एल्गार परिषदः एनआईए ने सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को गिरफ़्तार किया

83 साल के सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी देश के सबसे उम्रदराज शख़्स हैं, जिन पर आतंकवाद से संबंधित आरोपों में मामला दर्ज किया गया है. वह जून 2018 के बाद से इस मामले में गिरफ़्तार किए गए 16वें शख्स हैं.

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फादर स्टेन स्वामी. (फोटो: पीटीआई)

83 साल के सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी देश के सबसे उम्रदराज शख़्स हैं, जिन पर आतंकवाद से संबंधित आरोपों में मामला दर्ज किया गया है. वह जून 2018 के बाद से इस मामले में गिरफ़्तार किए गए 16वें शख्स हैं.

फादर स्टेन स्वामी. (फोटो: पीटीआई)
फादर स्टेन स्वामी. (फोटो: पीटीआई)

मुंबईः राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भीमा कोरेगांव मामले में सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को गुरुवार को गिरफ्तार किया. वह देश के सबसे उम्रदराज शख्स हैं, जिन पर आतंकवाद से संबंधित आरोपों में मामला दर्ज किया गया है.

स्वामी से एल्गार परिषद मामले में चल रही जांच के संबंध में कई बार पूछताछ की गई थी और वह जून 2018 के बाद से इस मामले में गिरफ्तार किए गए 16वें शख्स हैं.

वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने पुष्टि करते हुए कहा कि एनआईए की टीम गुरुवार शाम को रांची के नामकुम में स्वामी के घर पहुंची थी. उन्हें बिना किसी वॉरंट के एनआईए के ऑफिस ले जाया गया.

जब एनआईए की टीम स्वामी के घर पहुंची, उनके सहयोगी वहां मौजूद थे. इनमें से स्वामी के एक सहयोगी ने द वायर को बताया, ‘एनआईए बिना वारंट दिखाए और गिरफ्तारी का आधार बताए बगैर उन्हें अपने साथ ले गई.’

कई बीमारियों से जूझ रहे स्वामी झारखंड के दिग्गज आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हैं. मूल रूप से केरल के रहने वाले स्वामी ने बीते लगभग पांच दशकों से झारखंड के आदिवासी इलाके में रहकर आदिवासी समुदाय के वन अधिकारों के लिए काम किया.

वह पुलिस की ज्यादती और राज्य में संविधान की पांचवीं अनुसूची को उचित रूप से लागू करने में सरकार के असफल रहने की मुखर आलोचना करते रहे. उन्होंने समय-समय पर राज्य में आदिवासी युवाओं की गिरफ्तारियों पर भी सवाल उठाए.

झारखंड में भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान स्वामी और उनके सहयोगियों पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया, लेकिन हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार के सत्ता में आने के बाद उन पर लगे आरोपों को हटा दिया गया.

स्वामी पहले ही अपनी गिरफ्तारी की आशंका जता चुके थे. उन्होंने दो दिन पहले एक लंबा वीडियो रिकॉर्ड किया था, जिसमें उन्होंने उन परिस्थितियों का उल्लेख किया, जिसमें केंद्रीय जांच एजेंसी उनसे पूछताछ कर रही थी.

उन्होंने एक अन्य लिखित संदेश में कहा, ‘एनआईए ने बीते पांच दिनों (27, 28, 29, 30 जुलाई और छह अगस्त) में 15 घंटे तक मुझसे पूछताछ की गई. मेरे बायोडेटा और कुछ तथ्यात्मक जानकारी के अलावा मेरे कंप्यूटर से कथित तौर पर कई चीजें ली गईं, जिन्हें माओवादियों के साथ मेरे संबंधों के तौर पर दर्शाया गया. मैंने उन्हें बताया कि सभी सामग्री छिपकर मेरे कंप्यूटर में डाली गईं और मैंने इनके खुद से जुड़े होने की बात अस्वीकार की.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे खिलाफ एनआईए की मौजूदा जांच प्रकृति का भीमा कोरेगांव मामले से कुछ लेना-देना नहीं है. भीमा कोरेगांव में मेरे खिलाफ संदिग्ध के तौर पर मामला दर्ज किया गया और 28 अगस्त 2018 और 12 जून 2019 को दो बार मेरे घर पर छापेमारी की गई. ऐसा इसलिए किया गया ताकि किसी तरह से यह दर्शाया जा सके कि मैं चरमपंथी ताकतों से निजी तौर से जुड़ा हुआ हूं और मेरे जरिये बगाइचा भी माओवादियों से जुड़ा हुआ है. मैंने कठोर शब्दों में इन आरोपों का खंडन किया है.’

