ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) ने उत्तर प्रदेश के कुछ इलाके में बिजली वितरण कारोबार के निजीकरण की कोशिशों की आलोचना की है. राज्य सरकार के इस क़दम की कर्मचारी ट्रेड यूनियनों और इंजीनियरों के संयुक्त मंच ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉइज के बैनर तले विरोध कर रहे हैं.
नई दिल्ली: ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में बिजली वितरण कारोबार के निजीकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों को लेकर राज्य सरकार की आलोचना की.
ट्रेड यूनियन ने राज्य सरकार के कदम का विरोध कर रहे उसके कुछ सदस्यों को गिरफ्तार किए जाने की भी निंदा की.
श्रमिक संगठन ने एक बयान में कहा, ‘उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बिजली वितरण के निजीकरण का विरोध कर रहे ट्रेड यूनियन के नेताओं की गिरफ्तारी की है. संगठन राज्य सरकार की इस दमनकारी नीति की निंदा करता है.’
एटक ने मांग की कि उत्तर प्रदेश सरकार को बिजली वितरण का निजीकरण और बिजली कर्मचारियों का उत्पीड़न बंद करना चाहिए.
संगठन ने कहा कि पहले चरण में सरकार ने अलग करने और छोटी इकाइयां बनाने के लिए पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को चुना है. इसका मकसद बिजली वितरण का काम निजी कंपनियों को सौंपना है.
श्रमिक संगठन ने कहा कि सरकार पहले ही आगरा क्षेत्र को निजी कंपनियों के हवाले कर चुकी है.
कर्मचारी ट्रेड यूनियनों और इंजीनियरों के संगठन के संयुक्त मंच ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉइज के बैनर तले विरोध कर रहे हैं.
बयान के अनुसार कर्मचारियों ने 28 सितंबर से काम का बहिष्कार शुरू कर दिया है.
एटक ने कहा कि विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 को संसद में रखे बिना और 350 पक्षों एवं 12 राज्यों के विरोध के बावजूद बिजली मंत्रालय ने 20 सितंबर को सभी राज्यों को निजीकरण की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया. इससे केवल 26 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र की व्यवस्था ही राज्य सरकार के नियंत्रण में रह जाएगी.
संगठन के अनुसार, मौजूदा कर्मचारियों की पूरी जिम्मेदारी वितरण का जिम्मा लेने वाली नई फ्रेंचाइजी इकाइयों की होगी.
बिजनेस स्डैंडर्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार अपनी 5 बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) में से एक पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम (पीयूवीवीएनएल) का निजीकरण करने प्रयास कर रही है. यह वितरण कंपनी पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिजली आपूर्ति का नियंत्रण व प्रबंधन करती है.
एटक ने उत्तर प्रदेश में संघर्षरत बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों को पूरा समर्थन देने की बात कही. साथ ही समाज के दूसरे तबके को समर्थन देने का आह्वान किया.
श्रमिक संगठन ने कहा, ‘अगर जन विरोधी नीति सफल होती है, तो न केवल कर्मचारियों की नौकरियां जाएंगी, वेतन कटौती और सामाजिक सुरक्षा के लाभ से वंचित होना पड़ेगा बल्कि ग्राहकों को भी महंगी बिजली की मार झेलनी पड़ेगी. इसका सेवा क्षेत्र, विनिर्माण और कृषि क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा.’
एक अलग बयान में ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने अपने चेयरमैन शैलेंद्र दुबे और अन्य इंजीनियरों की गिरफ्तारी की निंदा की. इन लोगों को 28 सितंबर को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वे वाराणसी वितरण क्षेत्र के निजीकरण के विरोध में लखनऊ में जुलूस निकाल रहे थे.
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने 28 सितंबर को कहा था कि राज्य के विद्युत कर्मचारी और इंजीनियर 29 सितंबर से तीन घंटे कामकाज का बहिष्कार करेंगे और पांच अक्टूबर को पूरे दिन काम का बहिष्कार किया जाएगा.
विद्युत कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति (एनसीसीओईईई) ने कहा था कि अगर किसी कर्मचारी को गिरफ्तार किया जाता है, पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)