मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि म्यांमार के पश्चिम रखाइन प्रांत में 24 शिविरों में अमानवीय स्थिति है और यह रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार एवं अन्य मूलभूत अधिकारों के लिए ख़तरा है. रिपोर्ट में इन शिविरों को खुली जेल बताया गया है.
बैंकॉक: अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने गुरुवार को कहा कि म्यांमार के संघर्षग्रस्त रखाइन प्रांत में स्थित शरणार्थी शिविरों में लगभग 130,000 रोहिंग्या मुसलमान गंदे और अपमानजनक परिस्थितियों में रह रहे हैं.
संगठन ने अपील की है कि इस शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की मनमाने और अनिश्चितकालीन हिरासत को तुरंत खत्म करना चाहिए.
संगठन ने कहा है कि शिविरों में ज्यादातर मुस्लिम रोहिंग्याओं की सामूहिक हिरासत एक ‘खुली जेल’ की तरह है.
रिपोर्ट के अनुसार, इन शरणार्थी शिविरों को 2012 में रोहिंग्याओं और बौद्ध रखाइन जातीय समूहों के बीच हुई सांप्रदायिक हिंसा के तुरंत बाद स्थापित किया गया था.
इस लड़ाई की वजह से दोनों समूहों के कई लोग बेघर हो गए, लेकिन सभी बौद्ध रखाइन वापस अपने घरों को लौट गए या उनका पुनर्वास किया गया लेकिन रोहिंग्या के साथ ऐसा नहीं हुआ.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पश्चिम रखाइन प्रांत में 24 शिविरों में अमानवीय स्थिति है और यह रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार एवं अन्य मूलभूत अधिकारों के लिए खतरा है.
रिपोर्ट में कहा, ‘शिविर में आजीविका, आवाजाही, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्याप्त भोजन और आश्रय की सीमाओं को मानवीय सहायता पर बाधाओं को बढ़ाकर और जटिल बनाया दिया गया है. इन्हीं सहायताओं पर रोहिंग्या जीवित रहने के लिए निर्भर है.’
इसमें कहा गया, ‘शिविर में हिरासत में रखे गए लोगों में पड़ोसी बौद्ध रखाइन समुदाय के मुकाबले अधिक कुपोषण, जलजनित बीमारियां, बाल और मातृ मुत्युदर है.’
ह्यूमन राइट्स वॉच ने रिपोर्ट में कहा कि शिविरों में रह रहे करीब 65 हजार बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं.
अल जजीरा के मुताबिक रिपोर्ट की लेखक शायना बाउचनर ने कहा, ‘म्यांमार सरकार ने 130,000 रोहिंग्याओं को आठ साल से उन्हें अपने घरों, जमीनों, और आजीविका से काटकर अमानवीय परिस्थितियों में नज़रबंद करके रखा है.’
गुरुवार को प्रकाशित 169-पृष्ठ की एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट में कहा गया है कि शरणार्थी शिविरों में रहने वाले दसियों हजार रोहिंग्या आजीविका के गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
New @hrw report details how Aung San Suu Kyi’s government & the #Myanmar military have deliberately created & maintained oppressive conditions to make life unlivable for 130,000 #Rohingya detained in #Rakhine State camps. This #apartheid regime must end. https://t.co/HxwRuW4pnQ pic.twitter.com/K95lzqSaaG
— Phil Robertson (@Reaproy) October 8, 2020
रिपोर्ट के अनुसार, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्याप्त भोजन और आश्रय पर कड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं. इसके अलावा इन तक पहुंचने वाली मानवीय मदद पर भी प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, जिस पर रोहिंग्या निर्भर हैं.
कोविड-19 महामारी की वजह से शिविरों में रोहिंग्या के लिए स्थितियां और भी जटिल हो गई हैं. सरकार ने बीमारी के प्रसार को रोकने के प्रयास के तहत अधिक प्रतिबंध लगा दिए हैं.
शायना बाउचनर का कहना है कि सरकार का दावा तब तक खोखला रहेगा जब तक वो कंटीली तारों को काट रोहिंग्याओं को पूरी कानूनी सुरक्षा के साथ अपने घर लौटने की अनुमति नहीं दे देती.
एचआरडब्ल्यू का कहना है कि औपचारिक नीतियों, अनौपचारिक कदमों, नाकेबंदी, कंटीली तारों और जबरन वसूली के एक विस्तृत जाल की वजह से इन शिविरों में रहने वाले लोग आजादी से कहीं आ-जा नहीं सकते.
बाउचनर ने म्यांमार की नेता आंग सान सू की और सेना से देश में रह रहे रोहिंग्याओं को और अधिक स्वतंत्रता देने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आह्वान किया.
बता दें कि साल 2017 में म्यांमार की सेना ने एक रोहिंग्या छापेमार समूह के हमले के बाद उत्तरी रखाइन प्रांत में अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ कथित तौर पर युद्ध छेड़ दिया था. इसकी वजह से लाखों की संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों ने भागकर पड़ोसी बांग्लादेश में शरण ली. म्यांमार पर आरोप लगाया गया कि सेना ने बड़े पैमाने पर बलात्कार, हत्या और घरों को जलाने का काम किया.
म्यांमार की सरकार ने सुरक्षा बलों द्वारा सामूहिक रूप से बलात्कार, हत्याओं और हजारों घरों को जलाए जाने के आरोपों से इनकार किया है.
हालांकि सितंबर महीने में जारी एक रिपोर्ट में पहली बार म्यांमार के सैनिकों ने रोहिंग्या नरसंहार की बात स्वीकार की थी.
सेना छोड़ने वाले म्यांमार के दो सैनिकों ने एक वीडियो गवाही में रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के अपराध को स्वीकार किया था. इस वीडियो में उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों को फांसी देने, सामूहिक तौर पर दफनाने, गांवों को तबाह करने और बलात्कार की बात स्वीकार की थी.
इस साल जनवरी में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने म्यांमार को आदेश दिया था कि वह रोहिंग्या लोगों का जनसंहार रोकने के लिए अपनी शक्ति के अनुसार सभी कदम उठाए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि रोहिंग्या को सुरक्षित करने की मंशा से अंतरिम प्रावधान के उसके आदेश म्यांमार के लिए बाध्यकारी हैं और यह अतंरराष्ट्रीय कानूनी जिम्मेदारी है.
साल 2017 से पहले तकरीबन 10 लाख रोहिंग्या म्यांमार में थे. वे इस देश में पीढ़ियों से रह रहे थे, लेकिन सरकार उन्हें पड़ोसी बांग्लादेश से आए प्रवासी मानती है और उन्हें रोहिंग्या के रूप में नागरिकता देने या यहां तक कि उनका उल्लेख करने से भी इनकार कर दिया गया है.
साल 2017 में इस समुदाय के खिलाफ म्यांमार की सेना द्वारा चलाए गए क्रूर अभियान के कारण तकरीबन 7.5 लाख रोहिंग्याओं ने भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ले ली थी. हिंसा का यह मामला अब म्यांमार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत में नरसंहार का विषय है.
इस हिंसा के बाद 2.5 लाख से अधिक रोहिंग्या म्यांमार में बचे रह गए. इनमें से तकरीबन एक लाख लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, जो 2012 में हुए शुरुआती हिंसा के दौरान विस्थापित हो गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)