बता दें कि इस संदेश को स्वामी की गिरफ्तारी से कुछ घंटे पहले ही सामाजिक अधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों को भेजा गया.

स्वामी ने कहा कि उन्हें मुंबई में एनआईए के ऑफिस बुलाया गया था, जहां इस मामले की जांच की जा रही है. हालांकि स्वामी ने कोरोना महामारी के बीच लंबी दूरी की यात्रा करने में असमर्थता जताई थी.

उन्होंने कहा था, ‘मैंने उन्हें सूचित किया है कि मैं यह नहीं समझ पाया कि पहले ही 15 घंटे तक मुझसे पूछताछ करने के बाद वे मुझसे और क्या पूछना चाहते हैं. मैं अपनी उम्र (83) और देश में फैली महामारी को ध्यान में रखते हुए इतनी लंबी यात्रा करने की स्थिति में नहीं हूं. इसके अलावा झारखंड सरकार ने निर्देश दिया है कि लॉकडाउन के दौरान 65 साल तक के बुजुर्गों को बाहर नहीं निकलना है. अगर जांच एजेंसी मुझसे और पूछताछ करना चाहती है तो वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुझसे पूछताछ कर सकती है.’

स्वामी ने अपने पत्र में कहा है कि वह उम्मीद कर रहे हैं कि इंसानियत में विश्वास की जीत होगी और अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्हें खामियाजा भुगतने को तैयार रहना होगा. इसके बाद आठ अक्टूबर को एनआईए ने उन्हें हिरासत में ले लिया.

एल्गार परिषद मामले की जांच पुणे पुलिस ने सबसे पहले शुरू की थी लेकिन महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की भाजपा सरकार गिरने के बाद शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पर्टी और कांग्रेस गठबंधन के सत्ता में आने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय की जांच एनआईए को सौंप दी.

एनआईए ने जनवरी महीने से स्वामी सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया है. एजेंसी अगले कुछ दिनों में अपनी पहली चार्जशीट दाखिल कर सकती है.

इससे पहले पुणे पुलिस ने मामले में दो चार्जशीट दायर की थी. एनआईए शिक्षाविद और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े और कार्यकर्ता एवं पत्रकार गौतम नवलखा के खिलाफ चार्जशीट दायर कर सकती है.

पूर्ववर्ती चार्जशीट

पहली चार्जशीट पुणे पुलिस ने दायर की थी, जो 5,000 से अधिक पन्नों की थी. पुलिस ने दावा किया था कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनके प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) से सक्रिय संबंध थे और पुणे में भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान के बैनर तले 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद कार्यक्रम का आयोजन किया था.

पुलिस का कहना है कि पुणे के शनिवारवाड़ा में हुए इस कार्यक्रम से महाराष्ट्र में दलित युवाओं को भाजपा और आरएसएस के खिलाफ उकसाया गया, जिससे राज्य में हिंसा हुई. कार्यक्रम में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए गए और देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने की मंशा से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

फरवरी 2019 में पूरक चार्जशीट दायर की गई और राज्य सरकार ने दावा किया कि भगोड़े माओवादी नेता गणपति ही एल्गार परिषद मामले का मास्टरमाइंड है.

इस मामले में गिरफ्तार अन्य लोगों में लेखक और मुंबई के दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, गढ़चिरौली के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य विभाग की प्रमुख रहीं शोमा सेन, वकील अरुण फरेरा और सुधा भारद्वाज, लेखक वरवरा राव, कार्यकर्ता वर्नोन गॉजाल्विस, अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन, यूएपीए विशेषज्ञ और वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेनी बाबू और कबीर कला मंच के कलाकार सागर गोरखे, रमेश गाइचोर और ज्योति जगताप शामिल हैं.

