीएसीपी को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यहां धान की उत्पादन लागत 1,526 रुपये प्रति क्विंटल है और इस आधार पर लागत का डेढ़ गुना एमएसपी दी जानी चाहिए.
हालांकि केंद्र द्वारा तय की एमएसपी में उत्तर प्रदेश की उत्पादन लागत की तुलना में सिर्फ 22 फीसदी की बढ़ोतरी है.
धान उत्पादक एक और प्रमुख राज्य आंध्र प्रदेश ने केंद्र को बताया था कि उनके यहां धान की उत्पादन लागत 1,902 रुपये प्रति क्विंटल है, जो एमएसपी से भी अधिक है और इस आधार पर राज्य के किसानों को प्रति क्विंटल पर 34 रुपये का नुकसान होगा.
पंजाब ने बताया था कि उनके राज्य में धान की उत्पादन लागत 1,868 रुपये है. चूंकि इतनी ही एमएसपी भी तय की गई है, इसलिए राज्य के किसानों को लाभ होने की संभावना नहीं है.
ज्वार, बाजरा और मक्का
केंद्र ने इस साल के लिए ज्वार, बाजरा और मक्का की एमएसपी क्रमश: 2,620, 2,150 और 1,850 रुपये प्रति क्विंटल तय की है.
ज्वार के बड़े उत्पादक राज्य कर्नाटक ने बताया था कि उनके यहां उत्पादन लागत 3,517 रुपये प्रति क्विंटल है.
चूंकि केंद्र द्वारा निर्धारित एमएसपी 2,620 रुपये है, जो राज्य की लागत से भी कम है, इसलिए किसानों को प्रति क्विंटल पर 897 रुपये के नुकसान की संभावना है.
सबसे ज्यादा ज्वार का उत्पादन करने वाले राज्य महाराष्ट्र ने उत्पादन लागत के बारे में सीएसीपी को जानकारी नहीं दी थी, हालांकि केंद्र द्वारा आकलन किए गए उत्पादन लागत (सी2) 2,403 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर इसकी एमएसपी में महज नौ फीसदी की वृद्धि हुई है.
इसी तरह प्रमुख बाजरा उत्पादक राज्य राजस्थान ने बताया था उनके यहां इसकी उत्पादन लागत 1,473 रुपये प्रति क्विंटल है. चूंकि इस साल बाजरे की एमएसपी 2,150 रुपये प्रति क्विंटल है, इस तरह राज्य लागत की तुलना में एमएसपी में करीब 46 फीसदी की वृद्धि हुई है.
उत्तर प्रदेश द्वारा बताई गई राज्य उत्पादन लागत 1,372 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में एमएसपी में अच्छी वृद्धि है.
लेकिन दो अन्य बड़े बाजरा उत्पादक राज्य गुजरात की उत्पादन लागत 1,807 रुपये प्रति क्विंटल और हरियाणा की उत्पादन लागत 1,573 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में एमएसपी पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई है.
देश में सबसे ज्यादा करीब 17.7 फीसदी मक्के का उत्पादन आंध्र प्रदेश में होता है. लेकिन राज्य सरकार द्वारा भेजे गए यहां की उत्पादन लागत 1,788 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में एमएसपी में महज तीन फीसदी की वृद्धि हुई है.
इसी तरह दूसरे बड़े उत्पादक राज्य कर्नाटक ने बताया था कि उनके यहां इसकी उत्पादन लागत 1,767 रुपये प्रति क्विंटल है.
वहीं बिहार सरकार ने बताया था कि उनके राज्य में मक्का की उत्पादन लागत 1,684 रुपये प्रति क्विंटल है. इसकी तुलना में एमएसपी में सिर्फ 10 फीसदी की वृद्धि हुई है.
तुअर, मूंग, उड़द दालें
भारत सरकार ने प्रमुख दालें तुअर, मूंग और उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमश: 6,000, 7,196 और 6,000 रुपये तय किया है. हालांकि तुअर की एमएसपी इसके प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक के उत्पादन लागत से भी कम है.
राज्य सरकार ने सीएसीपी को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि यहां इसकी उत्पादन लागत 6,987 रुपये प्रति क्विंटल है. यानी मौजूदा एमएसपी के आधार पर राज्य के किसानों को प्रति क्विंटल पर 987 रुपये का नुकसान हो सकता है.
इसी तरह अकेले करीब 59 फीसदी मूंग का उत्पादन करने वाले राज्य राजस्थान ने बताया था कि उनके यहां इसकी उत्पादन लागत 5,642 रुपये प्रति क्विंटल है. इसकी तुलना में मूंग की एमएसपी में सिर्फ 27.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
कर्नाटक में भी काफी मूंग का उत्पादन होता है और मौजूदा एमएसपी यहां की उत्पादन लागत से भी कम है.
राज्य सरकार ने सीएसीपी को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राज्य में मूंग की उत्पादन लागत 9,636 रुपये प्रति क्विंटल है, चूंकि इसकी एमएसपी 7,196 रुपये प्रति क्विंटल है, इस तरह राज्य के किसानों को हर एक क्विंटल बेचने पर 2,440 रुपये का घाटा होगा.
मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 49 फीसदी उड़द का उत्पादन होता है लेकिन राज्य ने इस बार लागत को लेकर सीएसीपी को जानकारी नहीं दी थी.
हालांकि केंद्र के उत्पादन लागत (सी2) 4,824 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में एमएसपी में सिर्फ 24 फीसदी की वृद्धि हुई है.
वहीं आंध्र प्रदेश के उत्पादन लागत 5,387 रुपये प्रति क्विंटल और तमिलनाडु के उत्पादन लागत 5,880 की तुलना में एमएसपी में सिर्फ 11 फीसदी और दो फीसदी वृद्धि हुई है.
केंद्र सरकार सभी राज्यों की फसल लागत का औसत मूल्य के आधार पर एमएसपी तय करती है. इसके कारण कुछ राज्यों के किसानों को तो ठीक-ठाक दाम मिल जाता है लेकिन कई सारे राज्यों के किसानों को फसल लागत के बराबर भी एमएसपी नहीं मिलती है.
इसके उलट राज्य सरकारें अपने राज्य विशेष की स्थिति के आधार पर फसल लागत का आकलन करते हैं, जो कि आमतौर पर केंद्र सरकार के आकलन से काफी अधिकर रहा है.
द वायर ने पूर्व में रिपोर्ट कर बताया है कि किस तरह पूरे देश में फसलों का एक न्यूनतम समर्थन मूल्य होने से किसानों को नुकसान है और किस तरह भाजपा शासित राज्यों समेत प्रदेश की सरकारों ने भारत सरकार से राज्य आधारित एमएसपी की घोषणा करने की मांग की थी.