मृतक प्रवीण के परिजनों का कहना है कि उसे इस मामले में फंसाया गया था, जिसके तनाव के चलते उसने यह कदम उठाया.
मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले से जुड़े लोगों की मौत का सिलसिला थमता नज़र नहीं आ रहा.
मंगलवार 25 जुलाई को मुरैना के महाराजगंज गांव के प्रवीण यादव ने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. 35 साल के प्रवीण को 2012 में एसटीएफ द्वारा व्यापमं मामले में आरोपी बनाया गया था.
#Vyapam accused Praveen Yadav commits suicide at his residence in Madhya Pradesh's Morena. (file picture) pic.twitter.com/BVXqyzldiS
— ANI (@ANI) July 26, 2017
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार गुरुवार को प्रवीण की जबलपुर हाईकोर्ट में पेशी होनी थी. कहा जा रहा है कि इस तनाव के चलते उसने यह कदम उठाया.
प्रवीण ने साल 2008 में पीएमटी की परीक्षा दी थी. प्रवीण के परिजनों ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि प्रवीण पढ़ने में अच्छा था और उसकी योग्यता के बलबूते ही उसका पीएमटी में सेलेक्शन हुआ था. उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया था. उनका कहना था कि प्रवीण की मौत के लिये अधिकारी और नेता ज़िम्मेदार हैं. मामले में आरोपी के रूप में नाम आने के बाद से ही प्रवीण को लगातार पेशी और पूछताछ के लिए जाना पड़ता था. उसे पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित किया जाता था, जिसकी वजह से वो बीते 5 सालों से ही तनाव में रहता था.
प्रवीण मृतक छात्र अपने माता-पिता की इकलौती संतान था. उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो बच्चे हैं. पुलिस ने कोई सुसाइड नोट मिलने से इनकार किया है.
21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई को ट्रायल कोर्ट में मामले की जांच में मिले इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणों की सीएफएसएल रिपोर्ट सहित अक्टूबर तक चार्जशीट दायर करने का आदेश दिया गया है.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में प्री-मेडिकल, प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट और विभिन्न सरकारी नौकरियों की परीक्षा के लिए बने मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल में हुए इस घोटाले में छात्रों सहित कई नेताओं, अधिकारियों और बिजनेसमैन का नाम आया है. घोटाले के सामने आने के बाद से एक टीवी पत्रकार सहित इससे जुड़े लगभग 45 लोगों की जान जा चुकी है.
हालांकि सीबीआई को व्यापमं की जांच सौंपे जाने से पहले मध्य प्रदेश पुलिस के इंटेलिजेंस विंग द्वारा व्यापमं से जुड़े 40 लोगों की मौत पर अलग से जांच की गई, जिसमें जांच समिति द्वारा इन मौतों में किसी भी तरह का षड्यंत्र की संभावना से इनकार करते हुए सरकार को क्लीन चिट दी गई थी.
सीबीआई जांच के बाद भी अब तक इस मामले में कोई ख़ास पहलू सामने नहीं आया है और इन मौतों सहित घोटाले पर रहस्य बरक़रार है.
क्या है मामला
1982 में व्यापमं यानी मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल की स्थापना की गई थी, जिसके तहत मेडिकल, इंजीनियरिंग, कृषि, मैनेजमेंट कोर्स में प्रवेश मिलता था. साल 2008 से व्यापमं एडमिशन के साथ नौकरियों के लिए भी परीक्षा आयोजित करवाने लगा, जिसमें सब-इंस्पेक्टर, कांस्टेबल, शिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षा ली जाती थी.
साल 2009 में इंदौर में एक प्रश्न-पत्र लीक होने का मामला सामने आने के बाद पहली बार व्यापमं में घोटाले की बात सामने आई. इसके बाद भी घोटाला जारी रहा. विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार व्यापमं के गठन के बाद से ही सरकारी नौकरियों में बड़े स्तर पर धांधली हुई है. जुलाई 2013 में इस घोटाले का खुलासा डॉ. जगदीश सागर की मुंबई में गिरफ्तारी के साथ हुआ. सागर को इंदौर क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. छानबीन में सागर के इंदौर स्थित घर से करोड़ों रुपये का कैश बरामद हुआ था.
सागर ने पूछताछ में बताया कि उसने तीन साल के दौरान 100-150 छात्र-छात्राओं का गलत तरीके से मेडिकल कोर्स में एडमिशन कराया था. परीक्षाओं में ऐसे लोगों को पास किया गया जो इसमें शामिल होने के भी योग्य नहीं थे. पहले मामले की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में एसआईटी कर रही थी. बाद में जांच सीबीआई को सौंप दी गई.
मामले में शिक्षा मंत्री समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों, बिचौलियों, फर्ज़ी नाम से परीक्षा देने वालों और छात्रों समेत करीब 3,800 आरोपी हैं.