पिछले साल भी गन्ने की पेराई शुरू होने से पहले चीनी मिलों पर गन्ना किसानों के बकाया थे लेकिन वह रकम इतनी अधिक नहीं थी. साल 2018-19 में राज्य मिलों पर गन्ना किसानों का 4,941 करोड़ रुपये बकाया था.
नई दिल्ली: साल 2020-21 के लिए गन्ने की पेराई शुरू हो गई है, लेकिन किसानों ने पिछले साल चीनी मिलों को जो गन्ने बेचे थे, उसमें से अभी भी 8400 करोड़ रुपये बाकी हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में उत्तर प्रदेश की मिलों ने रिकॉर्ड 1,119.02 लाख टन गन्ने की पेराई की थी, जिसकी कुल कीमत 35,898.15 करोड़ रुपये थी. यह कीमत राज्य सरकार की सलाह से तय मूल्य (एसएपी) पर आधारित थी, जो 315-325 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई थी.
हालांकि, पिछले चीनी उत्पादन वर्ष के अंत 30 सितंबर तक उन्होंने किसानों को केवल 27,451.05 करोड़ रुपये चुकाया था. इसका मतलब है कि दशहरा के बाद इस महीने के अंत से 2020-21 का चीनी उत्पादन वर्ष शुरू होने पहले तक गन्ना किसानों का अभी भी 8,447.10 करोड़ रुपये बाकी है.
इससे पहले पिछला चीनी उत्पादन वर्ष भी गन्ना किसानों के बकाये से ही शुरू हुआ था, लेकिन वह इस साल जितना नहीं था. साल 2018-19 में राज्य मिलों ने 1031.67 करोड़ रुपये के गन्ने की पेराई की थी, जिसकी कीमत 33,048.06 करोड़ रुपये थी. सितंबर के अंत तक मिलों ने 28,106.23 करोड़ चुका दिए थे.
इसके बाद गन्ना किसानों के 4,941.83 करोड़ रुपये बकाया थे.
रिपोर्ट के अनुसार, शामली जिले और तहसील के खीरी बैरागी गांव में आठ एकड़ में गन्ने की उपज करने वाले जितेंद्र सिंह हुड्डा कहते हैं, ‘पिछले साल खाई थी. इस साल उन्होंने हमें कुएं में ढकेल दिया है. इससे भी बुरा यह है कि सरकार को कोई फिक्र नहीं है. साल 2016-17 से एसएपी में मात्र 10 रुपये प्रति क्विंटल (सामान्य के लिए 305 से 315 और जल्द तैयार होने वाली नस्लों के लिए 315 से 325 रुपये) बढ़ोतरी करने के बावजूद वे मिलों को इन कीमतों पर भी दाम देने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं.’
2019-20 के लिए 315-325 रुपये प्रति क्विंटल की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा तय एसएपी केंद्र सरकार द्वारा 275 रुपये प्रति क्विंटल के उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) से अधिक था. यह 10 फीसदी आधारभूत चीनी-से-गन्ना वसूली अनुपात से जुड़ा हुआ था.
पिछले साल उत्तर प्रदेश का औसत चीनी रिकवरी 11.3 फीसदी थी और इसके अनुसार एफआरपी 310.75 प्रति क्विंटल होता. इस हिसाब से अगर गन्ना किसानों को दी गई कुल कीमत (27,451.05 करोड़) को 2019.20 में पेराई किए गए गन्ने की मात्रा (1,118.02 क्विंटल) से करें तो औसत मूल्य 245.5 प्रति क्विंटल आता है.
हुड्डा कहते हैं, ‘एसएपी को भूल जाइए हमें तो केंद्र सरकार द्वारा तय एफआरपी ही नहीं मिल रही है. गन्ना डिलिवरी के 14 दिनों के अंदर मिलों को पैसे का भुगतान करना होता है जबकि गन्ने की पेराई मई अंत में ही खत्म हो गई थी.’
उत्तर प्रदेश उद्योग के एक सूत्र ने मुख्य रूप से निर्यात सब्सिडी और चीनी बफर ले जाने की लागत का भुगतान न करने को मौजूदा बकाए को जिम्मेदार ठहराया.
केंद्र ने पिछले साल सितंबर में 2019-20 के दौरान चीनी निर्यात पर किए गए विपणन, परिवहन, पोर्ट-हैंडलिंग और अन्य खर्चों के लिए 10.448 रुपये प्रति किलोग्राम की एकमुश्त सहायता की घोषणा की थी.
इससे पहले जुलाई में इसने मिलों को 40 क्विंटल बफर स्टॉक के निर्माण को मंजूरी दी, जिसके लिए एक वर्ष के लिए संपूर्ण ब्याज, भंडारण और बीमा शुल्क की प्रतिपूर्ति की जाएगी.
सूत्र ने दावा किया, ‘इन दोनों खातों पर केंद्र पर हमारा लगभग 3,000 करोड़ रुपये बकाया है. इसके अलावा 900 करोड़ रुपये यूपी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड पर बाकी हैं. ये कुल मिलाकर 8,400 करोड़ रुपये की बकाया राशि का लगभग आधा हिस्सा हैं.’
उसने इस ओर भी इशारा किया कि गन्ने का अधिकतर बकाया कुछ कंपनियों पर ही है. बजाज हिंदुस्तान लिमिटेड की 14 फैक्टरियों पर अकेले 2,637.76 करोड़ रुपये बकाया हैं, जो कि 2019-20 में उसके द्वारा खरीदे गए गन्ने की एसएपी की कीमत 5,339.17 करोड़ रुपये का 49.4 फीसदी है.
इसके साथ सिम्भावली शुगर्स पर (कुल कीमत का 64.01 फीसदी), यूके मोदी ग्रुप (62.56 फीसदी), गोबिंद शुगर (55.58 फीसदी) और अपर दोआब शुगर (46.42 फीसदी) बकाया हैं.
वहीं दूसरी तरफ बलरामपुर चीनी, त्रिवेणी इंजीनियरिंग, धामपुर शुगर, डीसीएम श्रीराम, केके बिड़ला ग्रुप, द्वारकाधीश शुगर, डालमिया भारत, दौराला शुगर, एलएच शुगर और तिकौला शुगर मिलों ने अपने 85 फीसदी या उससे अधिक का भुगतान कर दिया है और बाकी अगले कुछ महीनों में करने वाले हैं.