गिरफ्तारी की निंदा

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने स्वामी की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए बयान जारी किया है. बयान में पीयूसीएल के सदस्यों ने कहा है कि वे स्वामी की हिरासत और उनकी गिरफ्तारी से अचंभित हैं और इसकी निंदा करते हैं.

बयान में कहा, ‘स्टेन को गिरफ्तार करना एनआईए प्रशासन का अमानवीय और निंदनीय कृत्य है. स्टेन ने एनआईए के जांचकर्ताओं के साथ पूरा सहयोग किया और 27 28, 29, 30 जुलाई और छह अगस्त को लगभग 15 घंटों तक उनसे बगाइचा के उनके घर में पूछताछ की गई तो उन्हें पूर सहयोग किया. अधिक उम्र और अन्य उम्र संबंधी बीमारियों के बावजूद स्टेन स्वामी ने बहुत धैर्य से उनसे पूछे गए सभी सवालों का जवाब दिया. यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि 28 अगस्त 2018 को पुणे पुलिस ने उनके घर पर छापेमारी की थी और उनके लैपटॉप, टैबलेट और कैमरे आदि को जब्त कर लिया था.’

पीसीयूएल ने कहा कि एनआईए द्वारा स्वामी की गिरफ्तारी दुर्भावनापूर्ण है. स्वामी चरमपंथियों या माओवादियों के साथ अपने संबंधों से लगातार इनकार कर रहे हैं.

बयान में कहा गया, ‘उन्होंने एनआईए को स्पष्ट कर दिया है कि एनआईए ने जो तथाकथित कंटेट उनके कंप्यूटर से लिया और उन्हें दिखाया गया था वह फर्जी और मनगढ़ंत था, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया है. एनआईए की कार्रवाई को इस तरह भी देखा जा सकता है कि अक्टूबर 2018 में पुलिस ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया था कि स्टेन सिर्फ संदिग्ध थे न कि आरोपी.’

बयान में कहा गया, ‘पीयूसीएल यह संज्ञान में लाना चाहता है कि एनआईए द्वारा स्टेन स्वामी को गिरफ्तार करने का सही कारण यह है कि उन्होंने (स्टेन) पूर्ववर्ती भाजपा के नेतृत्व वाली झारखंड सरकार द्वारा आतंकवाद रोधी कानून और राजद्रोह कानून के व्यापक स्तर पर दुरुपयोग का पर्दाफाश करने की हिम्मत की थी. हजारों आदिवासियों को झूठे मामलों में फंसाकर गिरफ्तार किया गया. स्टेन ने आदिवासी युवाओं की अनकही पीड़ाओं के अनुभवों का दस्तावेज तैयार किया था, जिनमें से हजारों को बिना किसी अपराध के जेल में डाला गया. इस वजह से पुलिस और राज्य सरकार में नाराजगी थी, जिस वजह से स्टेन स्वामी और अन्य के खिलाफ झारखडं में मानवाधिकार आंदोलन में निशाना बनाया गया.’

इसके साथ ही पुलिस द्वारा हजारों आदिवासियों को मनमाने तरीके से गिरफ्तार किए जाने के डेटा का भी विश्लेषण कर इसे झारखंड हाईकोर्ट के सामने पेश किया गया, जिससे राज्य सरकार परेशान थी.

पीयूसीएल ने कहा कि स्टेन स्वामी ने हमेशा भारत के संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता स्वीकार की है और राज्य सरकार एवं पुलिस द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग किए जाने पर सवाल खड़ा करते हुए शांतिपूर्ण ढंग से असहमति भी जताई है.

उनकी गिरफ्तारी के जरिये एनआईए ने एक बार फिर बाकी के मानवाधिकार समुदाय को संदेश दिया है कि ऐसा कोई स्तर नहीं है, जहां से गिरकर वे असहमति की आवाज को नहीं दबाना चाहते.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)