केंद्र के राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय द्वारा कराए गए एक सर्वे से पता चलता है कि रोज़गार एवं इससे संबंधित गतिविधियों, जहां एक निश्चित सैलरी होती है, में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ़ 18.4 फ़ीसदी है.
नई दिल्ली: केंद्र के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा कराए गए एक नए सर्वे से पता चला है कि सिर्फ 38.2 प्रतिशत जनसंख्या ‘रोजगार एवं इससे संबंधित गतिविधियों’ से जुड़ी हुई है और वे इस कार्य में एक दिन में 429 मिनट (सात घंटे और नौ मिनट) बिताते हैं.
हालांकि रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि रोजगार कार्यों में सिर्फ 18.4 फीसदी महिलाओं की सहभागिता है, जबकि इसमें 57.3 फीसदी पुरुष कार्यरत हैं. इसके साथ ही जहां पर पुरुष एक दिन में औसतन 459 मिनट (सात घंटे और 39 मिनट) इसमें लगाते हैं, वहीं महिलाएं सिर्फ 333 मिनट (पांच घंटे एवं 33 मिनट) इसमें खर्च कर पाती हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में महिलाओं की सहभागिता और कम मात्र 16.7 फीसदी है.
‘समय के उपयोग का सर्वेक्षण’ राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसएस) द्वारा संचालित इस तरह का पहला सर्वेक्षण है. इसे जनवरी 2019 से दिसंबर 2019 के बीच कराया गया था. इसमें विभिन्न गतिविधियों में व्यतीत समय के उपयोग का प्रतिदिन का आकलन, विभिन्न गतिविधियों में सहभागिता को ध्यान में रखकर किया गया है.
एनएसएस रिपोर्ट से पता चलता है कि घरेलू कार्यों- खाना पकाने, सफाई, घरेलू प्रबंधन- में महिलाओं की भूमिका सर्वाधिक 81.2 फीसदी है. जबकि इसमें पुरुषों का योगदान महज 26.1 फीसदी है. इन कार्यों के लिए जहां महिलाएं एक दिन में 299 मिनट (करीब पांच घंटे) खर्च करती हैं, वहीं पुरुष इसमें 97 मिनट (1 घंटे और 37 मिनट) ही खर्च करते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां घरेलू कामकाज में 82.1 फीसदी महिलाओं की भूमिका है, वहीं यहां सिर्फ 27.7 फीसदी ही पुरुष इन कार्यों को करते हैं. ये तस्वीर नगरीय क्षेत्रों में भी बहुत ज्यादा नहीं बदलती है, जहां घरेलू कार्यों में 79.2 फीसदी महिलाएं और केवल 22.6 फीसदी पुरुष योगदान देते हैं.
इसके अलावा परिवार के सदस्यों के लिए देखरेख करने में भी पुरुष एवं महिलाओं द्वारा लगाए जाने वाले समय में काफी अंतर है. सिर्फ 14 फीसदी पुरुष परिवार के सदस्यों यानी कि बच्चों या फिर बुजुर्गों की देखभाल करने का कार्य करते हैं और इसके लिए प्रतिदिन वे अपना औसतन 76 मिनट (एक घंटे 16 मिनट) लगाते हैं.
जबकि महिलाएं इन कार्यों के लिए पुरुषों के मुकाबले दोगुना समय- दो घंटा और 14 मिनट प्रतिदिन खर्च करती हैं.
सर्वे से यह भी पता चलता है कि भारतीय समाज बिना भुगतान के स्वयंसेवा या प्रशिक्षु या अन्य अदत्त कार्यों में शामिल होना पसंद नहीं करता है. रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 2.4 फीसदी लोगों ने बताया कि वे इस तरह के कार्यों में शामिल होते हैं. इसके लिए वे प्रतिदिन लगभग 101 मिनट का समय देते हैं.
जबकि सामाजीकरण और संचार, सामुदायिक भागीदारी और धार्मिक अभ्यास में महिला एवं पुरुष दोनों की ही भागीदारी काफी ज्यादा है. सर्वे के दौरान 91.3 लोगों ने बताया कि वे इस तरह के कार्यों में भाग लेते हैं और प्रतिदिन औसतन 143 मिनट खर्च करते हैं.
यह एनएसएस सर्वेक्षण 138,799 परिवारों (ग्रामीण- 82,897 तथा नगरीय- 55,902) के बीच कराया गया था. रिपोर्ट के लिए चयनित परिवारों के छह वर्ष एवं उससे अधिक उम्र के हर सदस्य से सवाल-जवाब किया गया था.
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूहों के ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर इस सर्वे के लिए भारत भर से कुल मिलाकर 447,250 व्यक्तियों (ग्रामीण- 273,195 एवं नगरीय- 174,055) से सूचना ली गई थी.